इस बार बीजेपी क्या करिश्मा दिखाती है- बडा सवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी अपने कामकाज और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए है तो बीजेपी केंद्र सरकार के काम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाने की कवायद में है.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लोकसभा सांसद दिलीप घोष गुरुवार को एक बार फिर पश्चिम बंगाल के प्रदेश अध्यक्ष चुने गए हैं। घोष एकमात्र उम्मीदवार थे जिन्होंने इस पद के लिए नामांकन किया था। वहीं कालाढूंगी के विधायक बंशीधर भगत को निर्विरोध उत्तराखंड प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। भगत (69) नैनीताल से लोकसभा सांसद अजय भट्ट से कार्यभार ग्रहण करेंगे जो पिछले साल अध्यक्ष पद का अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद से सेवा विस्तार पर थे। चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद पार्टी के केंद्रीय प्रेक्षक और केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करते हुए कहा कि भगत का पद पर निर्वाचन निर्विरोध हुआ।  बंशीधर भगत भाजपा के आठवें प्रदेश अध्यक्ष बने हैं। इससे पहले अजय भट्ट भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे।  बंशीधर भगत जन्म: 08 अगस्त 1951 (भक्यूड़ा -भीमताल)  निवास: लोहरियाताल, हल्द्वानी  शिक्षा: हाईस्कूल ; २002 में हल्द्वानी सीट से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।  उधर, हिमाचल प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बनाये जाने की संभावनाओं के बीच डॉ.राजीव बिंदल ने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। सूत्रों के अनुसार डॉ. बिंदल ने अपना इस्तीफा विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज को सौंपा।  दिलीप घोष को भाजपा के पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष के तौर पर बृहस्पतिवार को दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित किया गया. घोष ने फिर से निर्वाचित होने के बाद कहा, ‘हम अब 2021 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव जीतने के लिए लड़ेंगे.’

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वही दूसरी ओर  बीजेपी से कांग्रेस में वापसी करने वाले तीन दिग्गज नेताओं को पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव मैदान में उतारने का मन बना रही है. राजकुमार चौहान को मंगोलपुर सीट से, अरविंदर लवली को गांधी नगर सीट से और कृष्णा तीरथ को पटेल नगर या फिर करोल बाग सीट से कांग्रेस टिकट दे सकती है. दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने कहा कि जो भी कांग्रेसी विचारधारा का व्यक्ति रहा होता है, वह कट्टर विचारधारा के साथ ज्यादा देर नहीं रह सकता. वे पहले भी कांग्रेस परिवार का सदस्य रहे हैं, इसलिए उनकी वापसी पार्टी के लिए बेहतर खबर है. उन्होंने कहा कि पार्टी अपने मूल विचारों के साथ अपने सभी मजबूत चेहरों को मैदान में उतारेगी और जीत दर्ज करेगी. उन्होंने कहा कि जल्दी ही कुछ और लोग भी कांग्रेसी खेमे में वापसी करेंगे. दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने खोए हुए सियासी जनाधार को वापस पाने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी हुई है. इसी कड़ी में कांग्रेस अपने पुराने नेताओं की घर वापसी कराने में भी लगी है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले नेता एक-एक कर दोबारा से पार्टी में वापसी कर रहे हैं. दिल्ली में कांग्रेस के तीन दिग्गज नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा था और अब सारे वापसी कर गए हैं. शीला दीक्षित मंत्रिमंडल में कद्दावर मंत्री रहे राजकुमार चौहान ने बीजेपी का दामन छोड़ कांग्रेस में अपनी घर वापसी कर ली है. विधानसभा चुनाव के पूर्व इसे बीजेपी के लिए करारा झटका माना जा रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले राजकुमार चौहान ने कमल का दामन थामा था. उन्होंने उत्तर-पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट से बीजेपी के हंसराज हंस को रिकॉर्ड जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के साथ सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद राजकुमार चौहान ने अपनी घर वापसी का फैसला किया है. कांग्रेस उन्हें मंगोलपुरी विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है. मंगलोपुरी सीट से राजकुमार चौहान कई बार विधायक रह चुके हैं और शीला दीक्षित सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. राजकुमार चौहान से पहले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अरविंदर सिंह लवली ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया था. हालांकि वो बीजेपी में बहुत ज्यादा दिन टिक नहीं सके और उन्होंने पिछले साल कांग्रेस में वापसी कर ली थी. अरविंद सिंह लवली दिल्ली में कांग्रेस के सिख चेहरा माने जाते थे और गांधी नगर सीट से जीतकर कई बार विधानसभा पहुंचे थे. शीला दीक्षित के करीबी माने जाते थे और कांग्रेस की दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.

दरअसल, दिल्ली के चुनाव संग्राम में बीजेपी को मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ उतरने का दांव कभी नहीं सुहाया है. दिल्ली में 1993 से लेकर 2015 तक छह विधानसभा चुनाव हुए हैं. बीजेपी इनमें से पांच बार मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ-साथ मैदान में उतरी थी और उसे हर बार हार का सामना करना पड़ा. दिल्ली में महज एक बार बीजेपी ने सीएम फेस की घोषणा नहीं की थी और तब दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही थी. इसीलिए पिछले दिनों बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की घोषणा करने के बाद केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के सहप्रभारी हरदीप पुरी पलट गए थे और इसे वापस ले लिया था. बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि लोकतंत्र के इस महापर्व के माध्यम से दिल्ली की जनता उनको पांच साल तक गुमराह करने वाले और उनसे सिर्फ खोखले वादे करने वालों को हराकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली की जनता की आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाली सरकार चुनेगी.  1993 में दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इसके बाद अभी तक छह चुनाव हुए हैं, जिनमें एक चुनाव को छोड़कर पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा है. बीजेपी को 1993 के चुनाव में जीत मिली थी, इस चुनाव में पार्टी ने किसी को भी सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था.  1993 में दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इसके बाद अभी तक छह चुनाव हुए हैं, जिनमें एक चुनाव को छोड़कर पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा है. बीजेपी को 1993 के चुनाव में जीत मिली थी, इस चुनाव में पार्टी ने किसी को भी सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था.  इसके बाद से बीजेपी दिल्ली की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी. जबकि हर बार बीजेपी सीएम फेस के साथ उतरी थी. 1998 से लेकर 2015 तक पांच विधानसभा चुनाव हुए और पार्टी ने हर बार सीएम पद का चेहरा घोषित किया. 1998 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दिल्ली का सीएम बनाया था. बीजेपी सुषमा स्वराज के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ी और पार्टी को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा. बीजेपी महज 15 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. 

दिल्ली में 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मदनलाल खुराना को कांग्रेस की शीला दीक्षित के सामने सीएम फेस बनाकर मैदान में उतरी थी और इस बार खुराना का जादू फीका रहा था. 2003 के चुनाव में बीजेपी को महज 20 सीटें ही मिल सकी थीं. इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विजय कुमार मल्होत्रा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था. बीजेपी का यह दांव भी पूरी तरह से फेल रहा और विजय कुमार मल्होत्रा पार्टी को महज 23 सीटें ही दिला सके.

2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी डॉ. हर्षवर्धन को सीएम फेस बनाकर मैदान में उतरी थी. इस बार हर्षवर्धन बीजेपी को दिल्ली में 31 सीटें जिताकर सबसे बड़ी पार्टी बनाने में कामयाब रहे थे, लेकिन बहुमत से पांच सीटें दूर बीजेपी सरकार नहीं बना सकी. इसके बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी. हालांकि यह सरकार महज 52 दिन ही चल सकी.

2015 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी उसमें पूर्व आईपीएस किरण बेदी को सीएम फेस घोषित कर मैदान में उतरी थी. अरविंद केजरीवाल के सामने बीजेपी का यह दांव भी नहीं चल सका. किरण बेदी खुद भी हारीं और पार्टी को महज 3 सीटें ही मिल सकीं.  बीजेपी की लगातार हार से सबक लेते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली में किसी भी चेहरे को आगे करके मैदान में उतरने का मन नहीं बनाया है. अब देखना है कि इस बार बिना चेहरे के बीजेपी क्या करिश्मा दिखाती है.

लोकसभा चुनाव के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस की दिग्गज नेता कृष्णा तीरथ ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था, लेकिन अब वो घर वापसी कर गई हैं. कृष्णा तीरथ को बीजेपी ने 2015 में पटेल नगर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में भी उतारा था, लेकिन वे आम आदमी पार्टी के हजारी लाल चौहान से हार गई थीं. केंद्रीय मंत्री रहीं कृष्णा तीरथ ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में वापसी किया था. 2009 में उत्तर-पश्चिम दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतने वाली कृष्णा तीरथ दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष के लिए जानी जाती हैं. पिछले दिनों कृष्णा ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित से मुलाकात की थी और तभी से यह कयास लगने लगे थे कि वह बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाली हैं. मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल के दौरान वह महिला व बाल विकास राज्य मंत्री थीं. कृष्णा तीरथ ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत दिल्ली में बतौर विधायक के रूप में की थी. वह 1984 से 2004 तक दिल्ली विधानसभा में विधायक रहीं. दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार के दौरान वह सामाजिक कल्याण मंत्री रहीं. एक समय वह दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शुमार की जाती थीं.

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