Durga-Saptashti- 8 चैत्र नवरात्रि की अष्टमी, बुधवार का योग 1 अप्रैल 20; & कूर्माचल परिषद की अपील

High Light# Himalayauk Bureau #कन्‍या पूजन? # 1 अप्रैल को चैत्र मास की नवरात्रि और बुधवार का योग#इस दिन देवी दुर्गा के साथ ही गणेशजी की भी विशेष पूजा# सही तरीके से पूजा की जाए तो सकारात्मक फल जल्दी #25 मार्च से शुरु हुई नवरात्रि की अष्टमी 1 अप्रैल को मनाई जा रही है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी रुप को पूजा जाता है। चलिए जानते हैं माता महागौरी के इस रूप को प्रसन्न करने के लिए कौन सा भोग लगाए, किस विधि पूजा करें व कौन सी आरती करें# कूर्माचल परिषद देहरादून अध्‍यक्ष कमल रजवार ने अपील की : Presented by C.S. JOSHI- EDITOR www.himalayauk.org (Leading Newsportal) Mob. 9412932030

चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन अष्‍टमी और नौवें दिन नवमी मनाई जाती है. इस बार अष्‍टमी 1 अप्रैल को है, जबकि नवमी 2 अप्रैल को मनाई जाएगी. इसी दिन राम नवमी का त्‍योहार भी है. आप अपनी सुविधानुसार अष्‍टमी या नवमी में से कोई भी एक दिन चुन सकते हैं. चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन अष्‍टमी और नौवें दिन नवमी मनाई जाती है. इस बार अष्‍टमी 1 अप्रैल को है, जबकि नवमी 2 अप्रैल को मनाई जाएगी. इसी दिन राम नवमी का त्‍योहार भी है.

अष्‍टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी कि महागौरी का पूजन किया जाता है. सुबह महागौरी की पूजा के बाद घर में नौ कन्‍याओं और एक बालक को घर पर आमंत्रित किया जाता है. सभी कन्‍याओं और बालक की पूजा करने के बाद उन्‍हें हल्‍वा, पूरी और चने का भोग दिया जाता है. इसके अलावा उन्‍हें भेंट और उपहार देकर विदा किया जाता है. वहीं, नवमी के दिन सिद्धिदात्री की पूजा के बाद कंजक पूजी जाती हैं. हालांकि, दोनों दिन में से किसी एक ही दिन कन्‍या पूजन करना किया जाता है. 

  मां दुर्गा के आठवें रूप महागौरी मां की पूजा करने से पुत्र ग्रह से जनित ग्रह दोष दूर होते हैं। व्यापार, दांपत्य जीवन, सुख-समृद्धि, धन आदि से वृद्धि मिलेगी। अभिनय, गायन, नृत्य आदि के क्षेत्र में सफलता मिलती है। त्वचा संबंधी रोगों में कमी आएगी। चमेली व केसर का फूल चढ़ाएं। आठवें दिन दुर्गा मां को नारियल का भोग लगाने से सन्तान संबंधी परेशानियों से छूटकारा मिलता है।

कन्‍या पूजन?

 अष्‍टमी के दिन कन्‍या पूजन के दिन सुबह-सवेरे स्‍नान कर भगवान गणेश और महागौरी की पूजा करें.  अगर नवमी के दिन कन्‍या पूजन कर रहे हैं तो भगवान गणेश की पूजा करने के बाद मां सिद्धिदात्री की पूजा करें.  कन्‍या पूजन के लिए दो साल से लेकर 10 साल तक की नौ कन्‍याओं और एक बालक को आमंत्रित करें. आपको बता दें कि बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है. मान्‍यता है कि भगवान शिव ने हर शक्ति पीठ में माता की सेवा के  लिए बटुक भैरव को तैनात किया हुआ है. कहा जाता है कि अगर किसी शक्‍ति पीठ में मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन न किए जाएं तो दर्शन अधूरे माने जाते हैं.  ध्‍यान रहे कि कन्‍या पूजन से पहले घर में साफ-सफाई हो जानी चाहिए. कन्‍या रूपी माताओं को स्‍वच्‍छ परिवेश में ही बुलाना चाहिए.   कन्‍याओं को माता रानी का रूप माना जाता है. ऐसे में उनके घर आने पर माता रानी के जयकारे लगाएं.   अब सभी कन्‍याओं को बैठने के लिए आसन दें.  फिर सभी कन्‍याओं के पैर धोएं.   अब उन्‍हें रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं.   इसके बाद उनके हाथ में मौली बाधें.   अब सभी कन्‍याओं और बालक को घी का दीपक दिखाकर उनकी आरती उतारें.   आरती के बाद सभी कन्‍याओं को यथाशक्ति भोग लगाएं. आमतौर पर कन्‍या पूजन के दिन कन्‍याओं को खाने के लिए पूरी, चना और हलवा दिया जाता है.   भोजन के बाद कन्‍याओं को यथाशक्ति भेंट और उपहार दें.
 इसके बाद कन्‍याओं के पैर छूकर उन्‍हें विदा करें.

Durga-Saptashti- 8 दुर्गा सप्तशती आठवा अध्याय :

 महर्षि मेघा ने कहा- चण्ड और मुण्ड नामक असुरों के मारे जाने से और बहुत सी सेना का नष्ट हो जाने से असुरों के राजा, प्रतापी शुम्भ ने क्रोध युक्त होकर अपनी सम्पूर्ण सेना को युद्ध के लिए तैयार होने की आज्ञा दी । उसने कहा- अब उदायुध नामक छियासी असुर सेनापति अपनी सेनाओं के साथ युद्ध के लिए जाये और कम्बू नामक चौरासी सेनापति भी युद्ध के लिए जाये और कोटि वीर्य नामक पचास सेनापति और धौम्रकुल नाम के सौ सेनापति प्रस्थान करें, कालक, दोह्र्द, मोर्य और कालकेय यह दैत्य भी मेरी आज्ञा से सजाकर युद्ध के लिए कूँच करें, भयानक शासन करने वाला असुरों का स्वामी शुम्भ इस प्रकार आज्ञा देकर बहुत बड़ी सेना के साथ युद्ध के लिए चला। उसका सेना को अपनी ओर आता देखकर चण्डिका ने अपनी धनुष की टंकोर से पृथ्वी और आकाश के बीच का भाग गूंजा दिया। हे राजन ! इसके पश्चात देवी के सिंह ने दहाडनय दैत्यों के नाश के लिए और देवताओं के हित के लिए ब्रम्हा, शिव, कार्तिकेय, विष्णु तथा इंद्र आदि देवों शक्तियां जो अत्यंत पराक्रम और  से सम्पन थीं, उनके शरीर से निकल कर उसी रूप में चण्डिका देवी  पास गई। जिस देवता का जैसा रूप था, जैसे आभूषण थे और जैसा वाहन था, वैसा ही रूप, आभूषण और वाहन लेकर, उन देवताओं की शक्तिया दैत्यों से युद्ध करने के लिए आई। 

वृषभ पर सवार होकर, हाथ में त्रिशूल लेकर, महानाग का कंकण पहन कर और चंद्ररेखा से भूषित होकर भगवान शंकर की शक्ति रसिंह भी आई, उसकी गर्दन के झटकों से आकाश के तारे टूट पड़ते थे और इसी प्रकार देवराज इंद्र की शक्ति ऐन्द्री भी ऐरावत के ऊपर सवार होकर आई, पश्चात इन देवशक्तियों से घिरे हुए भगवान शंकर ने चंडिका से कहा- मेरी प्रसन्नता के लिए तुम शीघ्र ही इन असुरों को मारो। इसके पश्चात देवी के शरीर में से अत्यंत उग्र रूप वाली और सैकड़ों गीदड़ियों के समान आवाज़ करने वाली चंडिका शक्ति प्रकट हुई, उस अपराजिता देवी ने धूमिल जटा वाले भगवन शंकर जी से कहा- हे प्रभो! आप मेरी ओर से दूत बनकर शुम्भ और निशुम्भ के पास जाइये और उन अत्यंत गर्वीले दैत्यों से कहिये तथा उनके अतिरिक्त और भी जो दैत्य वहाँ युद्ध के लिए उपस्थित हों, उनसे भी कहिये- जो तुम्हें अपने जीवित रहने की इच्छा हो तो त्रिलोकी का राज्य इंद्र को दे दो, देवताओं को उनका यज्ञ भाग मिलना आरंभ हो जाय और तुम पाताल को लौटे जाओ, किन्तु यदि बल के गर्व से तुम्हारी लड़ने की इच्छा हो तो फिर आ जाओ, तुम्हारे माँस से मेरी, योगिनियां तृप्त होगीं, चूँकि उस देवी ने भगवान शंकर को दूत के कार्य में नियुक्त किया था, इसलिए वह संसार में शिवदूती के नाम से विख्यात हुई। भगवान शंकर से देवी का सन्देश पाकर उन दैत्यों के क्जिस तरफ दौड़ती थी, उसी तरफ अपने कमण्डलु का जल छिड़क कर दैत्यों के वीर्य व बल को नष्ट कर देती थी और इसी प्रकार माहेश्वरी त्रिशूल से, वैष्णवी चक्र से और अत्यंत कोपवाली कौमारी शक्ति द्वारा असुरों को मार रही थी और ऐन्द्री के बाजु के प्रहार से सैकड़ों दैत्य रक्त की नदियाँ बहाते हुए पृथवी पर सो गए । 

वाराही ने कितने ही राक्षसों को अपनी थूथन द्वारा मृत्यु के घाट उतार दिया, दाढ़ों के अग्रभाग से कितने ही राक्षसों की छाती को चीर डाला और चक्र की चोट से कितनों ही को विदर्ण करके धरती पर डाल दिया । बड़े -२ राक्षसों को नारसिंही अपने नखों से विदर्ण करके भक्षण रही थी, शिवदूती के प्रचंड अट्टहास से कितने ही दैत्य भयभीत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और उनके गिरते ही वह उनको भक्षण कर गई। इस तरह क्रोध में भरे हुए मातृगणों द्वारा नाना प्रकार के उपायों से बड़े-बड़े असुरों को मरते हुए देखकर राक्षसी सेना भाग खड़ी हुई और उनको इस प्रकार भागता देखकर रक्तबीज नामक महा पराक्रमी राक्षस क्रोध में भरकर युद्ध के लिए आगे बढ़ा। उसके शरीर से रक्त की बूँदें पृथ्वी पर जिसे ही गिरती थीं तुरन्त वैसे ही शरीर वाला तथा वैसा ही बलवान दैत्य पृथ्वी से उत्पन्न हो जाता था। रक्तबीज गदा हाथ में लेकर इंद्री के साथ युद्ध करने लगा, जब इंद्रिशाक्ति ने अपने वज्र से उसको मारा तो घायल होने के कारण उसके शरीर से बहुत सा रक्त बहने लगा और उनकी प्रत्येक बूँद से उसके सामन ही बलवान तथा महा पराक्रमी अनेकों दैत्य भयंकर रूप से प्रकट हो गए, वह सब के सब दैत्य बीज के सामान ही बलवान तेज वाले थे, वह भी भयंकर अस्त्र-शस्त्र लेकर देवियो के साथ लड़ने लगे| जब इंद्री के वज्र प्रहार से उनके मस्तक पर चोट लगी और रक्त बहने लगा तो उसमे से हज़ारों हो पुरुष उत्पन्न हो गए| वैष्णवी ने चक्र से और इंद्री ने गदा से रक्तबीज को चोट पहुचाई और वैष्णवी के चक्र से घायल होने पर उनके शरीर से जो रक्त बहा, उससे हजारों महा आसुर उत्पन्न हुए, जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया, कौमारी ने शक्ति, से वाराही ने खड्ग से अरु माहेश्वरी ने त्रिशूल से उसको घायल किया| इस प्रकार क्रोध में भरकर उस महादैत्य से सब मातृ शकितयों पर पृथक-पृथक गदा से प्रहार किया, और माताओं ने शक्ति तथा शूल इत्यादि से उसको जो बार-बार घायल किया, उससे सैकड़ों महादैत्य उत्पन्न हुए और इस प्रकार उस रक्तबीज के रुधिर से उत्पन्न हुए असुरों से सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया जिससे देवताओं को भय हुआ, देवताओं को भयभीत देखर चंडिका ने काली से कहा- हे चामुण्डे ! अपने मुख को बड़ा करो और मेरे शास्त्र घात से उतपन्न हुए रक्त बिंदुओं तथा रक्त बिंदुओं से उत्पन्न हुए महा- असुरों को तुम अपने इस मुख से भक्षण करती जाओ|

इस प्रकार रक्त बिंदुओं से उत्पन्न हुए महादैत्यों को भक्षण करती हुई तुम रण भूमि में विचरो| इस प्रकार रक्त कम होने से यह दैत्य नष्ट हो जावेगे, तुम्हारे  भक्षण करने के कारण अन्य दैत्य उत्पन्न नहीं होगें| काली से इस प्रकार कहकर चंडिका देवी ने रक्तबीज पर अपने त्रिशूल  किया और काली देवी ने अपने मुख में उसका रक्त ले लिया, तब उसने गदा से चंडिका पर प्रहार किया, प्रहार से चंडिका को तनिक भी कष्ट न हुआ, किन्तु रक्तबीज के शरीर से बहुत सा रक्त बहने लगा, लेकिन उसके गिरने के साथ ही काली ने उसको अपने मुख में ले लिया| काली के मुख में उस रक्त से जो असुर उतपन्न हुए, उनको उसने  भक्षण कर लिया और रक्त को पीती गई, तदन्तर देवी ने रक्तबीज को जिसका की खून काली ने पिया था, चंडिका  दैत्य को वज्र,बाण, खंडग और ऋष्टि इत्यादि से मार डाला| हे राजन ! अनेक प्रकार के शस्त्रों से मारा हुआ और खून से वंचित वह महादैत्य रक्तबीज पृथ्वी पर गिर पड़ा| हे राजन ! उसके गिरने से देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और माताएं उन असुरों का रक्त पिने के पश्चात उद्धत हो कर नृत्य करने लगी| 

घर के मंदिर में पूजा की व्यवस्था करें। सबसे पहले मूर्तियों में श्रीगणेश और देवी दुर्गा का आवाहन करें। आवाहन यानी देवी-देवता को अपने घर आमंत्रित करें। आसन दें। मूर्तियों को स्नान कराएं। दूध, दही, घी, शहद और शकर मिलाकर पंचामृत बनाएं और इससे स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं। मूर्तियों को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। गणेशजी को जनेऊ पहनाएं। माताजी और गणेशजी को हार पहनाएं। इत्र अर्पित करें। तिलक लगाएं। धूप, कर्पूर और दीप जलाएं। आरती करें। परिक्रमा करें। भोग लगाएं, पान चढ़ाएं। गणेशजी को दूर्वा और माताजी को लाल चुनरी अर्पित करें। दक्षिणा अर्पित करें। गणेश के मंत्र श्री गणेशाय नम: और दुर्गा मंत्र दुं दुर्गायै नम: मंत्र का जाप करें। पूजा के अंत में अनजानी भूल के लिए क्षमा याचना करें। अन्य भक्तों को प्रसाद दें और स्वयं भी लें।

 अष्टमी पर करें माता महागौरी की ये विशेष आरती

जय महागौरी जगत की माया ।  जया उमा भवानी जय महामाया ।।

हरिद्वार कनखल के पासा ।  महागौरी तेरा वहां निवासा ।।

चंद्रकली ओर ममता अंबे ।  जय शक्ति जय जय मां जगदंबे ।।

भीमा देवी विमला माता । कौशिकी देवी जग विख्याता ।।

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा ।  महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ।।

सती &सत&य हवन कुंड में था जलाया ।  उसी धुएं ने रूप काली बनाया ।।

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया । तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ।।

तभी मां ने महागौरी नाम पाया । शरण आनेवाले का संकट मिटाया ।।

शनिवार को तेरी पूजा जो करता । मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ।।

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो । महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो ।।

कूर्माचल परिषद देहरादून अध्‍यक्ष कमल रजवार ने अपील की है कि चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन अष्‍टमी और नौवें दिन नवमी मनाई जाती है. इस बार अष्‍टमी 1 अप्रैल को है, जबकि नवमी 2 अप्रैल को मनाई जाएगी. इसी दिन राम नवमी का त्‍योहार भी है. आप अपनी सुविधानुसार अष्‍टमी या नवमी में से कोई भी एक दिन चुन सकते हैं.

वही महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने समस्‍त कूर्माचल परिषद तथा आम जन से अपीलककी है कि कोरोना वायरस महामारी के दौर में  दुर्गाष्टमी (Durgashtami)और राम नवमी (Ram Navami) के पर्व पर बच्चियों को बुलाकर, इकट्ठा कर या बैठाकर खाना खिलाना किसी भी हालत में उचित नहीं होगा. इससे कोरोनावायरस (Coronavirus) संक्रमण फैलने की आशंका काफी हद तक बढ़ जाती है. कोरोना जैसी महामारी के दौर के बीच आगामी दुर्गाष्टमी और रामनवमी पर प्रदेशवासी अगर बेसहारा, बेघर और जरूरतमंद बच्चियों को खाना बांटेंगे तो यह सही मायने में समाजसेवा होगी. जरूरतमंद बेटियों को फूड पैकेट देंगे तो उनको भरपेट भोजन मिल सकेगा और इस तरह से समाज की सेवा भी हो सकेगी.

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