राधा अष्टमी 26 अगस्त – ग्रहों की स्थिति काफी शुभ- अमृत सिद्धि योग

HIGH LIGHT# Himalayauk Bureau # कृष्ण ने अंत समय में राधा को क्यों स्मरण किया   # विदा तो भिन्न को किया जाता है। हम दोनों अभिन्न हैं, तो विदाई कैसी?  # कृष्ण के महप्रयाण की खबर को भी राधा सहज सुन गईं # कृष्ण ने त्याग उन्हीं का किया, जिन्होंने कृष्ण को विदा दी # by Chandra Shekhar Joshi Editor Mob. 9412932030; Watch FB LIVE; 6pm to Chandra Shekhar Joshi FB ID

जिसने राधा जी को प्रसन् कर लिया उसे भगवान कृष्ण भी मिल जाते हैं। इसलिए इस दिन राधा-कृष्ण दोनों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में राधा जी को लक्ष्मी जी का अवतार माना गया है। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन भी किया जाता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को रखने से व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।  जिस तरह जन्माष्टमी मनाई जाती है, उसी तरह मथुरा, वृंदावन, बरसाना, रावल और मांट के मंदिरों में राधा अष्टमी भी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। रसाना, नन्दगांव तथा रावल में राधा जन्मोत्सव की तैयारियां बहुत खास होती हैं।

Radha Ashtami 2020:  हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस मौके पर उत्तर प्रदेश के बरसाना में हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं. बरसाना को राधा का जन्म स्थान माना जाता है. बरसाना में पूरी रात चहल पहल रहती है. कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है. कार्यक्रमों की शुरुआत धार्मिक गीतों और भजन से होती है. भक्त इस मौके पर उपवास रखते हैं. ऐसा कहा जाता है कि राधा अष्टमी का उपवास रखनेवाले को उनका दर्शन होता है. इस बार राधा अष्टमी का उपवास 26 अगस्त के दिन रखा जाएगा.

देवी राधा को देवी लक्ष्मी का ही अंश माना जाता है जो भगवान  श्रीकृष्ण की लीला में सहयोग करने के लिए प्रकटी थीं।  धार्मिक मान्यता है कि देवी राधा के जन्मदिन यानी भाद्र शुक्ल   अष्टमी से कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक जो साधक देवी राधा की पूजा करते हैं और राधा मंत्रों का जप करते हैं उन पर कुबेर और देवी लक्ष्मी की खास कृपा हो जाती है।

इस बार राधा अष्टमी त्योहार के शुभ मुहूर्त की शुरुआत आज 12:21 बजे से हो रही है. कल 26 अगस्त को सुबह 10:39 बजे शुभ मुहूर्त का समापन होगा. ये त्योहार कृष्ण जन्म अष्टमी की तरह विशेष कर मथुरा, वृंदावन और बरसाना में बड़े ही धूमधाम और श्रद्गा से मनाया जाता है. माना जाता है कि राधा रानी का जन्म इसी दिन हुआ था. इसलिए देश के अन्य जगहों पर श्रद्धालु त्योहार को बड़े ही उत्साह से मनाते हैं.

सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5 बजकर 56 मिनट से दोपहर 1 बजकर 04 मिनट तक रहेगा , 25 अगस्त दिन मंगलवार को 06 बजकर 40 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू , 26 अगस्त दिन बुधवार को अष्टमी तिथि 02 बजकर 12 मिनट तक , राधा अष्टमी के दिन चंद्रमा वृश्चिक राशि और अनुराधा नक्षत्र में रहेगा. सूर्य सिंह राशि में, बुध सिंह राशि में, राहु और शुक्र मिथुन राशि में, गुरु और केतु धनु राशि में, शनि अपनी स्वंय की राशि मकर में और मंगल अपनी मूल त्रिकोण राशि मेष में स्थित रहेंगे. जिसके अनुसार इस दिन ग्रहों की स्थिति काफी शुभ रहेगी. जिसके अनुसार आपको राधा कृष्ण की पूजा का कई गुना लाभ प्राप्त हो सकता है.

कहा जाता है कि श्री कृष्ण के बिना राधा अधूरी है. कृष्ण के नाम से पहले उनका नाम लेना जरूरी है. वेद, पुराण में राधा की प्रशंसा ‘कृष्ण वल्लभ’ के तौर पर की गई है. मान्यता है कि मोक्ष की प्राप्ति राधा जाप से मिलती है. राधा अष्टमी पर राधा के धातु की मूर्ति पूजी जाती है. पूजा के बाद प्रतिमा को योग्य ब्राह्मण को समर्पित कर दिया जाता है.

श्री राधा अष्टमी: हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा रानी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष राधा अष्टमी 26 अगस्त को है, इसे राधा जयंती भी कहते हैं। राधा अष्टमी को राधा जी श्रृंगार कर विधि विधान से पूजा की जाती है। राधा जी का जन्म मथुरा के रावल गांव में वृषभानु तथा कीर्ति के घर में हुआ था।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी मनाई जाती है. इस बार राधा अष्टमी 26 अगस्त 2020 दिन बुधवार को मनाई जाएगी. राधा अष्टमी का त्योहार श्री राधा रानी के प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है. श्री राधा रानी भगवान श्री कृष्ण की शक्ति माना जाता है. भगवान कृष्ण के बिना राधा जी की पूजा अधूरी मानी जाती है. इस बार राधा अष्टमी के दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं. इस दिन आप भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की पूजा कर सकते हैं.

मान्यता है कि राधा रानी संपूर्ण जगत को परम आनंद प्रदान करती है. राधा रानी को मोक्ष देने वाली, सौम्य और संपूर्ण जगत की जननी माना जाता है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5 बजकर 56 मिनट से दोपहर 1 बजकर 04 मिनट तक रहेगा. वहीं इसी समय पर अमृत सिद्धि योग भी बन रहा है यानी सुबह 5 बजकर 56 मिनट से दोपहर 1 बजकर 04 मिनट तक यह योग रहेगा.

15 दिन पहले यानी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव यानी जन्माष्टमी मनाई जाती है. राधा रानी द्वापर युग में प्रकट हुईं. उनका प्राकट्य मथुरा के रावल गांव में वृषभानु जी की यज्ञ स्थली के पास हुआ. उनकी माता का नाम कीर्ति और पिता का नाम वृषभानु है‌.

भविष्य पुराण और नारद पुराण में बताया गया है कि अनुराधा नक्षत्र में दोपहर के समय भाद्र शुक्ल अष्टमी तिथि को इनकी पूजा मनोकामना पूर्ण करने वाली होती है। इस वर्ष अनुराधा नक्षत्र 26 अगस्त को है लेकिन   अष्टमी तिथि दोपहर में 25 अगस्त को है। देवी राधाजी की पूजा दोपहर के समय की जाती है। ब्राह्मणों को भोजन करनाकर दक्षिणा दें

इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर पवित्र हो जाएं. फिर आप स्वच्छ कपड़ा पहनें. एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं. उस पर श्री राधा कृष्ण के युगल रूप की प्रतिमा या फोटो विराजित करें. प्रतिमा पर फूलों की माला चढ़ाएं. चंदन का तिलक लगाएं. साथ ही तुलसी पत्र भी अर्पित करें. राधा रानी के मंत्रों का जप करें. राधा चालीसा और राधा स्तुति का पाठ करें. श्री राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की आरती करें. आरती के बाद पीली मिठाई या फल का भोग लगाएं.

राधा रानी के मंत्र

तप्त-कांचन गौरांगी श्री राधे वृंदावनेश्वरी वृषभानु सुते देवी प्रणमामि हरिप्रिया

ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:। ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।

श्री राधा विजयते नमः, श्री राधाकृष्णाय नम:

कृष्ण पूर्ण हैं और राधा भी पूर्ण हैं। कृष्ण, राधा की रसधारा हैं तो राधा, कृष्ण की अंतर्धारा हैं। और ये एक ही हैं। इसलिए अलग होने के बाद भी दोनों आत्मिक स्तर पर एक रहे। हरेक पुरुष में स्त्री और हरेक स्त्री में पुरुष तत्त्व का वास होता है। अंतर अनुपात का होता है। पुरुष में पुरुष तत्त्व तो नारी में स्त्री तत्त्व की प्रधानता होती है। भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुष थे। यानी उनमें स्त्री तत्त्व बिल्कुल भी नहीं था। उसी प्रकार माता राधा पूर्ण प्रकृति थीं। यानी पूर्ण स्त्री। 

अध्यात्म कहता है कि पूर्ण में कुछ मिलाओ, तो उसका रूप और रस नहीं बदलता है। मिलाप तो अपूर्ण के बीच होता है। परंतु यहां श्रीकृष्ण और माता राधा दोनों पूर्ण हैं। राधा कहीं बाहर नहीं हैं, वह कृष्ण की भीतर की धारा हैं। वह अंतर्धारा हैं, जो सदा प्रवाहित है। उनके प्रकृति रूप के साथ सदैव कृष्ण हैं। जब भी कृष्ण को याद कीजिए, वहां राधा उपस्थित मिलेंगी। जगजननी राधा को स्मरण कीजिए, वहां कृष्ण अपनी लीला संग चले आएंगे। यह शाश्वत प्रेम की सनातन धारा है। जब उद्धव ने ब्रज की यात्रा शुरू की, तो थोड़ा व्याकुल थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं व्रज त्यागकर, वृंदावन छोड़ कहीं नहीं जाता। मैं तो वृंदावन में ही हूं। तुम मुझसे बिछुड़ने नहीं जा रहे, बल्कि मुझे (राधारूप में) प्राप्त करने जा रहे हो।

कृष्ण की स्मृति में राधा सदैव विराजमान थीं। कृष्ण को पता था कि राधा पूर्ण हैं। व्रज छोड़ने के समय भी राधा उनके पास नहीं आई थीं। सारे गोकुलवासी कान्हा को विदा करने के लिए एकत्रित थे। सब भाव विह्वल थे, लेकिन वहां राधा नहीं थीं। कृष्ण को खुद राधा के पास जाना पड़ा था। राधा ने तब भी कृष्ण को विदा नहीं किया था। उन्होंने कहा था- कान्हा, विदा तो भिन्न को किया जाता है। हम दोनों अभिन्न हैं, तो विदाई कैसी? 
अपनी अंतिम वेला में भी कृष्ण को राधा की चिंता थी। उनको पता था कि राधारानी उनकी अपलक प्रतीक्षा कर रही हैं। उन्होंने अपना दुख अर्जुन को बताया और कहा कि यह बात राधा को बता देना कि अब कृष्ण से मुलाकात नहीं हो सकेगी। कृष्ण के बिना अर्जुन खुद निस्तेज थे। उन्होंने यह भार उद्धव को सौंप दिया। उद्धव अतीत में चले गये, जब वे राधा से मिले थे। उनको एहसास हुआ कि राधा के प्रेम के शिखर पर ही कृष्ण ने इतना सबकुछ किया। राधारहित कृष्ण क्या ये सब कर पाते? 

अर्जुन के संवाद ने उद्धव के चित में हाहाकार मचा दिया। पर कृष्ण के महप्रयाण की खबर को भी राधा सहज सुन गईं। राधा ने उद्धव को कहा कि जिस घड़ी कृष्ण मथुरा से गए, उस घड़ी से कृष्ण उनके समग्र अस्तिव में हैं। रोम-रोम में व्याप्त हैं। गोकुल के कृष्ण दर्शनीय थे, पर अदृश्य कृष्ण हर क्षण, हर स्थान पर विद्यमान हैं। माता ने उद्धव को सिखाया कि कृष्ण ने त्याग उन्हीं का किया, जिन्होंने कृष्ण को विदा दी। उद्धव को भी समझ में आ गया कि कृष्ण ने अंत समय में राधा को क्यों स्मरण किया।    

जन्‍माष्‍टमी के शुभ अवसर पर भगवान कृष्‍ण का जन्‍मदिन मनाने की, राधाजी का जन्‍मदिन भाद्रमास के शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी को  मनाया जाता है। इस बार उनका जन्‍मदिन 26 अगस्‍त, बुधवार को है। राधाजी को साक्षात माता लक्ष्‍मी स्‍वरूपा माना जाता है। इस मौके पर कुबेर सहित लक्ष्मी माता की साधना करनी चाहिए।    मंत्र का जप करना शुभ माना जाता है।  ऊं ह्नीं राधिकायै नम:। ऊं ह्नीं श्रीराधायै स्‍वाहा।

CHANDRA SHEKHAR JOSHI CHIEF EDITOR Mob. 9412932030

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