हिरदा कुमाऊनी नही रहे- कूमायूं के इस महान लोकगायक को नही मिली तवज्‍जो- दिल्‍ली सरकार ने उनको विशेष सम्‍मान से नवाजा

कुमाऊंनी लोकगीतों को नई दिशा व ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले और गढ़वाली- कुमाऊंनी,- जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली के पहले उपाध्यक्ष लोकगायक हीरा सिंह राणा का देर रात विनोद नगर दिल्ली स्थित आवास पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनके निधन पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, उत्तराखंड के लोक कलाकारों ने दुख जताया है।

कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार, संगीतकार, गायक हीरा सिंह राणा ने अपनी अंतिम प्रस्‍तुति- कूर्माचल परिषद देहरादून के एक कार्यक्रम में कूर्माचल भवन जीएमएस रोड देहरादून में दी जिसमें श्री बंशीधर भगत प्रदेेश अध्‍यक्ष भाजपा उत्‍तराखण्‍ड, श्री गणेश जोशी विधायक मसूरी, तथा श्री ममगाई सूचना आयुक्‍त उत्‍तराखण्‍ड तथा कूर्माचल परिषद के अध्‍यक्ष कमल रजवार, महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी, वरिष्‍ठ पदाधिकारी ललित जोशी एडवोकेट, सा0 सचिव बबीता शाह लोहनी समेत सैकडो गणमान्‍य जन उपस्‍थित थे- उन्‍होने सपत्‍पीक सबके साथ फोटो खिचवाई तथा उनके गीत पर श्री बंशीधर भगत तथा गणेश जोशी डांस करबैठे थे-

पहाड़ में लोगों को जीवन के उतार-चढ़ाव को हम सभी से साझा किया। पहाड़ की रौनकें, पहाड़ की खुशियां, पहाड़ के दुख और पहाड़ के जीवन को शब्दों के जरिये उकेरने वाले हिरदा अब इस दुनिया से चले गए हैं। कुमायू के इस महान लोकगायक को उत्‍तराखण्‍ड में राज्‍य स्‍तर से कभी विशेष तवज्‍जो नही दी गयी, दिल्‍ली सरकार ने उनको विशेष सम्‍मान से नवाजा

हीरा सिंह राणा 16 सितंबर 1942 से 13 जून 2020

कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार, संगीतकार, गायक हीरा सिंह राणा की मृत्यु की दुखद खबर आ रही है. हृदयाघात से आज सुबह ढाई बजे दिल्ली में उनका निधन हो गया. वर्तमान में वे दिल्ली में गठित कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष भी थे. वे 77 साल के थे.  हिरदा कुमाऊनी के नाम से भी पुकारे जाने वाले हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ. उनकी माता स्व: नारंगी देवी, पिता स्व: मोहन सिंह थे. प्राथमिक शिक्षा मानिला से ही हासिल करने के बाद वे दिल्ली मैं नौकरी करने लगे. नौकरी में मन नहीं रमा तो संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंचे और आजन्म कुमाऊनी संगीत की सेवा करते रहे. वे 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाने लगे थे.

कूर्माचल परिषद देहरादून ने दी भावभीनी श्रद्वांजलि-

कूर्माचल परिषद ने लोकगायक हीरा सिंह राणा के निधन पर गहरा दुख जताया है, केन्‍द्रीय अध्‍यक्ष कमल रजवार ने अपने संदेश में कहा है कि आज परमपिता परमेश्वर से मेरी अभ्यर्थना है कि उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान देते हुये परमगति प्रदान करें।

वही कूर्माचल परिषद के महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने शोक जताते हुए कहा है कि उत्तराखंड संगीत का एक सुर चला गया, कूर्माचल परिषद की सांसकतिक सचिव बबीता शाह लोहनी ने अपने संदेश में कहा है कि आपके जाने का अर्थ उत्तराखंड लोक संगीत के एक युग का अंत है, कूर्माचल परिषद के वरिष्‍ठ पदाधिकारी ललित चन्‍द्र जोशी एडवोकेट ने अपने शोक संदेश में कहा है कि विश्वास नहीं हो पा रहा है कि उत्तराखंड की संस्कृति, साहित्य,संगीत और परम्पराओं के हस्ताक्षर हमें एकाएक यूँ छोड़कर चले जाएँगे । कूर्माचल परिषद के वरिष्‍ठ पदाधिकारी ललित जोशी सचिवालय संघ- ने कहा कि ईश्वर पुण्यात्मा को शांति और अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करे एवं उनके परिवार सहित समूचे उत्तराखंड को इस अपूरणीय क्षति को वहन कर पाने की शक्ति प्रदान करें ।

16 सितंबर 1942 को अल्मोड़ा मनीला के डढोली गांव में जन्मे हीरा सिंह राणा का परिवार कुछ समय पहले दिल्ली में रह रहा था। देर रात निधन के बाद वो अपने पीछे पत्नी विमला और पुत्र हिमांशु को छोड़ गए हैं। उनका अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया जाएगा। उनके निधन पर पद्मश्री प्रीतम भरतवाण, सौरव मैठाणी, पन्नू गुसाईं, गजेंद्र सिंह चौहान, अमित गुसांईं आदि लोक कलाकारों ने गहरा दुख जताया।

फरवरी 2020 में भारत सरकार संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें अकादमी सलाहकार नियुक्त किया था। ‘रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’ आदि लोकगीतों के जरिए उन्होंने उत्तराखंडी संस्कृति को नई पहचान दिलाई। देहरादून में आखिरी बार हीरा सिंह राणा होली की पूर्व संध्या पर कुमाऊंनी संस्कृति के एक कार्यक्रम में आए थे, जहां उन्होंने गीतों की प्रस्तुति दी थी।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के महान लोक गायक, लोककवि व लोक संगीत के पुरोधा हीरा सिंह राणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने व परिवार को इस दु:ख को सहने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हीरा सिंह राणा के निधन से लोकसंगीत को अपूर्णीय क्षति हुई है।

कैसेट संगीत के युग में हीरा सिंह राणा के कुमाउनी लोक गीतों के अल्बम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे ज़माना जबर्दस्त हिट रहे.

उनके लोकगीत ‘रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी,’ कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में शुमार हैं. हीरा सिंह राणा को उनके ठेठ पहाड़ी विम्बों-प्रतीकों वाले गीतों के लिए जाना जाता है. वे लम्बे समय से अस्वस्थ होने के बावजूद कुमाऊनी लोकसंगीत की बेहतरी के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे.

उत्तराखंड के विख्यात लोकगायक और लोक कवि हीरासिंह राणा का दिल का दौरा पड़ने से आकस्मिक निधन हो गया है। वो 78 वर्ष की उम्र मे हम सभी को छोड़कर चले गए। वो अपने पीछे पत्नी बिमला और एक बेरोजगार पुत्र हिमांशू को छोड़ गए हैं। हीरा सिंह राणा जी का जन्म 16 सितंबर 1942 को अल्मोड़ा जिले के मनिला में डढोली गांव में हुआ था। अभूतपूर्व गीतों के रचयिता और न जाने कितनी बेमिसाल यादों को हमारे बीच छोड़ चुके हीरा सिंह राणा का जाना उत्तराखंड के लिए ब़ड़ी क्षति है। आपको याद होगा कि 2019 में सुप्रसिद्ध हीरा सिंह राणा जी को कुमांउनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी का पहला उपाध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की गई थी। फरवरी 2020 मे भारत सरकार संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें अकादमी सलाहकार नियुक्त किया था। उनके निधन की खबर सुनकर शोक की लहर है। देशभर में मौजूद उत्तराखंडियों बीच चंद घंटों मे ही निधन की खबर पहुचते ही दुःख की लहर छा गई है।

उन्हे संघर्ष करने की सीख प्रदान की थी। उन्होंने न जाने कितने युवाओं को सही जीवन जीने का रास्ता भी सुझाया था, जिसे एक मिशाल के रूप मे ही याद किया जायेगा। ये सब बातें इस लोकगायक की प्रसिद्धि व खासियत के रूप मे चर्चा का विषय पीढी दर पीढ़ी बना रहेगा। श्रोताओं के मध्य इस मौलिक रचनाकार की रचना और बेमिसाल गायन विधा की कला को कोई नही भूल पायेगा। इस लोकगायक के गीतों व रचनाओं को सुन प्रवास मे लोगों को गांव की याद आ जाती थी, उन्हे अपनी जड़ों से मिलने का अवसर मिलता था। अब महान लोकगायक व कवि की यादे ही शेष रह गई है, जनमानस के बीच, जो याद रहेंगी दशकों तक।

महज 15 साल की उम्र से पहाड़ की संस्कृति से जुड़कर लोक गीतों की रचना करने वाले हीरा सिंह राणा का नाम उत्तराँखण्ड के प्रमुख गायक कलाकारो में प्रथम पंक्ति में आता है। उन्हें लोग हीरदा कुमाऊनी के नाम से भी पुकारते हैं। हीरदा ने रामलीला, पारंपरिक लोक उत्सव, वैवाहिक कार्यक्रम से अपने गायन का सफ़र शुरू किया और बाद में आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ ही नहीं अपितु देश-विदेश में भी अपनी बेहद सुरीली आवाज में पहाड़ी लोक गीतों की धाक जमाई है।

जाने माने कवि, गीतकार एवं लोक गायक हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को मानिला डंढ़ोली जिला अल्मोड़ा में हुआ उनकी माताजी स्व: नारंगी देवी, पिताजी स्व: मोहन सिंह थे। राणा जी प्राथमिक शिक्षा मानिला में हुई। उन्होंने दिल्ली सेल्समैन की नौकरी की लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इस नौकरी को छोड़कर वह संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता चले गए और संगीत के संसार में पहुँच गए। इसके बाद हीरा सिंह राणा ने उत्तराखंड के कलाकारों का दल नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत 1974,  हिमांगन कला संगम दिल्ली 1992, पहले ज्योली बुरुंश (1971), मानिला डांडी 1985, मनख्यु पड़यौव में 1987, के साथ उत्तराखण्ड के लोक संगीत के लिए काम किया। इस बीच राणा जी ने  कुमाउनी लोक गीतों के 6- कैसेट ‘रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’ भी निकाले। राणा जी ने कुमाँउ संगीत को नई दिशा दी और ऊचाँई पर पहुँचाया। राणा ने ऐसे गाने बनाये जो उत्तराखण्ड की संस्कृति और रिती रीवाज को बखुबी दर्शाते हैं। यही वजह कि भूमंडलीकरण के इस दौर में हीरा सिंह राणा के गीत  खूब गाए बजाए जाते हैं।

वर्ष 2011 में हमारी संस्था “उत्तराखण्ड सांस्कृतिक समिति” ने हीरा सिंह राणा जी को एक सांस्कृतिक संध्या में ग्रेटर नोएडा में आमंत्रित किया था और राणा जी ने अपने सुपरहिट गीत रंगीली बिंदी, घाघर काई—हाई रे मिजाता से पूरे ग्रेटर नोएडा शहर को झूमने पर मजबूर कर दिया था. जिसे आप नीचे दिए गए विडियो में देख सकते हैं.

बीजेपी उत्‍तराखण्‍ड #Uttarakhand के लोकगायक व दिल्ली सरकार में गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष श्री हीरा सिंह राणा जी का निधन पूरे उत्तराखण्ड व देश के लिए अपूर्णीय क्षति है। भगवान उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दे।

Hansa Amola Ohhh god….बेहद बेहद दुखद समाचार- – उत्तराखंड के एक युग का अंत हैं- – एक लोकगायक जिसने पूरा जीवन संघर्ष में रहते हुए भी उत्तराखंड विशेष रूप से कुमाऊँ के गीतों का इतिहास रचा । उनके शब्द, उनका अनुभव, उनका संघर्ष, उनका गायन हर उत्तराखंडी के दिलों में सदैव स्थापित रहेगा । देवभूमि को आदरणीय *हीरा सिंह राणा* जी जैसे गायक सपूत पर सदैव गर्व रहेगा ।- अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंलि — ईश्वर उन्हेअपने चरणों में स्थान दें व परिवार को इस दुख को सहने की क्षमता दे । सोचा था dslr केमरे से उत्तराखंडी वेशभूषा में एक यादगार तस्वीर खिचवाऊगी इस बार राणा जी के साथ पर अफसोस .

Purushottam Sharma अलविदा हमारे दौर के प्यारे लोक गायक! बहुत ही दुःखद खबर। कुमाऊँनी लोक गायक और फिलहाल दिल्ली सरकार द्वारा उत्तराखंड की लोक भाषाओं के संरक्षण के लिए गठित अकादमी के उपाध्यक्ष हीरा सिंह राणा के अचानक जाने की खबर से स्तब्ध हूँ। खबर सुन कर भरोषा नहीं हुआ। फिर उनसे लगातार संपर्क में रहने वाले साथी चारु तिवारी से फोन किया तो उनके निधन की पुष्टि हुई। हीरा सिंह राणा एक लोक गायक ही नहीं, लम्बे समय तक उत्तराखण्ड में चलने वाले तमाम जन आंदोलनों के सहयोद्धा भी रहे। शादी होने से पूर्व उनके कंधे में लटका एक खादी का झोला ही उनकी गृहस्थी होती थी और जन आंदोलनों के हर मंच पर वे पहुंच जाते थे। इन्हीं जन आन्दोलनों से उन्हें लोक को समझने में काफी मदद मिलती थी। उनके ज्यादातर गीत चाहे संघर्ष के हों या प्यार के, उन्हीं श्रोतों की ऊर्जा और सौंदर्य से गुंथे होते थे। पर 2007 में मुझे तब आश्चर्य हुआ जब विधान सभा चुनाव के दौरान भतरौजखान में मैंने उन्हें भाजपा के प्रचार वाहन से उतरते देखा। जबकि उत्तराखण्ड की दुर्दशा के लिए वे कांग्रेस-भाजपा दोनों को समान भागीदार मानते थे। पता चला कि हीरा सिंह राणा इस चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार कर रहे हैं।

शादी के बाद वे दिल्ली में बस गए थे। लगभग 6 साल पूर्व उनसे भिकियासैंण (जिला अल्मोड़ा) में मुलाकात हुई। काफी परेशान दिख रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि मानिला (जिला अल्मोड़ा) में उनकी जमीन को उन्हीं भाजपा के प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर लिया है जिनके लिए वे चुनाव प्रचार कर रहे थे। वे उसी जमीन को वापस प्राप्त करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते थक रहे थे। वह जमीन उन्हें वापस मिली कि नहीं पता नहीं। हीरा सिंह राणा का ऐसे अचानक जाना उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के विकास के लिए एक बड़ा झटका है। पर अपने गीतों के जरिये वे हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगे।  अलविदा हमारे दौर के प्यारे लोक गायक, तुम्हें अंतिम सलाम!

पंकज सिंह महर एक हॄदय विदारक समाचार प्राप्त हुआ कि लोकगायक श्री हीरा सिंह राणा जी हमारे बीच नहीं रहे। लोकगायकी की असल पहचान राणा जी का अचानक चला जाना उत्तराखण्डी समाज के लिए दुःखद है। राणा जी ने अपने गीतों में हमेशा पहाड़ के दर्द को जगह दी और लोक की थात को बचाये रखा, जीवन यापन के लिए लोकविधा से छेड़छाड़ के वह प्रबल विरोधी थे। मेरी दो-तीन बार की संक्षिप्त मुलाकातों में मुझे वह जमीन से जुड़े एक ठेठ पहाड़ी और खुद्दार इंसान लगे। आज यह आवाज थम गई, मेरी नजर में उत्तराखण्ड के दो तीन ही लोकगायक हुए, जिन्होंने बाजार की नहीं सुनी और लोकथात को अक्षुण्ण रखा, राणा जी उनमें एक थे, वह सुरीला कंठ और वह ठेठ पहाड़ी अंदाज, उनकी सादगी बहुत याद आयेगा।

आज परमपिता परमेश्वर से मेरी अभ्यर्थना है कि उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान देते हुये परमगति प्रदान करें। त्यर पहाड़, म्यर पहाड़  होय दुःखों को डयर पहाड़  बुजुर्गों ले जोड़ पहाड़ राजनीति ले तोड़ पहाड़  ठेकेदारों ले फोड़ पहाड़  नांतिनों ले छोड़ पहाड़।

Maya Upadhyay बहुत दुःखद खबर उत्तराखंड के महान लोक गायक एव कवि ओर लोक संगीत में मेरे गुरु आदर्श श्री हीरा सिंह राणा जी का निधन,आपके जाने का अर्थ उत्तराखंड लोक संगीत के एक युग का अंत है,बचपन मे आपके सानिध्य में लोक संगीत के सम्बंध में बहुत कुछ सीखा,भगवान आपकीआत्मा को शांति प्रदान करे,ओर परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति।।ॐ शांति शांति शांति।।

हीरा सिंह अधिकारी  ऊँ शान्ति!  हमारे प्रेरणास्रोत आदरणीय हीरा सिंह राणा जी अब हमारे बीच नहीं रहे , विश्वास नहीं हो पा रहा है कि उत्तराखंड की संस्कृति, साहित्य,संगीत और परम्पराओं के हस्ताक्षर हमें एकाएक यूँ छोड़कर चले जाएँगे । ईश्वर पुण्यात्मा को शांति और अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करे एवं उनके परिवार सहित समूचे उत्तराखंड को इस अपूरणीय क्षति को वहन कर पाने की शक्ति प्रदान करें ।

Ved Bhadola  अलविदा हीरा सिंह राणा जी…  त्यर पहाड़, म्यर पहाड़ होय दुःखों को डयर पहाड़  बुजुर्गों ले जोड़ पहाड़  राजनीति ले तोड़ पहाड़ ठेकेदारों ले फोड़ पहाड़  नानतिनों ले छोड़ पहाड़

Rajen S. Sawant “हिरदा” मेरी आपको श्रधांजलि है मौन, शून्य कर दिया आपने, उसे भरेगा कौन? उत्तराखंड संगीत का एक सुर चला गया

Vinod Nautiyal  **नमः हीरा सिंह राणा**  नम: शब्द ही नमस्कार अथवा प्रणाम का सूचक है। जिस देवता का मन्त्र होता है, उसमें उसी देव को प्रणाम किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब हम किसी को प्रणाम करते हैं, तो हम अवश्य ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं। आज * हीरा सिंह राणा* पितृ देव हो गए है।

प्रणामोशीलस्य नित्यं राणा: । तस्य चत्वारि वर्धन्ते, आयु: विद्या यशो बलं।। अतः मोक्षमार्गम निश्चयति”- हिंदू धर्म मे संगीत (ऋग्वेद) को मोक्ष के सभी उपायों में से एक माना गया है अपने निवेश जीवन भर की तपस्या से उन्होंने बैकुण्ठ मे अपना स्थान मिल गया हैं।अब मेरा उनके लिऐ प्रभु के चरणों में स्थान मांगने का कोई अर्थ नही है। प्रभु परिवार को दुःख सहने शक्ति दे। श्रद्धांजलि ।

Mahi Singh Mehta  बेहद दुःखद समाचार।  उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक हीरा सिंह राणा जी हमारे बीच नही रहे। भगवान उनको अपने चरणों मे स्थान दे।

Ashish Joshi  *उत्तराखंड में शोक की लहर*  अत्यंत दुखद समाचार उत्तराखंड के सुर सम्राट, उत्तराखंड भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष दिल्ली एवं *उत्तरांचल भ्रात्रि सेवा संस्थान**के मुख्य सलाहकार आदरणीय श्री हीरा सिंह राणा जी का *अचानक दिल का दौरा पढ़ने से 2:30 बजे* उनका स्वर्गवास हो गया है उत्तराखंड में शोक की लहर भगवान इस दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें एवं इस दुख की घड़ी में उनके परिवार को इस दुख से लड़ने की शक्ति प्रदान करें   *ओम शांति ओम*

Subhash Kandpal  बहुत दुःखद खबर….उत्तराखण्ड के सुप्रसिद्ध लोक गायक आदरणीय श्री हीरा सिंह राणा जी के आकस्मिक निधन की खबर से स्तब्ध हूँ….हीरा सिंह राणा जी का यूँ अचानक चला जाना…. उत्तराखण्ड लोक संगीत के लिये अपूरणीय क्षति है….ईश्वर इस पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करे…ॐ शांति

Devki Sharma  #बेहद दुःखद समाचार आज #उत्तराखंड के महान सुर सम्राट व #लेखक_लोकगायक_साहित्यकार और #दिल्ली_सरकार में #गढ़वाली_कुमाऊँनी_और_जौनसारी भाषा अकादमी के #उपाध्यक्ष श्री #हीरा_सिंह_राणा जी का अचानक हम सबके बीच से यूँ चले जाना #उत्तराखंड कला जगत को बहुत बड़ी क्षति है एवं #एक युग का अंत हो गया है। #ईश्वर से प्रार्थना करतें है #पुण्य आत्मा को अपने #श्री चरणों में स्थान दें व #परिजनों को इस #दुःखद घड़ी को सहने की #शक्ति प्रदान करें #ॐ शांति #ॐ

Kandpal Dinesh  *उत्तराखंड में शोक की लहर*  अत्यंत दुखद समाचार उत्तराखंड के सुर सम्राट, उत्तराखंड भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष दिल्ली एवं *उत्तरांचल भ्रात्रि सेवा संस्थान**के मुख्य सलाहकार आदरणीय श्री हीरा सिंह राणा जी का *अचानक दिल का दौरा पढ़ने से 2:30 बजे* उनका स्वर्गवास हो गया है भगवान इस दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें एवं इस दुख की घड़ी में उनके परिवार को इस दुख से लड़ने की शक्ति प्रदान करें

डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी  बहुत दुखद समाचार,  कवि, स्वर सम्राट, सरल स्वभाव के धनी श्रद्धेय श्री हीरा सिंह राणा अब हमारे बीच नहीं रहे, वे कुछ दिनो से अश्वस्थ चल रहे थे।   उनको भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए, ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी पवित्र आत्मा को ईश्वर अपने चरणों में स्थान दें,   वे दिल्ली सरकार द्वारा गठित गढवाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर आसीन थे, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे तथा उनके दुखी परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे। ॐ शान्ति, ॐ शान्ति

Om Badhani  अभी-अभी उत्तराखण्डी गीत संगीत के महानायक श्रद्धेय हीरा सिंह राणा जी निधन के शोक समाचार प्राप्त हुआ हृदय को गहरी वेदना हुयी है,उत्तराखण्डी कुमाउनी गीत संगीत के संरक्षण संवर्धन में उनके अमूल्य योगदान का कोई पर्याय नही है वे आजीवन कुमाउनी लोक संगीत की सेवा में लीन रहे ,वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला श्रीनगर में उनसे अंतिम भेंट हुयी थी वे क्षण आंखों के सम्मुख आ रहे हैं,वे जितने उत्कृष्ठ व श्रेष्ठ कलाकार थे उतने ही सरल व जमीन से जुड़े इंसान थे, उनका चले जाना उत्तराखण्डी गीत संगीत व लोकसंस्कृति की अपूरणीय क्षति है ,ईश्वर पुण्यात्मा को शांति प्रदान करें ॐ शांति ।।.

Vinod Nautiyal

**नमः हीरा सिंह राणा**

नम: शब्द ही नमस्कार अथवा प्रणाम का सूचक है। जिस देवता का मन्त्र होता है, उसमें उसी देव को प्रणाम किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब हम किसी को प्रणाम करते हैं, तो हम अवश्य ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं। आज * हीरा सिंह राणा* पितृ देव हो गए है।

प्रणामोशीलस्य नित्यं राणा: । तस्य चत्वारि वर्धन्ते, आयु: विद्या यशो बलं।।

अतः मोक्षमार्गम निश्चयति”- हिंदू धर्म मे संगीत (ऋग्वेद) को मोक्ष के सभी उपायों में से एक माना गया है अपने निवेश जीवन भर की तपस्या से उन्होंने बैकुण्ठ मे अपना स्थान मिल गया हैं।अब मेरा उनके लिऐ प्रभु के चरणों में स्थान मांगने का कोई अर्थ नही है। प्रभु परिवार को दुःख सहने शक्ति दे। श्रद्धांजलि ।

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