कोरोना पर सुलगते सवाल- कोर्ट ने महामारी से लड़ने की तैयारियों के बारे में नौ सवाल पूछे

जब भारत में कोरोना का आगमन जनवरी महीने में ही शुरू हो गया था कांग्रेस के नेता राहुल गांधी लगातार ट्वीट कर सरकार को कोरोना के ख़तरे के प्रति आगाह कर रहे थे वही दूसरीओर झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand, High court) ने राज्य सरकार से कोरोना (Coronavirus) महामारी से लड़ने की तैयारियों के बारे में नौ सवाल पूछे और मामले की सुनवाई के लिए सात अप्रैल की तारीख तय की है. झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता इंदरजीत सिन्हा के इस मामले में कोर्ट को 31 मार्च को भेजे एक ईमेल का स्वत: संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश डा. रविरंजन के नेतृत्व वाली खंड पीठ ने इसे एक जनहित याचिका में तब्दील कर दिया और केन्द्र तथा राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में उनका जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई के लिए सात अप्रैल की तिथि निर्धारित की है।

  स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से शनिवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, देश में इस खतरनाक वायरस के अब तक 2902 पॉजिटिव केस आ चुके हैं। इस बीमारी से 184 लोग ठीक हो गए हैं या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। कुल 55 विदेशी भी इस बीमारी से पीड़ित हैं। अब तक 68 मरीजों ने कोरोना से जान गंवाई है। भारत सरकार की तरफ से लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जा रहा है, फैलने से रोकने के लिए कई कदम भी उठाए गए हैं। कोरोना से जुड़ी कोई जानकारी लेने या देने के लिए हेल्पलाइन नंबर +91-11-23978046 पर फोन किया जा सकता है।  अबतक कहां कितने मामले सामने आए,

मेडिकल सुविधाओं की कमी होती जा रही है

कोविड-19 से लड़ना अधिकारियों के लिए काफी अधिक चुनौतीपूर्ण रहने वाला है, क्योंकि अब तक वायरस देश के 30 फीसदी से भी अधिक जिलों में फैल चुका है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के कुल 720 जिलों में से 211 जिलों में कोरोना वायरस के मामले पाए जा चुके हैं। कुछ बड़े राज्यों में 60 फीसदी से भी अधिक जिलों में इंफेक्शन फैल चुका है, जबकि बहुत से राज्यों से 30 फीसदी से अधिक में संक्रमण फैला है। मौजूदा आंकड़े तब के हैं, जब सिर्फ 1965 पॉजिटिव मामले ही मिले थे, जबकि आज की तारीख में कुल संख्या 3000 के करीब जा पहुंची है। विशेषज्ञों का मानना है कि तमाम राज्यों में कोरोना वायरस का तेजी से फैलना इससे लड़ने के प्रयासों में रुकावट पैदा करेगा, क्योंकि इस वजह से टेस्टिंग किट और मेडिकल सुविधाओं की कमी होती जा रही है।

16000 रेस्पिरेटरी पंप, 5000 वेटिंलेटर की जरूरत
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च के प्रोफेसर संतोष अंशुमली के जिलेवार आंकड़ों औरर आईआईएससी के आलोक कुमार के अनुसार भारत को अप्रैल के अंत तक 16000 से भी अधिक रेस्पिरेटरी पंप चाहिए और करीब 5000 वेंटिलेटर की भी जरूरत है।.

देखें राज्यवार लिस्ट…

राज्य पॉजिटिव केस (55 विदेशी) डिस्चार्ज मौत
1. आंध्र प्रदेश 161 1 1
2. अंडमान निकोबार 10 0 0
3. अरुणाचल प्रदेश 1 0 0
4. असम 24 0 0
5. बिहार 29 0 1
6. चंडीगढ़ 18 0 0
7. छत्तीसगढ़ 9 3 0
8. दिल्ली 386 8 6
9. गोवा 6 0 0
10. गुजरात 95 10 9
11. हरियाणा 49 24 0
12. हिमाचल प्रदेश 6 1 1
13. जम्मू-कश्मीर 75 3 2
14. झारखंड 2 0 0
15. कर्नाटक 128 12 3
16. केरल 295 41 2
17. लद्दाख 14 3 0
18. मध्य प्रदेश 104 0 6
19. महाराष्ट्र 423 42 19
20. मणिपुर 2 0 0
21. मिजोरम 1 0 0
22. ओडिशा 5 0 0
23. पुदुचेरी 5 1 0
24. पंजाब 53 1 5
25. राजस्थान 179 3 0
26. तमिलनाडु 411 6 1
27. तेलंगाना 158 1 7
28. उत्तराखंड 16 2 0
29. उत्तर प्रदेश 174 19 2
30. पश्चिम बंगाल 63 3 3
कुल कोविड-19 मरीजों की स्थिति 2902 184 68

राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने कहा कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद बिना मास्क लगाए लोगों को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होगी.  सीएम योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा, राज्य सरकार 23 करोड़ जनता के लिए 66 करोड़ खादी के ट्रिपल लेयर स्पेशल मास्क बनवाएगी. ट्रिपल लेयर स्वदेशी खादी मास्क उत्तर प्रदेश का ब्रांड होगा. यह मास्क गरीबों को मुफ्त मिलेगा. बाकी लोगों को मास्क काफी सस्ता मिलेगा. यह मास्क रीयूज वॉशेबल होगा. प्रदेश के हर नागरिक को दो-दो मास्क दिया जाएगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि 14 अप्रैल को लॉकडाउन समाप्त होता है तो महामारी अधिनियम (Epidemic Diseases Act) के तहत सबको मास्क पहनना होगा. सीएम योगी आदित्यनाथ का निर्देश है कि बिना मास्क के घर के बाहर निकलने की बिल्कुल अनुमति नहीं होगी. 

वही इस समय दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपने-अपने देशों में स्वास्थ्य सेवाओं और आपदा प्रबंधन तंत्र को ज्यादा से ज्यादा सक्रिय और कारगर बनाने में जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में वे डॉक्टरों और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं। अस्पतालों का दौरा कर हालात का जायजा ले रहे हैं। कोरोना वायरस संक्रमण की वैश्विक चुनौती के इस दौर में जब यूरोपीय राष्ट्रवाद का शीराजा बिखर रहा है, डोनल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रवाद भी सवालों के घेरे में आ चुका है, परपीड़ा का आनंद देने वाली पाकिस्तान की बदहाली की गाथा का नियमित पाठ किया जाना क्‍या उचित है, सरकार अपने फ़ैसले का औचित्य साबित करने के लिए उस पर राष्ट्रवाद की पॉलिश कर देती है और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सुर में सुर मिलाकर भांगड़ा करने लग जाता है,
अनिल जैन

विशेष रिपोर्ट टी एन आई नई दिल्ली. ; पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की घोषणा की और कहा जनता कर्फ्यू को सफल बनाने के लिए कर्फ्यू के बाद शाम को 5:00 बजे थाली शंख घंटा जो भी हो उसे बजाकर ध्वनि शंखना जनता करें लोगों ने बढ़-चढ़कर जनता कर्फ्यू को सफल बनाया और अपने घरों से निकलकर शाम को 5:00 बजे ध्वनि शंखनाद किया जिसे जो मिला बजाने लगा लेकिन जनता द्वारा अपार समर्थन के बाद मोदी जी ने 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा कर दी अब मोदी जी ने 5 अप्रैल को रात्रि 9:00 बजे अंधेरा करके दीपक. टॉर्च. मोमबत्ती. मोबाइल.लाइट. जलाने का आह्वान किया है जैसे ही रात्रि को लोग मोदी के आह्वान पर यह सब करेंगे 14 अप्रैल से 19 अप्रैल तक लॉक डाउन से रिलीफ मिल जाएगा लेकिन 20 अप्रैल से 18 मई तक फिर जनता को लॉक डाउन का सामना करना पड़ेगा बाद में कुछ दिन की छूट दी जाएगी और फिर लॉक डाउन जारी रहेगा यानी कि सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं वह कोरोना वायरस का इलाज नहीं कर सकती इसलिए भगवान के भरोसे रहें और अपने आप को घरों में कैद कर लें यही इलाज है 71 साल की आजादी के बाद खरबों रुपया मेडिकल रिसर्च पर खर्च करने के बाद आज हम चौराहे पर खड़े हैं और हमारे पास इस वायरस का कोई इलाज नहीं है सरकार सीधे-सीधे नहीं कह सकती इसलिए उसने घुमा फिरा कर लॉक डाउन वाला फार्मूला अपनाया है अगर कोई वायरस का शिकार होगा तो सरकार यह कहकर पीछा छुड़ा लेगी कि तुमने लॉक डाउन का उल्लंघन किया होगा और घर पर नहीं रुके होंगे इसलिए सावधान रहे हैं अपना जो भी सावधानी रखकर अपने को और अपने परिवार को बचाइए यही सीधा सच्चा विकल्प है सारी दुनिया के डॉक्टर अभी वायरस का तोड़ निकालने का प्रयास कर रहे हैं अगर निकल गया तो ठीक है नहीं तो जनता जाए भाड़ में मुझे क्या पड़ी.सरकार एपिडेमिक एक्ट के तहत सभी लोगों को मास्क लगाना अनिवार्यता रखेगी और हो सकता है गरीब लोगों को सरकार अपनी ओर से मास्क उपलब्ध कराकर अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा ले.TNI

श्रवण गर्ग लिखते है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ठीक नौ बजे जिस बात का आह्वान किया, क्या देश की एक सौ तीस करोड़ जनता रात भर से सांसें रोककर इसी आह्वान की प्रतीक्षा कर रही थी? क्या वह कुछ ऐसा नहीं सोच रही थी कि मोदी दस दिनों के बाद ‘लॉकडाउन’ के सम्भावित तौर पर ख़त्म होने और उसके बाद बनने वाली परिस्थितियों में राष्ट्र से अपेक्षा का कोई संकेत देकर उसे आश्वस्त करेंगे? पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री इस समय दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्पर्क में हैं। कहाँ क्या चल रहा है, पल-पल की जानकारी उनके पास है। मुख्यमंत्रियों और अलग-अलग क्षेत्रों की हस्तियों से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए वे लगातार देश की नब्ज टटोलने में लगे हैं। तीन अवसर निकल चुके हैं। पहला आभार-तालियाँ बजवाने में, दूसरा लॉक डाउन की घोषणा में और तीसरा दिये-मोमबत्ती जलाने का आह्वान करने में। वह सब कहने से पहले जिसे कि जनता उनके मुँह से सुनना चाहती है, प्रधानमंत्री शायद कुछ और संदेश राष्ट्र के नाम जारी करना चाहते हैं। इस तरह की उम्मीदों के विपरीत कि मोदी इन सब बातचीतों का कोई निचोड़ फ़ैसलों के तौर पर देश के साथ शेयर करेंगे, क्या यह सुनकर निराशा नहीं हुई होगी कि ‘अब’ लोगों को अपने घर की बिजली की रोशनी गुल करके नौ मिनट के लिए दिये-मोमबत्तियाँ या टॉर्च को जलाना होगा? आख़िर किसलिए? क्या केवल इस एक क़दम से सम्पूर्ण देश के हित में कोई बड़ा मांगलिक कार्य सिद्ध होने जा रहा है? ग्रहों की स्थितियों के जानकार ही इस विषय पर ज़्यादा ‘रोशनी’ डाल सकते हैं। क्या प्रधानमंत्री को जनता पर अभी भी पूरा भरोसा नहीं है कि महामारी से लड़ने के उनके संकल्प और सरकार की तैयारियों को लेकर वे जो कुछ भी कहेंगे और चाहेंगे उसका पत्थर की लकीर की तरह पालन किया जाएगा? 

अनिल जैन अपने आलेख मे लिखतेे है कि देश के नीति-नियंता बने हुए लोगों की अपनी जिम्मेदारी से बेख़बरी और मगरुरी की यह इंतेहा ही कही जाएगी कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी लगातार ट्वीट कर सरकार को कोरोना के ख़तरे के प्रति आगाह कर रहे थे, लेकिन केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के तमाम प्रवक्ता उनकी चेतावनी को भ्रामक करार दे रहे थे, उन पर अफवाह फैलाने और लोगों को डराने का आरोप लगा रहे थे। राहुल गांधी की चेतावनियों को लेकर यही रवैया सरकार की शान में कूल्हे मटकाने वाली मीडिया का भी था। 

कोरोना वायरस संक्रमण की वैश्विक चुनौती के इस दौर में जब यूरोपीय राष्ट्रवाद का शीराजा बिखर रहा है, डोनल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रवाद भी सवालों के घेरे में आ चुका है, तब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राष्ट्रवाद का दिया जला कर तमाम जलते-सुलगते सवालों से बचने की हर मुमकिन कोशिश करते दिख रहे हैं।

दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपने-अपने देशों में स्वास्थ्य सेवाओं और आपदा प्रबंधन तंत्र को ज्यादा से ज्यादा सक्रिय और कारगर बनाने में जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में वे डॉक्टरों और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं। अस्पतालों का दौरा कर हालात का जायजा ले रहे हैं। 

 इसके अलावा वे प्रेस कॉन्फ्रेन्स में तीखे और जायज सवालों का सामना करते हुए लोगों की शंकाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कुछ भी करते नहीं दिख रहे हैं। बावजूद इसके कि यह महामारी हमारे यहां अघोषित रूप से तीसरे चरण में प्रवेश कर चुकी है। अघोषित रूप से इसलिए कि कई कारणों से सरकार इसके तीसरे चरण में प्रवेश को स्वीकार करने से बच रही है। 

देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का खोखलापन और इस महामारी का मुकाबला करने के लिए ज़रूरी संसाधनों तथा सरकार की इच्छा शक्ति का अभाव पूरी तरह उजागर हो चुका है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने सवालों से बचने के लिए अपनी चिर-परिचित उत्सवधर्मिता का सहारा लेते हुए इस आपदा काल को भी एक राष्ट्रीय महोत्सव में बदल दिया है। ऐसा महोत्सव जिसमें वे राष्ट्रवाद का तड़का लगाते हुए कभी ताली, थाली और घंटी बजाने का आह्वान करते हैं तो कभी दिया और मोमबत्ती जलाने का।

ताली, थाली, घंटा और शंख बजाने के आयोजन के बाद अब ‘मां भारती’ का अपने अंत:करण से स्मरण करते हुए रविवार की रात को नौ बजे, नौ मिनट तक दिया, मोमबत्ती, टॉर्च या मोबाइल फ़ोन की फ्लैश लाइट जलाने आह्वान किया गया है। 

देश में इस समय तीन सप्ताह का लॉकडाउन चल रहा है। बिना किसी तैयारी के अचानक लागू इस लॉकडाउन की वजह से महानगरों और बड़े शहरों से लाखों प्रवासी मजदूर अपने-अपने गांवों की ओर पलायन कर गए हैं। असंगठित क्षेत्र के करोड़ों लोगों के सामने न सिर्फ रोजगार का बल्कि लॉकडाउन की अवधि में अपना और अपने परिवार का पेट भरने का भी संकट खड़ा हो गया है। 

प्रधानमंत्री से उम्मीद थी कि वे देशवासियों से मुखातिब होते हुए इन लोगों के बारे में सरकार की ओर से कुछ फौरी उपायों का एलान करेंगे, कोरोना संक्रमण की चुनौती का सामना करने को लेकर सरकार की तैयारियों के बारे में देश को जानकारी देंगे और आश्वस्त करेंगे। 

उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अपने संबोधन में इस बेहद चुनौती भरे वक्त में भी सांप्रदायिक नफरत और तनाव फैला रहे अपने समर्थक वर्ग और मीडिया को कड़ी नसीहत देंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।

सवा ग्यारह मिनट के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने सिर्फ और सिर्फ इस संकट की घड़ी में देश की एकजुटता प्रदर्शित करने पर जोर दिया और इस सिलसिले में नौ मिनट तक अपने घरों की सारी लाइटें बंद कर दिया, मोमबत्ती, टॉर्च आदि जलाने का आह्वान किया। कहने की ज़रूरत नहीं कि प्रधानमंत्री का यह आह्वान देश के खाए-अघाए तबक़े यानी संपन्न और मध्य वर्ग के लिए ही है, क्योंकि आर्थिक और मानसिक तौर यही वर्ग इस आह्वान का पालन करने में समर्थ है।

इंतजार कीजिए 5 अप्रैल की रात 9 बजने का, जब देश में लंबे समय से गृह युद्ध का माहौल बनाने में जुटे और सरकार के ढिंढोरची की भूमिका निभा रहे तमाम न्यूज़ चैनलों के कैमरे उन लोगों के उत्साह से दमकते चेहरे दिखाएंगे, जिनके हाथों में डिजाइनर दीये या मोमबत्तियां होंगी, कीमती मोबाइल फोन्स के चमकते फ्लैश होंगे और होठों पर भारत माता की जय तथा वंदे मातरम का उद्घोष होगा। 

ऐसे समय में कुछ क्षणों के लिए वक्त का पहिया थम जाएगा, कोरोना के डरावने आंकड़े टीवी स्क्रीन से गायब हो जाएंगे और परपीड़ा का आनंद देने वाली पाकिस्तान की बदहाली की गाथा का नियमित पाठ भी थम जाएगा। भक्ति रस में डूबे तमाम चैनलों के मुग्ध एंकर हमें बताएंगे कि कैसे एक युगपुरुष के आह्वान पर पूरा देश एकजुट होकर ज्योति पर्व मना रहा है। 

ताली-थाली के आयोजन के समय भी किसी ने नहीं पूछा था और इस ज्योति पर्व की गहमा-गहमी में भी कोई पूछने वाला नहीं है कि जब भारत में कोरोना का आगमन जनवरी महीने में ही शुरू हो गया था, तो हमारे प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के अन्य जिम्मेदार लोग उस संकट के प्रति बेपरवाह होकर एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष और उसकी पत्नी व बेटी की आवभगत में क्यों बिछे हुए थे? हालात की गंभीरता देखते हुए क्या अमेरिकी राष्ट्रपति की वह भारत यात्रा स्थगित नहीं की जा सकती थी? 

महाबली ट्रंप के शाही स्वागत-सत्कार से फुर्सत पाने के बाद भी प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने कोरोना वायरस की चुनौती को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया। उसके बाद वे अपने दलीय राजनीतिक एजेंडे को प्राथमिकता में रखकर दल-बदल के जरिए विपक्षी दल की एक सरकार को गिराने का तानाबाना बुनने में जुट गए। अपने इस मिशन में पूरी तरह कामयाब होने के बाद ही कोराना वायरस की चुनौती पर उनका ध्यान गया।

अगर समय रहते ही एहतियात बरत लिया जाता और तमाम आपातकालीन उपाय कर लिए गए होते तो संक्रमित देशों से आने वाले विमानों पर रोक लग गई होती। 

जो लोग संक्रमित देशों से आ चुके थे, उन्हें हवाई अड्डों पर रोक कर ही उनकी स्क्रीनिंग कर ली जाती। उनमें से संक्रमित पाए जाने वाले लोगों को उनके स्वस्थ होने तक अलग-थलग रखने के लिए हवाई अड्डों के नजदीक हजारों एकड़ खाली पड़ी ज़मीन पर अस्थायी अस्पताल बना लिए होते। मगर ऐसा नहीं हुआ। 

भारत गणराज्य राज्यों का संघ है यानी यूनियन ऑफ़ स्टेट्स। देश के संविधान में भारत सरकार और राज्य सरकारों के अधिकारों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य ये दो विषय ऐसे हैं, जो केंद्र और राज्य दोनों के ही अधिकार क्षेत्र में हैं। कोरोना वायरस की चुनौती स्वास्थ्य से जुड़ा मसला है, लेकिन लॉकडाउन का मसला सीधे तौर पर क़ानून व्यवस्था से ताल्लुक रखता है। 

क्या यह नहीं हो सकता था कि लॉकडाउन लागू करने से पहले प्रधानमंत्री देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की आपात बैठक बुलाते। चार-पांच घंटे के नोटिस पर सभी मुख्यमंत्री कुछ घंटों के लिये दिल्ली आ जाते। प्रधानमंत्री के साथ उनकी बैठक होती। लॉकडाउन की स्थिति में पैदा होने वाली चुनौतियों से निबटने की आवश्यक तैयारी के लिए सभी मुख्यमंत्रियों को दो-तीन दिन का वक्त दे दिया जाता और फिर तीन दिन बाद रात में आठ बजे ही देशव्यापी लॉकडाउन का एलान किया जाता। 

कहने की ज़रूरत नहीं कि मोदी सरकार लगातार ग़लत फ़ैसले ले रही है, जिसका खामियाजा देश की बहुसंख्यक आबादी को भुगतना पड़ रहा है। सरकार अपने ग़लत फ़ैसले का औचित्य साबित करने के लिए उस पर राष्ट्रवाद की पॉलिश कर देती है और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सरकार के सुर में सुर मिलाकर भांगड़ा करने लग जाता है। सवाल यह है कि आखिर हम कब तक गंदगी को गलीचे के नीचे छुपाते रहेंगे और ग़लतियों से न सीखने की आपराधिक ग़लतियों का सिलसिला कब तक जारी रहेगा?

वही दूसरी ओर झारखण्‍ड हाईकोर्ट ने राज्‍य सरकार से सवाल पूछे है,

झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand, High court) ने शुक्रवार को राज्य सरकार से कोरोना (Coronavirus) महामारी से लड़ने की तैयारियों के बारे में नौ सवाल पूछे और मामले की सुनवाई के लिए सात अप्रैल की तारीख तय की है. झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता इंदरजीत सिन्हा के इस मामले में कोर्ट को 31 मार्च को भेजे एक ईमेल का स्वत: संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश डा. रविरंजन के नेतृत्व वाली खंड पीठ ने इसे एक जनहित याचिका में तब्दील कर दिया और केन्द्र तथा राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में उनका जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई के लिए सात अप्रैल की तिथि निर्धारित की है।

मुख्य न्यायाधीश डा. रविरंजन तथा न्यायमूर्ति एनएस प्रसाद की खंड पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सरकार से नौ सवाल पूछे हैं जिनमें कोरोना की राज्य में स्थिति, कोरोना से लड़ने के लिए बनाये गये अस्पतालों, पृथक केन्द्रों, उपकरणों, चिकित्सकों, नर्सों, बाहर से आये गये लोगों आदि का विवरण मांगा गया है।

न्यायालय ने यह भी पूछा है कि क्या राज्य के पास बाहर के राज्यों से आये ऐसे लोगों की संख्या है जिन्हें यहां से बाहर वापस भेज दिया गया?  साथ ही न्यायालय ने पूछा है कि राज्य में अब तक कुल कितने लोगों को पृथकवास में रखा गया और कितने लोगों की जांच की गयी है। इस मामले की सुनवाई सात अप्रैल को होगी।

कोरोना वायरस के चलते न्यायालय की कार्यवाही वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से की गयी।

झारखंड के मुख्य सचिव ने कोरोना वायरस को लेकर समीक्षा की
झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने शुक्रवार को यहां समीक्षा बैठक में कहा कि झारखंड में कोरोना पॉजिटिव के दो मामले मिलने के साथ हम महामारी के दूसरे चरण में हैं और अब हमें पूरी कोशिश करनी है कि तीसरे स्टेज में जाने से हर हाल में बचा जाए.

सिंह ने कहा, ‘‘यह संकट का समय है। हमारा समेकित प्रयास यह होना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का पता लगाकर, पृथक रखकर और जांच कराकर महामारी को दूसरे स्टेज से आगे नहीं बढ़ने दें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमें तैयारी तीसरे चरण से भी निटपने की रखनी है, ताकि समस्या आने पर किसी तरह की अफरा-तफरी की स्थिति नहीं रहे।’’

गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org

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