मशरूम हिमालयी अर्थ व्यवस्था में बदलाव – डा0 निशंक का संसद में प्रभावी सम्‍बाेधन

मशरूम उत्पादन से होगा हिमालयी अर्थ व्यवस्था में बदलाव – ‘निशंक‘
हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से सासंद व सरकारी आष्वासन संसदीय समिति के सभापति तथा पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड डॉ० रमेष पोखरियाल निषंक ने   लोक सभा में प्रश्नकाल के तहत हिमालय क्षेत्र में बेरोजगारी व पलायन पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए हिमालयी राज्यों की आर्थिकी में मषरूम उत्पादन के महत्व को रेखांकित करते हुए सरकार से पूछा कि संपूर्ण देष में राज्यवार मषरूम उत्पादन की क्या स्थिति है। डॉ० निषंक ने कृशि मंत्री से हिमालीय राज्यों में मषरूम की विषेश प्रजातियां/किस्मों को उगाने के लिए सरकारी योजनाओं का ब्यौरा मांगा। डॉ० निषंक ने मंत्री से यह भी जानना चाहा कि अभी तक कितने किसान इनसे लाभान्वित हुए हैं। डॉ० निषंक ने मषरूम उत्पादन क्षेत्र के साथ खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की आवष्यकता को रेखांकित करते हुए इस बाबत सरकारी योजनाओं की विस्तृत जानकारी मांगी।

हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से सासंद व सरकारी आश्वासनों संबंधी संसदीय समिति   के सभापति तथा पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड डॉ० रमेष पोखरियाल निषंक का संसद में प्रभावी सम्‍बाेधन 

 
वस्तुतः मशरूम की खेती बंद कमरों में की जाने वाली खेती है। यह कई बीमारियों जैसे बहुमूत्र, खून की कमी, बेरी-बेरी, कैंसर, खाँसी, मिर्गी, दिल की बीमारी में लाभदायक होता है। इसकी खेती कृषि, वानिकी एवं पशु व्यवसाय सम्बन्धी अवशेषों पर की तथा उत्पादन के पश्चात बचे अवशेषों को खाद के रूप में उपयोग कर लिया जाता है। उत्पादन हेतु बेकार एवं बंजर भूमि का समुचित उपयोग मशरूम गृहों का निर्माण करके किया जा सकता है। इस प्रकार यह किसानों एवं बेरोजगार नवयुवकों के लिए एक सार्थक आय का माध्यम हो सकता है।मशरूम उत्पादन किसी भी बंद जगह में किया जा सकता है जहाँ हवा के आने-जाने (वेंटिलेशन) हेतु थोडी-बहुत व्यवस्था भी हो। यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं कि मशरूम उत्पादन हेतु पक्की अथवा कच्ची जगह ही चाहिए। मशरूम उत्पादन पक्के मकानों के कमरों में भी किया जा सकता है अथवा मिट्टी के कच्चे घरों में भी। अगर कमरे नहीं भी है तब भी खाली जगह में घांस फूस की कच्ची झोपडी बना कर भी मशरूम की खेती की जा सकती है। छत के रूप में पक्की छत, सीमेंट की चादरें अथवा कच्चा छप्पर बना कर भी खेती की जा सकती है किन्तु टीन की चादरों वाले कमरों में मशरूम की खेती नहीं की जानी चाहिए। अगर कोई और उपाय नहीं है तो टीन की चादरों के ऊपर बोरियां डाल कर ऐसे स्थान को भी खेती हेतु उपयोग किया जा सकता है।
 

डॉ० निषंक के प्रष्न के उत्तर में मंत्री ने बताया कि देष में कुल एक लाख ३३ हजार ७३२ टन मषरूम का उत्पादन होता है जिसमें से उत्तराखंड में १० हजार टन से ज्यादा का उत्पादन है। उत्तराखंड में ३०० से अधिक किसान इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं । कुल मिलाकर ५००० काष्तकार इस उद्योग में लगे हैं । कृशि मंत्री ने आगे बताया कि सरकार ने एक सक्षम निगरानी तंत्र बनाया है। मंत्री ने आगे बताया कि मषरूम से जुडी खाद्य प्रसंस्करण इकाई तंत्र का अभाव है। डॉ० निषंक को मंत्री ने आगे बताया कि देष में विभिन्न कृशि एवं बागवानी योजनाओं का कार्यान्वयन तेजी से किया जा रहा है। केन्द्रीय कृशि मंत्री की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति के माध्यम से बागवानी से जुडी योजनाओं की निगरानी की जाती है। राज्य, जिला और पंचायती स्तर पर सरकारी कार्यक्रमों की निगरानी करती है। सरकार ने यह भी बताया कि सरकार समेकित बागवानी मिषन के तहत पहाडी राज्यों में किसानों को मषरूम उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। मषरूम अनुसंधान संस्थान द्वारा बटन मषरूम और सीटेक मषरूम की कई किस्में तैयार की गयी हैं । राज्य विस्तार प्रभागों के जरिए सरकार तापमान एवं जलवायु अनुकूलन करने के लिए विभिन्न किस्मों को तैयार किया गया है। डॉ० निषंक ने इस बात पर बल दिया कि कौषल विकास योजना के तहत मषरूम उत्पादन को बढावा दिया जाना चाहिए ताकि क्षेत्र की आर्थिकी के साथ-साथ पलायन की गम्भीर समस्या से निपटा जा सके। पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को इस क्षेत्र में प्रषिक्षण दिया जाना चाहिए।

सामान्य रूप से छत्तेदार खाद्य फफूंदी (कवक) को मशरूम या खुंभी कहते हैं। झारखंड में इसे लोग प्रायः खुखडी के नाम से जानते हैं। प्रायः मशरूम में ताजे वजन के आधार पर ८९-९१ प्रतिशत पानी, ०.९९-१.२६ प्रतिशत रसायन २.७८-३.९४ प्रतिशत प्रोटीन, ०.२५-०.६५ प्रतिशत वसा, ०.०७-१.६७ प्रतिशत रेशा, १.३०-६.२८ प्रतिशत कार्बेहांइड्रेट और २४.४-३४.४ किलो केलोरी ऊर्जामान होता है। यह विटामिनों जैसे बी १, बी २, सी एंड डी एवं खनिज लवणों से भरा होता है।

मशरूम उत्पादन हेतु पूरी तरह अंधकारमय जगह की आवश्यकता नहीं होती। इस खेती के लिए ऐसा स्थान उपयुक्त माना जाता है जहाँ रौशनी तो आती हो किन्तु सूरज की सीधी रौशनी अर्थात धूप अन्दर ना आती हो। अगर आती है तो खिडकियों पर बोरियां लगा कर उस धूप को रोक दिया जाता है।
मशरूम उत्पादन हेतु उपयोग में आने वाली सामग्री को हम दो भिन्न-भिन्न श्रेणियों में बाँट सकते हैं। पहली श्रेणी में वो सामग्री आएगी जो स्थाई है अर्थात जिनको बार-बार अथवा हर बार नहीं खरीदना होता जैसे बांस, टाट के खाली बोरे, पानी की टंकियां, रस्सियाँ आदि।
दूसरी श्रेणी में हम कार्यशील सामग्री को रखते है जिनको हर बार नए उत्पादन हेतु खरीदना होता है जैसे गेंहूं का भूंसा अथवा चावन का पुआल/पैरा, बीज (स्पान), पन्नी, पानी, कुछ केमिकल्स जैसे फोर्मलिन, बाविस्टीन तथा नुवान आदि।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि ऑयस्टर मशरूम उत्पादन हेतु बहुत ही साधारण वस्तुओं की आवश्यकता होती है जो आसानी से कहीं भी उपलब्ध हो सकती है तथा जिनका मूल्य भी बहुत अधिक नहीं होता है।

प्रस्‍तुति- 

हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड 

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