केजरीवाल विधायकों को बचा सकते हैं;

Top Breaking; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) केजरीवाल यह दलील देकर अपने विधायकों को बचा सकते हैं कि संसदीय सचिव पद पर विधायकों की वैध नियुक्ति हुई ही नहीं, क्योंकि उसे उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली थी. ् ‘लाभ के पद’ या ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग द्वारा आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने से दिल्ली की राजनीति में उफान आ गया है. आप के 20 विधायकों के कथित तौर पर लाभ के पद धारण करने को लेकर चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य घोषित करने की अनुशंसा के खिलाफ आप के विधायकों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. जहां से उन्हें राहत नहीं मिली. हाईकोर्ट ने कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया् लाभ के पद से जुड़े मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों को शुक्रवार (19 जनवरी) को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. दिल्ली हाईकोर्ट ने आप विधायकों को फटकार लगाते हुए कहा कि जब चुनाव आयोग ने आपको बुलाया था तो आप क्यों नहीं गए. ‘आप’ को हाईकोर्ट ने फौरी राहत देने से मना करने के साथ ही सुनवाई सोमवार (22 जनवरी) तक के लिए टाल दी आप के 20 विधायकों के कथित तौर पर लाभ के पद धारण करने को लेकर चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य घोषित करने की अनुशंसा के खिलाफ आप के विधायकों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. आप विधायकों की याचिका कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की पीठ के समक्ष उल्लिखित की गई, जिस पर आज (शुक्रवार, 19 जनवरी) हुई. उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को कथित तौर पर लाभ के पद पर काबिज रहने के कारण अयोग्य घोषित किये जाने की अनुशंसा की है. उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजी गई अपनी राय में चुनाव आयोग ने कहा है कि संसदीय सचिव बनकर वे लाभ के पद पर हैं और दिल्ली विधानसभा के विधायक के तौर पर अयोग्य घोषित होने योग्य हैं.
राष्ट्रपति आयोग की अनुशंसा मानने को बाध्य हैं. जिन मामलों में विधायकों या सांसदों की अयोग्यता की मांग वाली याचिकाएं दी जाती हैं, उन्हें राष्ट्रपति राय जानने के लिए चुनाव आयोग के पास भेजते हैं. चुनाव आयोग मामले पर अपनी राय भेजता है. वर्तमान मामले में 21 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका दी गई थी, लेकिन एक ने कुछ महीने पहले इस्तीफा दे दिया था.
इससे पहले चुनाव आयोग द्वारा अपने 20 विधायकों को कथित तौर पर लाभ के पद पर काबिज रहने के कारण अयोग्य घोषित किये जाने की अनुशंसा से नाराज आम आदमी पार्टी (आप) ने शुक्रवार (19 जनवरी) को कहा कि आयोग ‘इतना नीचे कभी नहीं गिरा’ था. पार्टी नेता आशुतोष ने ट्वीट किया, ‘‘निर्वाचन आयोग को पीएमओ का लेटर बॉक्स नहीं बनना चाहिए. लेकिन आज के समय में यह वास्तविकता है.’’ पत्रकारिता छोड़ राजनीति में उतरने वाले आशुतोष ने कहा, ‘‘(टी एन शेषन) के समय में रिपोर्टर के तौर पर चुनाव आयोग कवर करने वाला मेरा जैसा व्यक्ति कह सकता है कि निर्वाचन आयोग कभी इतना नीचे नहीं गिरा.’’
कानून बनाने के दौरान विधायकों की निष्पक्षता बनी रहे इसलिए संविधान के अनुच्छेद 191 में यह प्रावधान किया गया कि विधायक अन्य ‘लाभ का पद’ नहीं ले सकते. संविधान के अनुच्छेद-239(क) के अनुसार दिल्ली में मुख्यमंत्री के अलावा सिर्फ 6 मंत्री बन सकते हैं. आप पार्टी की सरकार बनने के बाद विधायकों में पदों की ऐसी होड़ मची कि एक महीने के भीतर ही केजरीवाल को 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करना पड़ा. दिल्ली में मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव के पद को 2006 के कानून द्वारा ‘लाभ के पद’ के दायरे से बाहर किया गया परंतु मंत्रियों के संसदीय सचिव ‘लाभ के पद’ के दायरे में ही बने रहे. ् वकील प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास शिकायत करके लाभ के पद के क़ानून के उल्लंधन पर 21 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की. राष्ट्रपति ने मामला चुनाव आयोग को भेजा, जिस पर चुनाव आयोग ने मार्च 2016 में आप विधायकों को नोटिस जारी किया. शिकायत के बाद केजरीवाल सरकार ने पिछली तारीख से कानून बनाकर संसदीय सचिव पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन राष्ट्रपति ने बिल को मंजूरी ही नहीं दी. एक मौजू सवाल यह भी है कि जब कोई कानूनी अधिकार या सुविधाएं नहीं हैं तो फिर इन पदों पर विधायकों की नियुक्ति क्यों हुई? अगर विधायकों को कोई लाभ नहीं मिल रहा था तो 3 महीने बाद संरक्षण हेतु विधानसभा में कानून क्यों पारित करना पड़ा? जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी नहीं मिली. दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को 8 सितंबर 2016 को रद्द कर दिया था और अब चुनाव आयोग ने इनको अयोग्य घोषित करने की अनुशंसा कर दी है. ् आप पार्टी के प्रवक्ता के अनुसार चुनाव आयोग ने विधायकों का पक्ष सुने बगैर ही राष्ट्रपति के पास कारवाई के लिए सिफारिश भेजी है जो राजनीति प्रेरित होने के साथ गैरकानूनी भी है. जबकि दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने आयोग को दिए अपने हलफनामा में माना था कि विधायकों को मंत्रियों की तरह सुविधा दी गई. आप विधायकों ने अपने प्रतिवेदन में कहा था कि जब दिल्ली हाईकोर्ट में संसदीय सचिवों की नियुक्तियां ही रद्द हो गई तो चुनाव आयोग में मामला चलने का कोई मतलब नहीं बनता. विधायकों द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए जवाब में यह भी कहा गया, कि उन्हें कोई लाभ, पूर्णकालिक कार, ड्राइवर नहीं मिलता और वे सरकारी कार्यों में कोई हस्तक्षेप भी नहीं कर सकते थे. परंतु आरटीआई से यह साबित होता है कि 21 संसदीय सचिवों को मंत्रालय में कमरा, सरकारी टेलीफोन, इंटरनेट एवं सामूहिक कार इत्यादि की सुविधा मिलती है. इन जवाबों और प्रतिवेदनों के बावजूद सुनवाई न होने का तर्क कैसे सही हो सकता है?
आगे क्या होगा?
निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रपति को अपनी राय भेज दी है परंतु आयोग की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. केजरीवाल यह दलील देकर अपने विधायकों को बचा सकते हैं कि संसदीय सचिव पद पर विधायकों की वैध नियुक्ति हुई ही नहीं, क्योंकि उसे उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली थी. पर इस कानूनी बचाव से उन्हें उपराज्यपाल की सर्वोच्चता के साथ अपनी गलती को स्वीकारना होगा जो राजनीतिक तौर पर उनके लिए घातक सिद्ध हो सकती है. केंद्र सरकार से गतिरोध के बाद उपराज्यपाल के अधिकारों पर पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई और जिस पर फैसला आना बाकी है. अगले महीने फ़रवरी में 3 साल पूरा करने वाली केजरीवाल सरकार इस मामले पर भी राजनीतिक हो-हल्ला करने के साथ कानूनी लड़ाई के लिए पूरा जोर लगाएगी, जिससे अदालती फैसला आने तक विधायक अपना बकाया कार्यकाल पूरा कर ले. संविधान के अनुसार राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सिफारिश के आधार पर कार्रवाई करने के लिए बाध्य हैं. राष्ट्रपति के फैसले पर यदि अदालती रोक नहीं लगती तो फिर लंबी कानूनी लड़ाई के बावजूद 20 लोगों की विधायकी कैसे बचेगी?

www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) 

Leading Web & Print Media ; Available in FB, Twitter, whatsup Groups & All Social Media ;

Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *