हाटकालिका पूजन के बाद क्यो रण में उतरे हरदा ; युद्ध या मिशन में जाने से पहले इस मंदिर के दर्शन करते हैं जवान- कुमाऊ रेजिमेंट की आराध्य देवी

हाटकालिका मंदिर में विराजमान महाकाली इंडियर आर्मी की कुमाऊ रेजिमेंट की आरध्य हैं। बताया जाता है कि इस रेजिमेंट के जवान युद्ध या मिशन पर जाते हैं तो इस मंदिर का दर्शन जरूर करते हैं।  Execlusive Report by Chandra Shekhar Joshi- Editor Mob. 9412932030

उत्तराखंड की लालकुआं विधानसभा सीट से नामांकन कराने से  पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हाटकालिका के दर्शन करने मंदिर पहुंचें।  गगोलीहाट के पूज्य पंडितो, ब्राहमणो द्वारा लालकुआ में देवी की स्थापना की गई हैं,  हरीश रावत ने आज अपना नामांकन किया उससे पूर्व वह हाट कालिका के दरबार में पहुंचे, उन्होंने कहा की अब वो पिछले चुनावों की हार को देखते हुए गलतियां नहीं करेंगे  हरीश रावत ने कहा की इस समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है और उत्तराखण्ड की जनता अपने पूर्व सेवक हरीश रावत को मौका देना चाहती है, उनके मुताबिक इस बार लड़ाई उत्तराखण्ड को बचाने की नीतियों की है।

उत्तराखंड कुमाऊं रेजिमेंट की अराध्य देवी हैं माँ हाटकालिका माता बताया जाता है, कि हाटकालिका मंदिर में विराजमान महाकाली माता इंडियन आर्मी की कुमाऊँ रेजिमेंट की आरध्य देवी हैं। बताया जाता है कि इस रेजिमेंट के जवान युद्ध या मिशन पर जाते हैं तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करते हैं। यही कारण है कि इस मंदिर के धर्मशालाओं में किसी न किसी आर्मी अफसर का नाम जरूर मिल जाते हैं।

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पौराणिक दृष्टि से हाट कालिका महाशक्ति पीठ काफी महत्वपूर्ण है। स्कंदपुराण के मानस खंड में यहां स्थित देवी का वर्णन मिलता है। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर धाम जैसे शक्तिपीठ, तीर्थस्थल और ज्योतिर्लिंग है। इसके अलावे राज्य में कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपने आप में कई रहस्य को समेटे हुए हैं।

यहां पर मां काली खुद प्रकट हुई थी। यह मंदिर हाट कालिका के नाम से जाना जाता है।  हाट कालिका महाशक्ति पीठ देवदार के पेड़ों से चारो तरफ से घुरा हुआ है। पौराणिक दृष्टि से हाट कालिका महाशक्ति पीठ काफी महत्वपूर्ण है। स्कंदपुराण के मानस खंड में यहां स्थित देवी का वर्णन मिलता है। हाट कालिका मंदिर के बारे बताया जाता है कि यहां पर मां काली विश्राम करती है। यही कारण है कि शक्तिपीठ के पास महाकाली का विस्तर लगाया जाता है। बताया जाता है कि सुबह में इस विस्तर पर सिलवटें पड़ी होती हैं, जो संकेत देती है कि यहां पर किसी ने विश्राम किया था। बताया जाता है कि जो भी महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करता है वह रोग, शोक और दरिद्रता से दूर हो जाता है।

बताया जाता है कि 1971 में पाकिस्तान के साथ छिड़ी जंग के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में महाकाली की मूर्ति की स्थापना हुई थी। बताया जाता है कि ये सेना द्वारा पहली मूर्ति स्थापित की गई थी। इसके बाद कुमाऊ रेजिमेंट ने साल में 1994 में बड़ी मूर्ति चढ़ाई थी।

मूल  हाटकालिका मंदिर उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट शहर में स्थित हैं। गंगोलीहाट पिथौरागढ़ जिले की तहसील और उपमंडल मुख्यालय है। गंगोलीहाट देवी काली की हाट कालिका के शक्ति पीठों के लिए जाना जाता है। यंहा से 12 किलोमीटर दूर पाताल भुवनेश्वर मंदिर स्थित हैं। हाटकालिका का यह मंदिर माँ महाकाली माता को समर्पित भव्य आस्था और विश्वास का मंदिर है, हाटकालिका मंदिर घने देवदार के जंगलों के बीच में स्थित है।

माँ हाटकालिका मंदिर में दूर दूर से श्रद्धालु लोग आकर देवी काली माता के चरणों के दर्शन करते है। गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका मंदिर के बारे में पुराणों में भी उल्लेख मिलता है, प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार गुरु शंकराचार्य ने महाकाली माता का यह शाक्तिपीठ कुमाऊँ मंडल में भ्रमण करते समय स्थापित किया था। माँ हाटकालिका मंदिर का इतिहास इस प्रकार है, यह माना जाता है कि महाकाली माता ने पश्चिम बंगाल से इस जगह को अपने घर से स्थानांतरित कर दिया था और तब से इस क्षेत्र में लोकप्रिय देवी के रूप में पूजी जाती है। गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित यह शक्तिपीठ हजार वर्ष से अधिक पुराना है, देवी की शक्ति के अनुसार यह माना जाता है कि प्राचीन काल से इस मंदिर स्थल पर एक सतत पवित्र आग जलती है।  माँ हाटकलिका मंदिर के मान्यता के अनुसार, हाटकलिका माँ का रात में डोला चलता है। इस डोले के साथ माँ कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहा जाता है कि अगर कोई इस डोले को छू ले तो उसे दिव्य वरदान की प्राप्ति होती है। हाट कालिका मंदिर के बारे बताया जाता है कि यहां पर मां काली विश्राम करती है। यही कारण है कि शक्तिपीठ के पास महाकाली का विस्तर लगाया जाता है। बताया जाता है कि सुबह में इस विस्तर पर सिलवटें पड़ी होती हैं, जो संकेत देती है कि यहां पर किसी ने विश्राम किया था। बताया जाता है कि जो भी महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करता है वह रोग, शोक और दरिद्रता से दूर हो जाता है।

सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में हुई थी महाकाली की मूर्ति की स्थापना बताया जाता है, कि 1971 में पाकिस्तान के साथ छिड़ी जंग के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में महाकाली माता की मूर्ति की स्थापना हुई थी। बताया जाता है कि ये सेना द्वारा पहली मूर्ति स्थापित की गई थी। इसके बाद कुमाऊँ रेजिमेंट ने साल में 1994 में बड़ी मूर्ति चढ़ाई थी।

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