पाकिस्‍तान की कमर तोडने वाली सिंधु जल संधि को भारत क्यों जारी रखे हुए है?

 सिंधु जल संधि को तोड़ते ही पाक सीधा हो जायेगा # सिंधु जल समझौते में क्यों अटकी है पाकिस्तान की ‘जान’, भारत अगर संधि तोड़ दे तो फिर क्या होगा?

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सीआरपीएफ़ के एक काफ़िले पर हमले में 46 जवानों के मारे जाने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत अपनी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को लेकर ख़ुद को लाचार पाता है? क्या भारत के पास कोई विकल्प है या ऐसे हमले भविष्य में भी झेलने होंगे?

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश सचिव रहे कंवल सिब्बल को लगता है कि पाकिस्तान को लेकर भारत को जो सख़्त क़दम उठाने चाहिए वो नहीं कर पा रहा है.

सिब्बल मानते हैं कि भारत के पास बहुत विकल्प नहीं हैं, लेकिन कुछ ऐसी रणनीति है जो मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है. सिब्बल कहते हैं, ”भारत के पास एक बहुत ही असरदार विकल्प है और वो है सिंधु जल संधि को तोड़ना. मुझे समझ में नहीं आता कि इस संधि को सरकार क्यों नहीं तोड़ रही है. इस संधि को तत्काल निलंबित करना चाहिए. ऐसा होते ही पाकिस्तान सीधा हो जाएगा. जैसे कहा जाता है कि पाकिस्तानी आतंकवाद का भारत के पास कोई जवाब नहीं है वैसे ही पाकिस्तान के पास सिंधु जल संधि तोड़ने का कोई जवाब नहीं है.”

 सिब्बल कहते हैं ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद कई संधियां तोड़ी हैं. अमरीका ने ऐसा अपने ख़ास दोस्त जापान और कनाडा के साथ भी किया.

अगर अमरीका ऐसा कर सकता है तो भारत को संधि तोड़ने में क्या दिक़्क़त है? अमरीका जलवायु संधि से निकल गया, ईरान से परमाणु समझौते को रद्द कर दिया. सिब्बल को ये बात समझ में नहीं आती कि सिंधु जल संधि को भारत क्यों जारी रखे हुए है.

सिब्बल मानते हैं कि इस संधि को तोड़ने से भारत पर कोई असर नहीं होगा. वो कहते हैं कि एक बार भारत अगर इस संधि को तोड़ देता है तो पाकिस्तान को अहसास हो जाएगा. भारत विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी विवेक काटजू भी मानते हैं कि भारत को अब हर विकल्पों पर विचार करना चाहिए.

कंवल सिब्बल कहते हैं, ”भारत के लिए डिप्लोमैटिक विकल्प ही काफ़ी साबित नहीं होंगे. हालांकि इसका भी सहारा लेना होगा. अब ठोस क़दम उठाने की बारी आ गई है. अब कश्मीर में कुछ सफ़ाया करना होगा. अब तक कुछ ठोस हो नहीं पाया है.”

”कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कश्मीर के अलगाववादी नेता मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ से बात की थी. भारत ने इसका विरोध भी किया पर कुछ नहीं हुआ. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने फिर गिलानी को फ़ोन किया. ये जो अलगाववादी हैं यानी जो ग्राउंड पर आतंकी गतिविधियों का समर्थन करते उन्हें काफ़ी स्पेस दी जा रही है. कश्मीर की पार्टियों के जो प्रवक्ता हैं वो टीवी पर इतनी राष्ट्रविरोधी बातें करते हैं कि सुनकर बहुत बुरा लगता है.”

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सिंधु जल संधि को दो देशों के बीच जल विवाद पर एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण बताया जाता है. 56 साल पहले भारत और पाकिस्तान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

दोनो देशों के बीच दो युद्धों और एक सीमित युद्ध कारगिल और हज़ारों दिक्क़तों के बावजूद ये संधि कायम है. विरोध के स्वर उठते रहे लेकिन संधि पर असर नहीं पड़ा.

उड़ी चरमपंथी हमले में 18 भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद एक बार फिर कयास लग रहे हैं कि क्या भारत, सिंधु जल समझौता रद्द कर सकता है?

गुरुवार को जब विदेश मंत्रालय प्रवक्ता विकास स्वरूप से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं देते हुए कहा, “आखिरकार किसी भी समझौते के लिए दोनो पक्षों में सद्भाव और सहयोग की ज़रूरत होती है.”

सिंधु बेसिन ट्रीटी पर 1993 से 2011 तक पाकिस्तान के कमिश्नर रहे जमात अली शाह कहते हैं, “इस समझौते के नियमों के मुताबिक कोई भी एकतरफ़ा तौर पर इस संधि को रद्द नहीं कर सकता है या बदल सकता है. दोनो देश मिलकर इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या एक नया समझौता बना सकते हैं.”

उधर पानी पर वैश्विक झगड़ों पर किताब लिख चुके ब्रह्म चेल्लानी समाचार पत्र ‘हिंदू’ में लिखते हैं, “भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ़ कर रहा है. अंततराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है.”

क्या है सिंधु जल समझौता?

सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है.

एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं.

सिंधु जल संधि के पीछे की कहानी.

अमरीका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर इस समझौते की पीछे की कहानी है. ऐरॉन वोल्फ़ औऱ जोशुआ न्यूटन अपनी केस स्टडी में बताते हैं कि ये झगड़ा 1947 भारत के बंटवारे के पहले से ही शुरू हो गया था, खासकर पंजाब और सिंध प्रांतों के बीच.

1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ़ आने वाली दो प्रमुख नहरों पर एक ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा. ये समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था.

जमात अली शाह के अनुसार 1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात खराब हो गए.

भारत के इस कदम के कई कारण बताए गए जिसमें एक था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था. बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया.

स्टडी के मुताबिक 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया. लिलियंथल पाकिस्तान भी गए और वापस अमरीका लौटकर उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा. ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया. और फिर शुरू हुआ दोनो पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला.

ये बैठकें करीब एक दशक तक चलीं और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.

सिंधु जल समझौते की प्रमुख बातें.

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1. समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया.

2. समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़े दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है. पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी. अनुबंध में बैठक, साइट इंस्पेक्शन आदि का प्रावधान है.

3. समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई. इसमें दोनो देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था. ये कमिश्नर हर कुछ वक्त में एक दूसरे से मिलेंगे और किसी भी परेशानी पर बात करेंगे.

4. अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिज़ाइन पर आपत्ति है तो दूसरा देश उसका जवाब देगा, दोनो पक्षों की बैठकें होंगी. अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाती हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी.

5. इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है.

संधि पर राजनीति.

भारत में एक वर्ग का मानना रहा है कि इस समझौते से भारत को आर्थिक नुकसान हो रहा है. जम्मू कश्मीर सरकार के मुताबिक इस संधि के कारण राज्य को हर साल करोड़ो का आर्थिक नुकसान हो रहा है. संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया था. दिल्ली में एक सोच ये भी है पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में गुस्सा भड़काने के लिए कर रहा है.

विश्लेषक ब्रह्म चेल्लानी अख़बार ‘हिंदू’ में लिखते हैं “भारत ने 1960 में ये सोचकर पाकिस्तान से संधि पर हस्ताक्षर किए कि उसे जल के बदले शांति मिलेगी लेकिन संधि के अमल में आने के पांच साल बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर 1965 में हमला कर दिया.”

वो कहते हैं कि चीन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में बड़े डैम बना रहा है, पाकिस्तान भारत की छोटी परियोजनाओं पर आपत्तियां उठा रहा है.

चेल्लानी कहते हैं कि बड़े देश अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की बात नहीं करते या फिर ट्राइब्युनल का आदेश नहीं मानते जैसा कि चीन ने साउथ चाइन सी पर ट्राइब्युनल के आदेश के बारे में किया.

उधर जमात अली शाह का दावा है कि पाकिस्तान ने इस संधि को लेकर बहुत कुर्बानियां दी हैं और भारत की तरफ़ से संधि को रद्द करने के लिए उठ रही आवाज़ें मात्र शोर है जिसे भारतीय सरकार नहीं मानेगी.

वो कहते हैं, “जब भारत से ऐसी बातें उठती हैं तो उसका क्या मतलब है? क्या भारत पाकिस्तान का पानी रोक देगा, पाकिस्तान के हिस्से का पानी अपनी नदियों में डाल लेगा? ऐसा करने के लिए योजनाएं रातों-रात नहीं बनतीं. इसकी प्लानिंग होगी और उसके बाद पानी रोकना शुरू होगा. ऐसा होना नामुमकिन बात है.”

सिंधु जल संधि पानी के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है। इस सन्धि में विश्व बैंक (तत्कालीन पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक) ने मध्यस्थता की। इस संधिपर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।

सिंधु जल संधि पानी के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है। इस सन्धि में विश्व बैंक (तत्कालीन पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक) ने मध्यस्थता की।[ इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।

इस समझौते के अनुसार, तीन “पूर्वी” नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को, तथा तीन “पश्चिमी” नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।

1960 में हुए संधि के अनुसमर्थन के बाद से भारत और पाकिस्तान में कभी भी “जलयुद्ध” नहीं हुआ। हर प्रकार के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है। इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20% का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है। 

 सिंधु नदी सिस्टम तीन पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम और चिनाब और तीन पूर्वी नदियाँ – सतलुज, ब्यास और रावी शामिल हैं। इस संधि के अनुसार रावी, ब्यास और सतलुज (पूर्वी नदियाँ)- पाकिस्तान में प्रवेश करने से पूर्व इन नदियों के पानी को अनन्य उपयोग के लिए भारत को आबंटित की गईं। हालांकि, 10 साल की एक संक्रमण अवधि की अनुमति दी गई थी, जिसमें पानी की आपूर्ति के लिए भारत को बाध्य किया गया था, ताकि तब तक पाकिस्तान आपनी आबंटित नदियों -झेलम, चिनाब और सिंधु- के पानी के उपयोग के लिए नहर प्रणाली विकसित कर सके। इसी तरह, पाकिस्तान पश्चिमी नदियों – झेलम, चिनाब और सिंधु – के अनन्य उपयोग के लिए अधिकृत है। पूर्वी नदियों के पानी के नुकसान के लिए पाकिस्तान को मुआवजा भी दिया गया। 10 साल की रोक अवधि की समाप्ति के बाद, 31 मार्च 1970 से भारत को अपनी आबंटित तीन नदियों के पानी के पूर्ण उपयोग का पूरा अधिकार मिल गया। इस संधि का परिणाम यह हुआ कि साझा करने के बजाय नदियों का विभाजन हो गया। 

दोनों देश संधि से संबंधित मामलों के लिए डेटा का आदान-प्रदान और सहयोग करने के लिए राजी हुए। इस प्रयोजन के लिए संधि में स्थायी सिंधु आयोग का प्रावधान किया गया जिसमें प्रत्येक देश द्वारा एक आयुक्त नियुक्त किया जाएगा।

 पानी की सिंधु बेसिन में शुरू तिब्बत और हिमालय पर्वत के राज्यों में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश. वे से प्रवाह पहाड़ियों के माध्यम से के राज्यों पंजाब, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर और सिंध में converging पाकिस्तान और खाली में अरब सागर के दक्षिण में कराची. जहां एक बार वहाँ गया था केवल एक संकरी पट्टी सिंचित भूमि के साथ इन नदियों के घटनाक्रम पिछली सदी में बनाया है के एक बड़े नेटवर्क नहरों और भंडारण की सुविधा प्रदान करते हैं कि पानी के लिए अधिक से अधिक 26 मिलियन एकड़ (110,000 कि॰मी2), सबसे बड़ा सिंचित क्षेत्र के किसी भी एक नदी प्रणाली दुनिया में.

को ब्रिटिश भारत के विभाजन बनाया एक संघर्ष पर भरपूर मात्रा में पानी की सिंधु बेसिन. नवगठित राज्यों बाधाओं पर थे करने के लिए कैसे पर साझा और प्रबंधित किया गया था क्या अनिवार्य रूप से एक जोड़नेवाला और एकात्मक नेटवर्क की सिंचाई. इसके अलावा, के भूगोल विभाजन किया गया था कि इस तरह के स्रोत नदियों की सिंधु बेसिन थे। पाकिस्तान महसूस किया अपनी आजीविका की धमकी दी है कि संभावना से भारतीय पर नियंत्रण सहायक नदियों तंग आ गया है कि पानी में पाकिस्तान के हिस्से के बेसिन. जहां भारत निश्चित रूप से अपने स्वयं की महत्वाकांक्षा के लिए लाभदायक विकास के बेसिन, पाकिस्तान तीव्रता से महसूस किया की धमकी दी एक संघर्ष पर मुख्य पानी के स्रोत के लिए अपनी कृषि योग्य भूमि है।

पहले साल के दौरान विभाजन के जल सिंधु थे apportioned द्वारा अंतर-डोमिनियन समझौते की 4 मई, 1948. इस समझौते की आवश्यकता भारत में रिलीज करने के लिए पर्याप्त पानी के लिए पाकिस्तानी क्षेत्र के बेसिन में वापसी के लिए वार्षिक भुगतान से पाकिस्तान की सरकार है। समझौते का मतलब था पूरा करने के लिए तत्काल आवश्यकताओं और द्वारा पीछा किया गया था बातचीत के लिए एक अधिक स्थायी समाधान है। हालांकि, न तो पक्ष में तैयार किया गया था, समझौता करने के लिए उनके संबंधित पदों और वार्ता एक गतिरोध पर पहुंच गया है। भारतीय से देखने की बात है, वहाँ कुछ भी नहीं था कि पाकिस्तान क्या कर सकता है को रोकने के लिए भारत से किसी भी योजनाओं के प्रवाह को हटाने के पानी की नदियों में है।   पाकिस्तान ले जाना चाहता था, इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश, लेकिन भारत से इनकार कर दिया, उनका तर्क है कि संघर्ष की आवश्यकता एक द्विपक्षीय संकल्प है।

इस एक ही वर्ष में, डेविड Lilienthal, पूर्व अध्यक्ष के टेनेसी वैली प्राधिकरण और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोगका दौरा किया क्षेत्र के लिए लेख की एक श्रृंखला लिखने के लिए खनक पत्रिका है। Lilienthal में गहरी रुचि थी उपमहाद्वीप और द्वारा स्वागत किया गया था के उच्चतम स्तर दोनों भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों का है। हालांकि अपनी यात्रा के द्वारा प्रायोजित किया गया था खनक के, Lilienthal के बारे में बताया था के द्वारा राज्य विभाग और कार्यकारी शाखा के अधिकारियों, जो आशा व्यक्त की है कि Lilienthal मदद कर सकता है कि खाई को पाटने भारत और पाकिस्तान के बीच और भी गेज शत्रुता उपमहाद्वीप पर है। कोर्स के दौरान अपनी यात्रा की, यह स्पष्ट हो गया के लिए Lilienthal है कि तनाव के बीच भारत और पाकिस्तान के थे, तीव्र, लेकिन यह भी करने में असमर्थ हो सकता है मिट के साथ एक व्यापक संकेत है। उन्होंने लिखा अपनी पत्रिका में:

भारत और पाकिस्तान के कगार पर थे युद्ध खत्म हो गई है। वहाँ लग रहा था होना करने के लिए कोई संभावना नहीं के साथ बातचीत कर इस मुद्दे को जब तक तनाव abated. एक तरह से कम करने के लिए दुश्मनी। है। है। होगा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर जहां सहयोग से संभव हो गया था। इन क्षेत्रों में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा एक समुदाय की भावना दोनों देशों के बीच जो हो सकता है, समय में, का नेतृत्व करने के लिए एक कश्मीर के निपटान. तदनुसार, मैं प्रस्ताव रखा है कि भारत और पाकिस्तान के बाहर काम के एक कार्यक्रम में संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए और संयुक्त रूप से संचालित करने के लिए सिंधु बेसिन नदी प्रणाली है, जिस पर दोनों देशों निर्भर थे, सिंचाई के लिए पानी. के साथ नए बांधों और सिंचाई नहरों, सिंधु और उसकी सहायक नदियों में किया जा सकता है उपज के लिए अतिरिक्त पानी प्रत्येक देश के लिए आवश्यक वृद्धि हुई खाद्य उत्पादन. मैं लेख में सुझाव दिया था कि विश्व बैंक का उपयोग हो सकता है अपने अच्छे कार्यालयों के लिए लाने के लिए पार्टियों के समझौते, और मदद के वित्त पोषण में एक सिंधु विकास कार्यक्रम है। 

Lilienthal के विचार अच्छी तरह से प्राप्त किया गया था पर अधिकारियों द्वारा विश्व बैंक, और बाद में, द्वारा, भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों का है। यूजीन आर ब्लैक, तो विश्व बैंक के अध्यक्ष से कहा, Lilienthal है कि उसके प्रस्ताव “अच्छा समझ में आता है सभी दौर”. काले लिखा था कि बैंक में रुचि थी, आर्थिक प्रगति के दो देशों में किया गया था और चिंतित है कि सिंधु विवाद हो सकता है केवल एक गंभीर बाधा है, इस विकास के लिए। भारत के पिछले आपत्ति करने के लिए तीसरे पक्ष की मध्यस्थता थे remedied बैंक द्वारा की जिद है कि यह नहीं होगा निर्णय के साथ संघर्ष, लेकिन बल्कि के रूप में काम के लिए एक नाली समझौता.[12]

, भी के बीच एक अंतर “कार्यात्मक” और “राजनीतिक” के पहलुओं सिंधु विवाद है। पत्राचार में उनके साथ भारत और पाकिस्तान के नेताओं, ब्लैक ने कहा कि सिंधु विवाद कर सकता है सबसे वास्तविक हल किया जा सकता है, तो कार्यात्मक पहलुओं के बारे में असहमति पर बातचीत कर रहे थे के अलावा राजनीतिक कारणों से. उन्होंने कल्पना की है कि एक समूह को घेरने की कोशिश की है सबसे अच्छा कैसे के सवाल का उपयोग करने के लिए पानी की सिंधु बेसिन छोड़ रहा है, एक तरफ सवालों के ऐतिहासिक अधिकार या आवंटन.

काले प्रस्तावित काम कर रहे एक पार्टी बना, भारतीय, पाकिस्तानी और विश्व बैंक के इंजीनियरों. विश्व बैंक के प्रतिनिधिमंडल के रूप में कार्य करेगा एक सलाहकार समूह, के साथ आरोप लगाया सुझावों की पेशकश की है और तेजी से संवाद है। अपने उद्घाटन वक्तव्य में काम करने के लिए पार्टी, बात की थी क्यों की वह था के बारे में आशावादी समूह की सफलता:

का एक पहलू श्री Lilienthal के प्रस्ताव की अपील करने के लिए मेरे से पहले. मेरा मतलब है, उसकी जिद है कि सिंधु समस्या है एक इंजीनियरिंग समस्या है और के साथ निपटा जाना चाहिए इंजीनियरों द्वारा. की शक्तियों में से एक इंजीनियरिंग पेशे में है कि, दुनिया भर में सभी इंजीनियरों एक ही भाषा बोलते हैं और दृष्टिकोण के साथ समस्या आम मानकों का निर्णय किया है। 

ब्लैक की उम्मीद के लिए एक त्वरित समाधान के लिए सिंधु विवाद थे, समय से पहले. जबकि बैंक को उम्मीद थी कि दोनों पक्षों के लिए आ जाएगा एक समझौते के आवंटन पर पानी, न तो भारत और न ही पाकिस्तान लग रहा था, समझौता करने के लिए तैयार अपने पदों. जबकि पाकिस्तान पर जोर दिया है अपनी ऐतिहासिक करने के लिए सही पानी के सभी सहायक नदियों सिंधु और है कि आधे के पश्चिम पंजाब गया था, की धमकी के तहत मरुस्थलीकरण, भारतीय पक्ष ने तर्क दिया कि पिछले वितरण का पानी नहीं होना चाहिए सेट के भविष्य के आवंटन. इसके बजाय, भारतीय पक्ष की स्थापना के लिए एक नया आधार के वितरण के साथ, पानी के पश्चिमी सहायक नदियों के साथ जा रहा करने के लिए पाकिस्तान और पूर्वी सहायक नदियों के लिए भारत. मूल तकनीकी चर्चा है कि, आशा व्यक्त की थी के लिए stymied थे द्वारा राजनीतिक कारणों से वह उम्मीद थी से बचने के लिए।

विश्व बैंक जल्द ही निराश हो गया की इस कमी के साथ प्रगति. क्या था मूल रूप से अनुरूप किया गया है के रूप में एक तकनीकी विवाद होता है कि जल्दी सुलझाना ही शुरू कर दिया लग रहे करने के लिए असभ्य है। भारत और पाकिस्तान में असमर्थ थे पर सहमत करने के लिए तकनीकी पहलुओं के आवंटन, अकेले चलो किसी के कार्यान्वयन पर सहमति के वितरण पर आधारित है। अंत में, 1954 में, के बाद लगभग दो साल की बातचीत, विश्व बैंक की पेशकश की है अपने स्वयं के प्रस्ताव, कदम से परे सीमित भूमिका यह apportioned था खुद के लिए और मजबूर दोनों पक्षों पर विचार करने के लिए ठोस योजना के भविष्य के लिए बेसिन. प्रस्ताव की पेशकश की भारत के तीन पूर्वी सहायक नदियों के बेसिन और पाकिस्तान के तीन पश्चिमी सहायक नदियों के साथ। नहरों और भंडारण बांधों थे करने के लिए निर्माण किया जा सकता है हटाने के लिए पानी से पश्चिमी नदियों और की जगह पूर्वी नदी की आपूर्ति खो दिया है और पाकिस्तान द्वारा.

जबकि भारतीय पक्ष में था करने के लिए उत्तरदायी विश्व बैंक के प्रस्ताव, पाकिस्तान पाया कि यह अस्वीकार्य है। विश्व बैंक आवंटित पूर्वी नदियों के लिए भारत और पश्चिमी नदियों पाकिस्तान के लिए। इस नए वितरण नहीं किया था के लिए खाते में ऐतिहासिक उपयोग की सिंधु बेसिन, या तथ्य यह है कि पश्चिम पंजाब के पूर्वी जिलों में बदल सकता है, रेगिस्तान और पाटा पाकिस्तान की बातचीत की स्थिति है। जहां भारत खड़ा था के लिए एक नई प्रणाली का आवंटन, पाकिस्तान महसूस किया है कि अपने हिस्से के पानी पर आधारित होना चाहिए पूर्व-विभाजन वितरण. विश्व बैंक का प्रस्ताव किया गया था और अधिक के साथ लाइन में भारतीय योजना है और इस से नाराज है पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल. वे धमकी से वापस लेने के लिए काम कर पार्टी है, और वार्ता पर verged पतन.

हालांकि, न तो पक्ष को बर्दाश्त कर सकता है के विघटन बातचीत की। पाकिस्तानी प्रेस से मुलाकात की अफवाहें करने के लिए एक अंत के साथ बातचीत की बात करते हैं, शत्रुता में वृद्धि हुई; सरकार बीमार था-तैयार करने के लिए छोड़ वार्ता के लिए एक हिंसक संघर्ष के साथ भारत और मजबूर किया गया था करने के लिए अपनी स्थिति पर पुनर्विचार. भारत के लिए भी उत्सुक बसा सिंधु मुद्दा; बड़ी विकास परियोजनाओं पर डाल रहे थे पकड़ वार्ता, और भारतीय नेताओं के लिए उत्सुक थे पानी हटाने के लिए सिंचाई।

दिसम्बर 1954, दोनों पक्षों के लिए लौट आए बातचीत की मेज पर. विश्व बैंक के प्रस्ताव से बदल गया था एक आधार के निपटान के लिए एक आधार के लिए बातचीत और वार्ता जारी रखा है, बंद करो और जाओ, अगले छह वर्षों के लिए।

एक अंतिम ठोकरें खाते हुए चल ब्लॉक करने के लिए एक समझौते चिंतित वित्त पोषण के लिए नहरों के निर्माण और भंडारण की सुविधा है कि स्थानांतरण होगा पानी से पश्चिमी नदियों पाकिस्तान के लिए। इस हस्तांतरण के लिए आवश्यक था के लिए बनाने के लिए पानी पाकिस्तान दे रहा था द्वारा ceding के लिए अपने अधिकारों पूर्वी नदियों. विश्व बैंक शुरू में की योजना बनाई भारत के लिए भुगतान करने के लिए इन के लिए काम करता है, लेकिन भारत से इनकार कर दिया है। बैंक के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की एक योजना के लिए बाह्य वित्त पोषण की आपूर्ति मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम. इस समाधान को मंजूरी दे दी शेष ठोकरें खाते हुए चल ब्लॉक करने के लिए समझौते और संधि पर हस्ताक्षर किया गया था के नेताओं द्वारा दोनों देशों में 1960.[13]

समझौते की स्थापना की स्थायी सिंधु आयोग के निर्णय करने के लिए भविष्य में किसी भी उत्पन्न होने वाले विवादों के आवंटन से अधिक पानी है। आयोग बच गया है तीन युद्धों प्रदान करता है और चल रहे एक तंत्र के लिए परामर्श और संघर्ष के संकल्प निरीक्षण के माध्यम से, डेटा के आदान-प्रदान और यात्राओं. आयोग की आवश्यकता को पूरा करने के लिए नियमित रूप से चर्चा करने के लिए संभावित विवादों के रूप में अच्छी तरह के रूप में सहकारी व्यवस्था के विकास के लिए बेसिन. या तो पार्टी को सूचित करना चाहिए अन्य योजनाओं के निर्माण के लिए किसी भी इंजीनियरिंग काम करता है जो को प्रभावित करेगा अन्य पार्टी और डेटा प्रदान करने के लिए इस तरह के बारे में काम करता है। असहमति की स्थिति में, एक तटस्थ विशेषज्ञ में कहा जाता है के लिए मध्यस्थता और मध्यस्थता है। जबकि न तो पक्ष शुरू की परियोजनाओं के कारण हो सकता है कि इस तरह के संघर्ष है कि आयोग बनाया गया था को हल करने के लिए, वार्षिक निरीक्षण और डेटा के आदान-प्रदान जारी रखने के लिए, बेफिक्र द्वारा तनाव उपमहाद्वीप पर है। संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। दिल्ली में एक सोच ये भी है पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में गुस्सा भड़काने के लिए कर रहा है।

 सिंधु जल समझौते में क्यों अटकी है पाकिस्तान की ‘जान’, भारत अगर संधि तोड़ दे तो फिर क्या होगा?

 पाकिस्तान की इमरान सरकार भी समझ रही है कि उसके मुल्क के लिए सिंधु समझौता कश्मीर समझौते से भी काफी अहम है. क्योंकि कश्मीर के तो त्वरित दुष्परिणाम सामने नहीं आएंगे, मगर सिंधु समझौते पर अगर भारत सरकार का रुख कड़ा हुआ और वैश्विक दबावों को दरकिनार कर सिंधु के पानी को रोक देती है, तो पाकिस्तान को इसके त्वरित प्रभाव से गुजरना पड़ेगा और यह उसकी अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे की घंटी साबित होगी. भारत अगर इस समझौते को तोड़ देता है तो पाकिस्तान की हलक सूख जाएगी.   अगर भारत यह फैसला लेता है तो पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत हो जाएगी. इमरान सरकार के लिए सिंधु जल समझौता कश्मीर मुद्दे से भी काफी अहम है. इसका मतलब यह नहीं, कि इमरान सरकार कश्मीर मुद्दे को छोड़ देगा. मगर इतना तय है कि इमरान सरकार ने पहली बातचीत के लिए सिंधु जल संधि के मुद्दे को चुना है.  2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सिंधु को लेकर जो बातें कहीं थीं, वह भी इमरान खान को याद ही होगा. पीएम मोदी ने 25 नवंबर को बठिंडा में कहा था, “सिंधु नदी का पानी भारतीय किसानों का है. हमारे किसानों को पर्याप्त पानी मुहैया कराने के लिए हम कुछ भी करेंगे.” हालांकि, 2016 में ही पीएम नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि पर हुई बैठक के दौरान कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं. इस बयान को पाकिस्तान के लिए कड़े संदेश के तौर पर रेखांकित किया था.  भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई. इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया. पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है. संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है. भारत अपनी 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है. वह चाहे तो इन नदियों पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है.  आखिर सिंधु नदी का इतना महत्व क्यों है. सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है. इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है. सहायक नदियों चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है. पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं. इसके अलावा, पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है. अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे. सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. यानी उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं. सिंधु और सतलज नदी का उद्गम चीन में है, जबकि बाकी चार नदियां भारत में ही निकलती हैं. सभी नदियों के साथ मिलते हुए विराट सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है. भारत को सिंधु नदी घाटी में ये फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं. यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है. पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है. पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है. यानी पाकिस्तान के लिए इस नदी के महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता.

 पाकिस्तानी विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने बात इन दोनों अलगाववादी नेताओं से बात की तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने 30 जनवरी को कड़ी आपत्ति जताई थी.

नई दिल्ली में पाकिस्तानी राजदूत को भारत ने समन भेजकर जवाब मांगा था. भारत ने कहा था कि पाकिस्तान ने ऐसा कर अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नियमों का उल्लंघन किया है.

कंवल सिब्बल को लगता है कि कश्मीरी अलगाववादियों को कुछ ज़्यादा ही छूट दी जा रही है.

वो कहते हैं, ”भारत में कश्मीर और आतंकवाद को लेकर लोगों का मत विभाजित है. यह हमारे लिए सबसे संकट की बात है. हमें इसे भी हैंडल करना है. दूसरी तरफ़ इस मामले में न्यायपालिका से भी मदद नहीं मिल रही. कोई ठोस क़दम उठाना चाहता है तो ये जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं और यहां उन्हें राहत मिल जाती है. हमारा लोकतंत्र काफ़ी लचर हो गया है.”

सिब्बल कहते हैं, ”कश्मीर के भीतर सफ़ाये की ज़रूरत है. हुर्रियत वालों को जो सीआरपीएफ़ और राज्य पुलिस की सुरक्षा मिली हुई है, उसे तत्काल हटाने की ज़रूरत है. पाकिस्तान के साथ कुछ कड़े क़दम उठाने की ज़रूरत है. ये क़दम क्या हो सकते हैं इस पर तो सरकार को ही सोचना होगा. संयुक्त राष्ट्र से मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने के लिए फिर से सक्रिय होना होगा.”

 मसूद अज़हर चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक है. भारत ने अज़हर को दो बार अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की कोशिश की थी लेकिन चीन ने सुरक्षा परिषद में वीटो कर दिया था.

भारत चीन को इस मामले में समझाने में अब तक नाकाम रहा है. पठानकोट हमले में भी मसूद अज़हर का नाम आया था.

भारत में अभी प्रचंड जनादेश वाली सरकार है. सारी ताक़त उसके पास है. ऐसे में कोई भी निर्याणक क़दम उठाने में कुछ ख़ास मदद क्यों नहीं मिल पा रही? इस सवाल के जवाब में कंवल सिब्बल कहते हैं, ”मुझे लगता है कि सरकार अभी डिफेंसिव है. सरकार पर तो आरोप लग रहे हैं कि वो संस्थाओं को कमज़ोर कर रही है.”

मनमोहन सिंह की गठबंधन सरकार और मोदी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार का रुख़ चरमपंथी हमलों में कितना अलग है? इस पर कंवल सिब्बल कहते हैं, ”ऐसी बात तो है नहीं कि मनमोहन सिंह सरकार चुप रही है. उसने भी ऐसे हमलों पर जो करना चाहिए था किया. दिक़्क़त ये है कि भारत के पास विकल्प कम हैं. पाकिस्तान के साथ अगर आप भिड़ने को तैयार होते हैं तो उसकी भी दिक़्क़ते हैं. संयु्क्त राष्ट्र में चीन पूरी तरह से पाकिस्तान का साथ दे रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे देश के भीतर ही लोगों के मत विभाजित हैं.”

सिब्बल का मानना है कि अपने घर में आतंकवाद और पाकिस्तान पर एक सुर में नहीं बोलना पाकिस्तान के हक़ में जाता है.

वो कहते हैं, ”अपने ही देश में लोग मांग करते हैं कि पाकिस्तान से बात कीजिए. इमरान ख़ान की पेशकश को स्वीकार कीजिए. संवाद बंद मत कीजिए. कुल मिलाकर मेरा ये कहना है कि देश के भीतर ही लोग विभाजित हैं. पाकिस्तान के पक्ष में या उनकी नीतियों से सहानुभूति रखने वाले लोग कम नहीं हैं. कश्मीर में ऐसे कई लोग हैं जो पाकिस्तान का पक्ष लेते हैं. उमर अब्दुल्ला और उनके पिता क्या बात करते हैं? ये पाकिस्तान से बात करने का समर्थन करते हैं. कोई कड़ा क़दम उठाने की बात आती है तो इनका रुख़ सकारात्मक नहीं होता है.”

विदेशी सेवा के वरिष्ठ अधिकारी विवेक काटजू भी सिब्बल से सहमत हैं कि कश्मीर के नेताओं को राष्ट्रहित के बारे में सोचना चाहिए.

काटजू का कहना है भारत के पास पाकिस्तान के ख़िलाफ़ करने के लिए कई विकल्प संभव बनाए जा सकते हैं. वो कहते हैं, ”राहुल गांधी ने बिल्कुल सही रुख़ दिखाया है इस मसले पर वो सरकार के साथ खड़े हैं. कश्मीर के नेताओं को भी राष्ट्रहित में एक साथ खड़ा होना चाहिए.”

मोदी सरकार ने 2016 में सिंधु जल संधि को तोड़ने की बात कही थी लेकिन सरकार कोई फ़ैसले पर नहीं पहुंच पाई थी. कई लोगों का मानना है कि चीन के कारण इस संधि को भारत के लिए तोड़ना आसान नहीं होगा

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