मार्गशीर्ष 20 नवंबर से – 19 नवंबर सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण-22: नवंबर 2021 से अप्रैल 2022 तक 45 मुहूर्त

22: नवंबर 2021 से अप्रैल 2022 तक शादी के 45 मुहूर्त —-

 ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, नवंबर 2021 से लेकर अप्रैल 2022 तक शादियों के करीब 45 मुहूर्त हैं। हालांकि दिसंबर में मलमास लगने के कारण शादियों पर एक बार फिर ब्रेक लग जाएगा। जानिए शादियों के मुहूर्त के बारे में — नवंबर 2021: 14, 15, 16, 20, 21, 22, 28, 29 और 30 नवंबर –दिसंबर 2021: 1, 2, 6, 7, 8, 9, 11 और 13 दिसंबर –जनवरी 2022: 22, 23, 24 और 25 जनवरी — फरवरी 2022: 5, 6, 7, 9, 10, 11, 12, 18, 19, 20 और 22 फरवरी — मार्च 2022: 4 और 9 मार्च —- अप्रैल 2022: 14, 15, 16, 17,19, 20, 21, 22, 23, 24 और 27 अप्रैल

वैकुंठ चतुर्दशी एक ऐसी धार्मिक परंपरा की साक्षी बनती है जो हरि और हर के मिलन के रूप में जानी जाती है. ये अदभुत मिलन भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में होता है. भगवान शिव स्वयं पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश के दरबार में पहुंचकर सृष्टि का भार उन्हें सौंपते हैं.

580 सालों में सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को लगेगा। यह सुबह 11.32 बजे शुरू होगा। शाम 5.22 बजे समाप्त होगा। भारत में दोपहर 2.34 बजे दिखाई देगा।

महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी आशीष गुरु के मुताबिक देवसुनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपना पूरा कार्यभार भगवान महाकाल अर्थात शिव को सौंप कर देव लोक में निवास करने चले जाते हैं.

हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष का महीना 20 नवंबर से शुरू होगा। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। भगवान शिव ने इसी दिन राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी खुशी के साथ देवताओं ने दीपक जलाकर उत्सव मनाया। इसे देव दिवाली के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन श्री हरि की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है।

सनातन मान्यताओं के मुताबिक लगभग 4 महीने का समय रहता है, जब कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. इस दौरान भगवान शिव के पास सृष्टि का भार रहता है. वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान महाकाल साल में एक बार रात्रि के समय पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश के आंगन में पहुंचते हैं. द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पर भगवान राजाधिराज की सवारी पहुंचती है. जहां हरि और हर का मिलन होता है. ये अदभुत मिलन केवल दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की धार्मिक परंपराओं में ही देखने को मिलता है.

मान्यता है कि वैकुंठ चतुर्दशी पर एक बार फिर भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को सौंप कर कैलाश लोक में निवास करने चले जाते है. ये अद्भुत परंपरा भगवान महाकाल के पंडे पुजारियों के साथ-साथ द्वारकाधीश के पंडे पुजारियों द्वारा संयुक्त रुप से निभाई जाती है.

 19 नवंबर को खगोलीय घटना  —– इस दिन साल का आखिरी चंद्र ग्रहण है। यह 580 वर्षों में लगने वाला सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण होगा। बता दें चंद्र ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में चला जाता है। चंद्र ग्रहण का असर सभी लोगों पर पड़ता है। 

श्रद्धालुओं द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं जबकि भगवान विष्णु की तुलसी प्रिय है लेकिन हरिहर मिलन के दौरान भगवान महाकाल को तुलसी की माला पहनाई जाती है जबकि भगवान विष्णु को बेलपत्र की माला अर्पित की जाती है. ये सब कुछ वर्ष में एक बार वैकुंठ चतुर्दशी पर उज्जैन में देखने को मिलता है.

वैकुंठ चतुर्दशी पर रात्रि के समय भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है. इस दौरान महाकाल मंदिर के पंडे पुजारियों द्वारा जमकर आतिशबाजी भी की जाती है. भगवान महाकाल की सवारी शाही ठाठ बाट के साथ गोपाल मंदिर पहुंची है. यहां पर सभी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन कर शिव और विष्णु की एक साथ आरती उतारी जाती है, जिसके बाद फिर भगवान महाकाल की पालकी मंदिर के लिए रवाना हो जाती है.

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