पिण्डदान व श्राद्ध के लिए बिहार में स्थित गया तीर्थ सर्वश्रेष्ठ क्यो? इस तीर्थ से पितरों को मिलती है शक्ति और वह शक्ति परलोक जाने में पितरों की मदद करती है 

28 OCT 2022 # High Light #तर्पण विधि और पिंडदान करने से पितरों को शक्ति मिलती है और वह शक्ति परलोक जाने में पितरों की मदद करती है, जहां से वे परिवार का कल्याण करते हैं #पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया में पिंडदान करना बहुत ही पुण्य का काम समझा जाता है #महाभारत में वर्णित गया में खासतौर से धर्मराज यम, ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु का वास #वायुपुराण में बताया है प्रेत पर्वत का महत्व, माना जाता है यहां श्रीराम और लक्ष्मण ने भी किया था पिता राजा दशरथ का श्राद्ध # श्राद्ध के बाद पिण्ड को ब्रह्म कुण्ड में स्थान देकर प्रेत पर्वत पर जाते हैं। वहां श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। #पिण्डदान व श्राद्ध के लिए बिहार में स्थित गया तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ  # बिहार की राजधानी पटना से लगभग 100 किमी की दूरी पर बसा ज्ञान और मोक्ष भूमि गया शहर  # पितरों का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण # यह सिलसिला साल भर चलता ही रहता है #माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है # Himalayauk Bihar Bureau #

पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है।

पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो.

वायु पुराण में गया तीर्थ के बारे में बताया गया है कि ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुरुः अंगनागमः, पापं तत्संगजं सर्वं गयाश्राद्धाद्विनश्यति। अर्थात गया में श्राद्ध कर्म करने से ब्रह्महत्या, स्वर्ण की चोरी आदि जैसे महापाप नष्ट हो जाते हैं। पितृ पक्ष में गया में पितरों का श्राद्ध-तर्पण करने से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है क्योंकि भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में गया में निवास करते हैं इसलिए इस स्थान को पितृ तीर्थ भी कहा जाता है।

आश्विन महीने के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृपक्ष माना जाता है। वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना बहुत ही पुण्यकर्म माना गया है। इसके लिए देवताओं ने मनुष्यों को धरती पर पवित्र जगह दी है। जिसका नाम गया है। यहां श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को तृप्ति मिलती है तथा उनका मोक्ष भी हो जाता है।

महाभारत में वर्णित गया में खासतौर से धर्मराज यम, ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु का वास माना गया है। वायुपुराण, गरुड़ पुराण और महाभारत जैसे कई ग्रंथों में गया का महत्व बताया है। कहा जाता है कि गया में श्राद्धकर्म और तर्पण के लिए प्राचीन समय में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं। जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। वर्तमान में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। 

पिंडदान व श्राद्ध कर्म करने के लिए देशभर में 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन बिहार का गया तीर्थ सर्वोपरि है। आपने चावल का बना पिंडदान देखा होगा लेकिन गया तीर्थ में फल्गु नदी के तट पर बालु का भी पिंडदान किया जा सकता है और यह चावल के पिंडदान के बराबर ही मान्य होता है।

यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अलावा वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। इन्हीं वेदियों में प्रेतशिला भी मुख्य है। हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में प्रेतशिला की गणना की जाती है।

वायुपुराण में बताया है प्रेत पर्वत का महत्व गया शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर प्रेतशिला नाम का पर्वत है। ये गया धाम के वायव्य कोण में यानी उत्तर-पश्चिम दिशा में है। इस पर्वत की चोटी पर प्रेतशिला नाम की वेदी है, लेकिन पूरे पर्वतीय प्रदेश को प्रेतशिला के नाम से जाना जाता है। इस प्रेत पर्वत की ऊंचाई लगभग 975 फीट है। जो लोग सक्षम हैं वो लगभग 400 सीढ़ियां चढ़कर प्रेतशिला नाम की वेदी पर पिंडदान के लिए जाते हैं। जो लोग वहां नहीं जा सकते वो पर्वत के नीचे ही तालाब के किनारे या शिव मंदिर में श्राद्धकर्म कर लेते हैं। प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से किसी कारण से अकाल मृत्यु के कारण प्रेतयोनि में भटकते प्राणियों को भी मुक्ति मिल जाती है। वायु पुराण में इसका वर्णन है। प्रेतशिला के मूल भाग यानी पर्वत के नीचे ही ब्रह्म कुण्ड में स्नान-तर्पण के बाद श्राद्ध का विधान है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका प्रथम संस्कार ब्रहमा जी द्वारा किया गया था।

अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं का होता है श्राद्ध व पिण्डदान वायु पुराण के अनुसार यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध व पिण्डदान का विशेष महत्व है। इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाते हैं जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है। इस पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है।

प्रेतशिला पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान है। जिस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है। श्रद्धालुओं द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर के उस पर सत्तु से बना पिंड उड़ाया जाता है। प्रेतशिला पर सत्तू से पिंडदान की पुरानी परंपरा है। 

इस चट्टान के चारों तरफ 5 से 9 बार परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं।

पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जाती हैं। पिंडदानियों के कर्मकांड को पूरा करने के बाद इसी वेदी पर पिंड को अर्पित किया जाता है।   प्रेतशिला का नाम प्रेतपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ। इस शिला पर यमराज का मंदिर, श्रीराम दरबार (परिवार) देवालय के साथ श्राद्धकर्म सम्पन्न करने के लिए दो कक्ष बने हुए हैं।

यासुर का पूरा शरीर ही आज का गया तीर्थ है। उसकी पीठ पर बने विष्णु भगवान के पैरों के निशान के ऊपर बनवाया गया भव्य मंदिर विष्णुपद मन्दिर के नाम से जाना जाता है। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पैरों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं।

प्राचीन काल में गयासुर नाम के एक राक्षस ने कठिन तप किया और ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे एक वरदान मांगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाये । उसको देखने मात्र से ही लोगों के पाप कट जाएं और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो । गयासुर को मिले उस वरदान ने सृष्टि का संतुलन बिगाड़ दिया । लोग बिना किसी डर के पाप कार्यों में लिप्त होने लगे, क्योंकि उसके बाद गयासुर के दर्शन मात्र से ही उनके सारे पाप दूर हो जाते थे और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती थी । स्वर्ग और नर्क का सन्तुलन बिगड़ने पर देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद माँगी । तब भगवान विष्णु की सलाह से देवताओं ने गयासुर से यज्ञ करने हेतु पवित्र जमीन की मांग की । गयासुर की नजर में उसके शरीर से पवित्र कुछ नही था, इसलिए वह भूमि पर लेट गया और बोला कि आप लोग मेरे शरीर पर ही यज्ञ कर लीजिये । गयासुर का शरीर पाँच कोस जमीन पर फ़ैल गया । गयासुर के समर्पण से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने वरदान दिया कि अब से यह स्‍थान जहां तुम्हारे शरीर पर यज्ञ हुआ है वह गया के नाम से जाना जाएगा । यहां श्राद्ध करने वाले को पुण्य और पिंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्ति मिल जाएगी ।

भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पितृपक्ष के दौरान गया पिंडदान करने के लिए पहुंचे

अपने वनवास के दौरान पिता राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पितृपक्ष के दौरान गया पिंडदान करने के लिए पहुंचे। फल्गु के किनारे माता सीता को अकेले छोड़कर दोनों भाई पिंडदान की सामग्री का जुगाड़ करने नगर में चले गए। उन्हें आने में काफी देर हो गई और इधर सीता की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। थोड़ी देर में राजा दशरथ की आत्मा ने प्रकट होकर शीघ्र पिंडदान की मांग की, क्योंकि शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था । तब असमंजस में पड़ी सीता ने और कोई उपाय ना देखकर गया ब्राह्मण, फल्गु नदी, वट वृक्ष, गाय और तुलसी को साक्षी मानकर नदी की रेत के ही छोटे-छोटे पिंड बनाकर पिंडदान कर दिया । थोड़ी देर बाद जब भगवान राम वापस आये, तो उनको सारी बात का पता चला । लेकिन दोनों भाइयों को भरोसा नही हुआ कि बिना उचित पूजा सामग्री के पिंडदान कैसे सम्भव है? सीता से प्रमाण माँगा गया। जब पिंडदान का गवाह बनने की बात आई तो ब्राह्मण, फल्गु नदी, गाय और तुलसी सब मुकर गए। केवल वट वृक्ष ने ही पिंडदान की बात को स्वीकार किया। निराश माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा का ध्यान किया और उनसे खुद उपस्थित होकर प्रमाण देने की प्रार्थना की । फिर उनकी आत्मा ने खुद प्रकट होकर पिंडदान की बात को स्वीकार किया।

सारी घटना से क्षुब्ध होकर माता सीता ने फल्गु नदी को श्राप दिया कि उसमें पानी हमेशा कम रहेगा और वह सदा जमीन के नीचे बहेगी । तुलसी को श्राप मिला कि वह कभी गया में पल्लवित नही हो पायेगी । गाय को श्राप दिया कि पूज्यनीय होकर भी वो सबका जूठा ही खाएगी और उसके केवल पिछले हिस्से की ही पूजा होगी । सीता के श्राप के कारण ही गया के पण्डों को चाहे जितनी दान-दक्षिणा दे दो, लेकिन वो कभी सन्तुष्ट नहीं होते। केवल वट वृक्ष को आशीर्वाद मिला कि वो सदा हरा भरा रहेगा और सुहागिने उसकी पूजा किया करेंगी।

गया करने का मतलब है कि गया में पितरों को श्राद्ध करना, पिंडदान करना. गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं. गया को विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है.

गया में पिंडदान में कितना समय लगता है तथा गया में पिंडदान का खर्च कितना होता हैं.आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन महीने के अमावस्या तक को ‘पितृपक्ष’ या ‘महालया पक्ष’ कहा गया है। 

गया पिंडदान में 1 दिन, 2 दिन, 3 दिन 5 या 7 दिन भी लग सकते हैं. इसके अलावा कुछ पिंडदान विधि 3 से 5 घंटे में भी पूर्ण हो जाती हैं. पिंडदान की प्रक्रिया तथा विधि विधान ब्राह्मण पर निर्भर करता हैं. कुछ पंडित आपकी विधि घंटो में भी समाप्त कर देते हैं. तो कुछ पंडित पिंडदान विधि हमारे बताए दिन अनुसार भी पूर्ण करते हैं. पिंडदान कितने दिन में समाप्त होगा यह सभी ब्राह्मण पर निर्भर करता हैं. की वह कितने समय में पिंडदान विधि पूर्ण करेगे.

ऐसा भी माना जाता है की पिंडदान विधि करने वालो को अगर अच्छा पारिश्रमिक नही मिल रहा हैं. तो वह पिंडदान विधि कुछ घंटो में ही निपटाकर अन्य काम की तलाश में निकल जाएगे. लेकिन अगर उनको आपके द्वारा अच्छा पारिश्रमिक मिला हैं. तो वह आपकी पिंडदान विधि विस्तारपूर्वक संपूर्ण रूप से करते हैं.

गया में पिंडदान का खर्च आप पर निर्भर करता है की आप कितना खर्च करना चाहते हैं. अगर आप सभी प्रकार की सुख सुविधा चाहते है. जैसे की रहना, खानापीना तथा पंडित का खर्च तो 10 से 12 हजार तक का खर्चा हो सकता हैं. लेकिन आप सिर्फ पंडित का खर्चा देना चाहते हैं. यह भी पंडित पर निर्भर करता है की वह आपसे कितना खर्चा ले सकते हैं. लेकिन अगर देखा जाए तो पंडित भी 3 से 5 हजार के करीब अपना खर्चा ले ही लेते हैं. इसलिए गया जाकर आपको कितना खर्चा करना है. यह सभी आप पर निर्भर करता हैं.

गया से गया के पैकेज में एक व्यक्ति के लिए 12810 रुपए, दो व्यक्ति के लिए 13440 रुपए चार्ज किए जायेंगे. यह पैकेज एक दिन का होगा. गया से गया के इस दूसरे पैकेज में एक व्यक्ति के लिए 19425 रुपये खर्च करने होंगे.

गया में ही एक ट्रेन स्टेशन हैं, यहां सभी प्रमुख ट्रेनें गुजरती हैं। वहीं पटना में भी एक ट्रेन स्टेशन से है। आप या तो सीधे गया स्टेशन पहुंच सकते हैं या फिर पटना स्टेशन से गया स्टेशन पहुंच सकते हैं। गया स्टेशन से आप सीधे गया तीर्थ पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग;  ग्रैंड ट्रंक रोड गया को सभी प्रमुख शहरों से जोड़ती है। अगर आप अपने वाहन से यहां आना चाहते हैं तो आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग से सीधे आप गया तीर्थ पहुंच सकते हैं। वायुमार्ग;  गया में एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट भी है, जो भारत के सभी शहरों को जोड़ता है। यहां विदेशों से भी फ्लाइट आती हैं। आप एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी या गाड़ी से गया तीर्थ पहुंच सकते हैं।

अगर आपके पास समय की कमी है और चाहते हैं कि एक दिन में ही गया में पिंडदान करके वापस लौट जाएं तो

बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम ने 5 तरह के टूर पैकेज की शुरुआत की है. जिसके लिए श्रद्धालु ऑनलाइन बुकिंग करा सकते हैं. सभी का किराया अलग-अलग है, इसमें आने-जाने से लेकर खाना-पीना और पूजा के लिए पंडित और पूजन सामग्री की कीमतें शामिल हैं. ऐसे में इसमें से अपने लिए किसी भी एक पैकेज को चुनकर आप गया के पंडों की मनमानी से बच सकते हैं और निश्चिंत होकर मोक्ष नगरी में पिंडदान कर सकते हैं. BSTDC का यह पैकेज एक दिन का है, इसमें पटना से पुनपुन और गया में पूजा करके वापस पटना आना होगा. इस पैकेज में तीन कैटेगरी शामिल हैं. कैटेगरी 1 में एक व्यक्ति के लिए किराया 13,350 रुपए है. दो व्यक्ति के लिए 13,780 रुपए और चार व्यक्तियों के लिए 23,250 रुपए है. इसमें लक्ज़री फोर स्टार होटल में आपके ठहरने का इंतजाम रहेगा. वहीं कैटेगरी 2 पहले वाले पैकेज की अपेक्षा थोड़ा सस्ता है. इसमें एक व्यक्ति का शुल्क 12,300 रुपए, दो व्यक्तियों का 15,670 और चार व्यक्तियों का शुल्क 21,150 है. इसमें आपके लिए सेमी लक्ज़री वाले 3 स्टार होटल में रहने का प्रबंध रहेगा. जबकि कैटेगरी 3 इन दोनों पैकेज से भी सस्ता है. इसमें एक व्यक्ति का 11,500 रुपए, दो व्यक्तियों का 11,900 और चार व्यक्तियों का 19,500 रुपए खर्च आएगा. हालांकि इस पैकेज वाले श्रद्धालुओं को रुकने के लिए बजट एसी होटलों के कमरे उपलब्ध कराए जायेंगे. पटना-पुनपुन-गया-बोधगया-नालंदा-राजगीर-पटना पैकेज ; ये पैकेज एक रात और दो दिनों का है. इसमें गया में पिंडदान कराकर नालंदा और राजगीर भी घुमाने की सुविधा दी जा रही है. इसमें भी तीन कैटेगरी शामिल है. लक्ज़री 4 स्टार होटल वाले पहले कैटेगरी में एक व्यक्ति का 15,310 रुपए, दो व्यक्तियों का 16,420 और चार व्यक्तियों का खर्च 29,250 रुपए होगा. वहीं कैटेगरी 2 में रहने के लिए सेमी लक्ज़री 3 स्टार होटल मिलेगा, अगर इस पैकेज को एक व्यक्ति लेते हैं तो 14,260 रुपए, दो व्यक्ति 15,370 रुपए और चार व्यक्तियों के लिए 27,150 रुपए लगेंगे. जबकि बजट वाले कैटेगरी 3 में एक व्यक्ति के लिए इस पैकेज का खर्च 13,400 रुपए, दो व्यक्तियों के लिए 14,510 रुपए और चार व्यक्तियों के लिए 25,450 रुपए होगा. गया से गया पैकेज :  अगर आपके पास समय की कमी है और चाहते हैं कि एक दिन में ही गया में पिंडदान करके वापस लौट जाएं तो एक दिन वाला ये पैकेज आपके लिए सबसे अच्छा और किफायती पड़ेगा. इसमें भी सुविधाओं के अनुसार कैटेगरी एक, दो और तीन शामिल है. पहले वाले कैटेगरी में गया के लक्ज़री होटल में आपके लिए कमरे बुक रहेंगे. जिसके लिए एक व्यक्ति से 9,270 रुपए, दो व्यक्ति के लिए 9,930 रुपए और चार व्यक्तियों के लिए 19,850 रुपए चार्ज किए जायेंगे. वहीं, सेमी लक्ज़री वाले होटल की सुविधा देने वाले दूसरी कैटेगरी के लिए एक व्यक्ति से 8,880 रुपए, चार व्यक्तियों से 17,750 रुपए लिए जाएंगे. जबकि कैटेगरी 3 वाले बजट एसी होटल के लिए एक व्यक्ति को 7,400 रुपए, दो व्यक्तियों को 8050 रुपए और चार व्यक्तियों को 16,050 रुपए देने होंगे.

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