दलित-मुस्लिम एकता से बीजेपी की बढी चिंता

 कांग्रेस को घेरना होता है बीजेपी  आपातकाल को याद करती है.   प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल के 43 साल बाद कांग्रेस के वो दाग फिर से सामने रख दिये हैं. आपातकाल के लिए कांग्रेस को हमेशा कोसा गया  पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा, ‘कांग्रेस जब भी सत्ता से बाहर होती है, वो जानबूझकर भय का माहौल पैदा करती है. उन्होंने कहा कि पहले कहा जाता था कि ये जनसंघ और आरएसएस वाले मुसलमानों को काट देंगे और अब कह रहे हैं कि दलित संकट में है. देश में इस तरह का भय फैलाया जा रहा है कि अगर दो दोस्तों के बीच में भी लड़ाई हो जाती है तो गाना-बजाना शुरू कर देते हैं.’उन्होंने कहा कि ‘जब-जब कांग्रेस पार्टी को और खासकर एक परिवार को अपनी कुर्सी जाने का संकट महसूस हुआ है तो उन्होंने चिल्लाना शुरू किया है कि देश संकट से गुजर रहा है, देश में भय का माहौल है और देश तबाह हो जाने वाला है और इसे सिर्फ हम ही बचा सकते हैं.’  बीजेपी को मुसलमानों के नाम पर घेरा जाता रहा है. हालांकि वो इसकी परवाह भी नहीं करती. लेकिन अब दलितों के नाम पर निशाने पर लिया जा रहा है. संकट यहीं पर बड़ा हो जाता है. इस बिन्‍दु पर बीजेपी की कमजोर नस पर चोट पहुचती है, 

प्रधानमंत्री मोदी की बातों से इसी चिंता की झलक दिखती है. हाल के दिनों में कांग्रेस ने मुसलमानों से ज्यादा दलितों और पिछड़ों के नाम पर बीजेपी को घेरना शुरू कर दिया है.  बीजेपी के लिए यहीं से मुश्किल खड़ी हो गई है. वो मुसलमानों के नाम पर बदनामी लेने को तैयार हैं.  उन्हें इस बदनामी के बूते ध्रुवीकरण का फायदा मिलता है. लेकिन बीजेपी दलितों और पिछड़ों के नाम पर एक दाग भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है. इसलिए सफाई की हर मुमकिन गुंजाइश के साथ ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार की जो दलित और पिछड़ा विरोधी छवि गढ़ी जा रही है वो हकीकत नहीं है. तभी इस घटना से बीजेपी कठघरे में खडी हो जाती है, जब राष्ट्रंपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता कोविंद से बदसलूकी करने का मामला सामने आता है।

 

मंदिर के पुजारियों द्वारा राष्ट्रंपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता कोविंद से बदसलूकी करने का मामला

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। मंदिर के पुजारियों द्वारा राष्ट्रंपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता कोविंद से बदसलूकी करने का मामला सामने आया है। खबर के मुताबिक राष्ट्रपति और उनकी पत्नी इस साल 18 मार्च को जगन्नाथ मंदिर दर्शन के लिए गए थे जिस दौरान उनके साथ धक्काै-मुक्की की गई। इस घटना का खुलासा तब हुआ जब श्री जगन्ना थ मंदिर प्रशासन ने दोषी सेवकों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करने का फैसला किया। खबरों के मुताबिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस साल 18 मार्च को अपनी पत्नी के साथ जगन्नाथ मंदिर दर्शन के लिए गए थे। उसी दौरान मंदिर के कुछ सेवक राष्ट्रपति के काफी नज़दीक आ गए थे। सेवादारों के एक समूह ने राष्ट्रपति का रास्ता रोका और उनकी पत्नी को धक्का भी दिया। जिस कारण कोविंद और उनकी पत्नी को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति भवन ने इस घटना पर आपत्ति जताते हुए 19 मार्च को पुरी के कलेक्टर अरविंद अग्रवाल को सेवादारों के आचरण के खिलाफ नोट भेजा था, जिसके बाद श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने एक बैठक की थी। मंदिर के मुख्यज प्रशासक और आईएएस अधिकारी प्रदिप्तान कुमार महापात्रा ने बताया कि हमें राष्ट्र पति के कार्यालय से पत्र मिला है। इस मामले पर मंदिर प्रबंधन समिति से विचार-विमर्श किया गया है। मामले की जांच की जा रही है। महापात्रा ने इस बात का खंडन किया कि राष्ट्रैपति और उनकी पत्नीह के साथ दुर्व्य वहार हुआ। मंदिर सूत्रों के अनुसार कुछ सेवकों ने कथित रूप से राष्ट्रसपति का रास्तार ब्लॉ क कर दिया था। उस समय कोविंद गर्भगृह के अंदर पूजा करने जा रहे थे। मंदिर प्रशासन ने दोषी सेवकों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कुछ अन्य मंदिर अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्र पति के प्रोटोकॉल में मामूली चूक हुई थी। उन्हों ने कहा कि कुछ सेवक राष्ट्र पति से बात करना चाहते थे, इस वजह से वह उनके पास पहुंच गए।

दलित पिछड़ों के घर खाने का आंदोलन- 

 समरसता भोजन का मक़सद क्या है? सिर्फ खाना खाना या सामाजिक बदलाव के लिए जोखिम उठाना। जिन लोगों ने अपने घरों में छूआछूत की बंदिश लगाई है उनके घर समरसता भोजन होना चाहिए या जिन पर ये बंदिश लगी है उनके घर जाकर। सिम्पल बात है। अपराधी अगर बंदिश लगाने वाला है तो उसके घर जाकर ये परंपरा तोड़नी चाहिए।  बदलाव थाली में नहीं राजनीति में करने की ज़रूरत है। इसलिए हर कोई सांकेतिक सवालों की तलाश में है, कोई पिछड़े में अति पिछड़ा बना रहा है, कोई अति पिछड़े में कुछ को दलित बना रहा है तो कोई दलितों में महादलित। वोट की राजनीति नए समीकरण मांगती है। हमेशा सामाजिक बदलाव नहीं लाती है। सत्ता बदल जाती है मगर समाज नहीं बदलता।

 
ज्यादातर मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं करते. बीजेपी इस हकीकत को जानते हुए लापरवाह बनी रह सकती है. लेकिन मुसलमानों के साथ दलित और पिछड़ों के मन भी ये भावना आ जाए कि बीजेपी उनकी हमदर्द पार्टी नहीं है, ऐसा होना पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं देता. बीजेपी के लिए किसी भी तरह से ऐसी धारणा को पनपने से रोकना जरूरी हो गया है. इसलिए दलित मुस्लिम एकता और इसमें पिछड़ों के किसी भी तबके के शामिल होने की संभावना से रोकने की कोशिश करना जरूरी हो गया है. इसके लिए साम दाम दंड भेद, हर तरह के उपाय किए जा रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ इस मुद्दे के बहाने दलित-मुस्लिम एकता की हवा निकालने की कोशिश में हैं.

इसी कड़ी में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 24 जून को कन्नौज के एक कार्यक्रम में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दलितों को आरक्षण दिए जाने का मसला उठाया था. योगी आदित्यनाथ ने यूपी में दलित मुस्लिम एकजुटता को भांपते हुए एक नई तरह की बहस छेड़ दी.  उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर वो दलितों के इतने ही हमदर्द हैं तो एएमयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसे संस्थानों में दलितों को आरक्षण क्यों नहीं देते? योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘एक प्रश्न ये भी पूछा जाना चाहिए, जो कह रहे हैं कि दलित का अपमान हो रहा है….कि आखिर दलित भाइयों को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में भी आरक्षण देने का लाभ मिलना चाहिए, इस बात को उठाने का कार्य कब करेंगे?’ योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी दलितों को आरक्षण दे सकती है तो माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन का तमगा हासिल किए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी दलितों को कोटा क्यों नहीं दे सकती? योगी आदित्यनाथ इस मुद्दे के बहाने दलित-मुस्लिम एकता की हवा निकालने की कोशिश में हैं. इस मुद्दे को आगे भी बड़े पैमाने पर उठाने की तैयारी चल रही है. यूपी में पिछले दिनों चार सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी को शिकस्त मिल चुकी है. गोरखपुर और फूलपुर सीट समाजवादी पार्टी ने झटक ली. उसके बाद कैराना और नूरपुर के उपचुनाव में गठबंधन के हाथों बीजेपी को पराजय मिली.
 

 यूपी में इस फैक्टर की सिलसिलेवार कहानी दिखती है. देशभर में दलित उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर दलितों में नाराजगी बढ़ी तो उनके विरोध की आवाज को बुलंद करने मुसलमान भी साथ आ गए. गौ हत्या की घटनाओं में मुसलमानों के साथ दलित भी शिकार बने. इससे भी उनमें एकदूसरे के लिए हमदर्दी का भाव जगा है. जो माहौल बना है, उसमें दोनों समुदाय करीब आए हैं.

2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों में सुप्रीम कोर्ट के फेरबदल को लेकर दलितों ने भारत बंद बुलाया. इस बंद में हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हिंसा की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दलितों का सबसे ज्यादा आक्रोश देखने को मिला. शहर के नई मंडी थाने को आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस और दंगाइयों के बीच आमने-सामने की गोलीबारी हुई. कुछ स्थानीय नागरिक बताते हैं कि दलितों के बंद को मुसलमानों का भी समर्थन था. लोगों ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के दौरान दलित-मुस्लिम भाई-भाई के नारे भी लगे थे. इसलिए दलित-मुस्लिम गठजोड़ की बातों से इनकार नहीं किया जा सकता. सहारनपुर में दलित हिंसा के बाद पूरे पश्चिमी यूपी में सरकार को लेकर नाराजगी है. मोदी सरकार ने दलितों की नाराजगी दूर करने के लिए दलितों के घर खाना खाने और रात्रि प्रवास के कार्यक्रम रखे. लेकिन उसका बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिला है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित बहुल इलाकों में सरकार के खिलाफ एक गोलबंदी दिखती है.

 दलित-मुस्लिम एकता का उपचुनावों में   असर तो दिख गया. लेकिन 2019 में भी इसका असर दिखेगा यह भविष्‍य के गर्भ में है, वर्तमान परिस्थिति ने दलित मुसलमान को एकसाथ ला जरूर दिया है. कल को हालात बदल और तेजी से भी बदल सकते हैं.  

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