शिवजी को तीसरी आंख कैसे मिली- त्रिनेत्र का रहस्य

शिव जी की एक आँख सूर्य है तो दूसरी आंख चंद्रमा इसलिए जब पार्वती जी ने उनके नेत्रों को बंद किया तो चारों ओर अन्धकार फैल गया था।

महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि आखिर शिवजी को तीसरी आंख कैसे मिली थी। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नारद जी भगवान शिव और माता पार्वती के बीच हुए बातचीत को बताते हैं। इसी बातचीत में त्रिनेत्र का रहस्य छुपा हुआ है।

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नारद जी बताते हैं कि एक बार हिमालय पर भगवान शिव एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानीजन शामिल थे। तभी सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए अपने दोनों हाथों से भगवान शिव की दोनों आंखों को ढक दिया।

माता पार्वती ने जैसे ही भगवान शिव की आंखों को ढका, संसार में अंधेरा छा गया। ऐसा लगने लगा जैसे सूर्य देव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसके बाद धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में खलबली मच गई।

संसार की ये दशा भगवान शिव से देखी नहीं गई और उन्होंने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बनी। बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उनसे बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं।

कहते हैं शिव जी की एक आँख सूर्य है तो दूसरी आंख चंद्रमा इसलिए जब पार्वती जी ने उनके नेत्रों को बंद किया तो चारों ओर अन्धकार फैल गया था।

कहते हैं शिव जी की तीसरी आँख उनका कोई अतिरिक्त अंग नहीं है बल्कि ये उनकी दिव्य दृष्टि का प्रतीक है जो आत्मज्ञान के लिए बेहद ज़रूरी है। शिव जी को संसार का संहारक कहा जाता है जब जब संकट के बादल छाए तब तब भोलेनाथ ने पूरे संसार को विपदा से बचाया है।

माना जाता है कि महादेव की तीसरी आँख से कुछ भी बच नहीं सकता। उनकी यह आंख तब तक बंद रहती है जब तक उनका मन शांत होता है किन्तु जब उन्हें क्रोध आता है तो उनके इस नेत्र की अग्नि से कोई नहीं बच सकता।

शिव जी की तीसरी आंख हमे यह सन्देश देती है कि हर मनुष्य के पास तीन आँखें होती है। ज़रुरत है तो सही समय पर उसका सही उपयोग करने की। ये तीसरी आँख हमें आने वाले संकट से अवगत कराती है। सही गलत के बीच हमें फर्क बताती है और साथ ही हमें सही रास्ता भी दिखाती है।

जीवन में कई बार ऐसी परेशानियां आ जाती है जिन्हें हम समझ नहीं पाते ऐसी परिस्तिथि में यह हमारा मार्गदर्शन करती है। धैर्य और संयम बनाए रखने में भी ये हमारी मदद करती है।

भगवान शिव शव के जलने के बाद उस भस्म को अपने पूरे शरीर पर लगाते हैं। इसका अर्थ यह है कि हमारा यह शरीर नश्वर है। एक न एक दिन इसी प्रकार राख हो जाएगा इसलिए हमें कभी भी इस पर घमंड नहीं करना चाहिए। साथ ही सुख और दुःख दोनों हो जीवन का हिस्सा है। जो व्यक्ति खुद को परिस्तिथियों के अनुसार ढाल लेता है उसका जीवन सफल हो जाता है और यह उसका सबसे बड़ा गुण होता है।

यदि आप भगवान शिव के इन मंत्रो का जाप करते है, तो आपको जीवन मे कामयाबी जरुर मिलेगी, लेकिन साथ ही जब आप अपना कर्म सही तरीके से करेंगे।

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।

अगर आपका स्वास्थ्य सही नही रहता है तो यह मंत्र आपके लिय बहुत ही लाभकारी है इन मंत्रो का उच्चारण करने से स्वास्थ्य सही रहता है

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।

शिव जी की पूजा करते समय हमे शिव के मंत्रो का उच्चारण करते रहना चहिये जैसे शिव जी के स्नान मंत्र, शिव यज्ञोपवीत समर्पण मंत्र, भोलेनाथ गंध समर्पण मंत्र, भोलेनाथ गंध समर्पण मंत्र आदि तो आइये जानते है शिव की पूजा के दौरान प्रयोग किये जाने वाले मंत्रो को- शिव जी स्नान मंत्र

ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो |
वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद् ||

भगवान शिव यज्ञोपवीत समर्पण मंत्र

ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः |
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ||

भगवान भोलेनाथ गंध समर्पण मंत्र – ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः |
शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च ||

भगवान भोलेनाथ धूप समर्पण मंत्र ; ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च |
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ||

आत्माएं सारी बुरी नहीं होतीं, अच्छी आत्माएं

आत्माएं सारी बुरी नहीं होतीं, अच्छी आत्माएं भी होती हैं। भला करने वाली आत्माएं भी होती हैं और जनरली ये भला करने वाली आत्माएं या अच्छी आत्माएं हमारे ही घर के लोग होते हैं, जिन्हें हम पितर बोलते हैं। हमारे बड़े-बूढ़े, हमारे कोई भी घर का जो मरता है अगर उसका अगला जन्म नहीं हुआ या गति नहीं हुई या अभी उसका शेष जीवन रह गया है तो वो आत्मा पितर बन जाती है क्योंकि वो हमारी घर की है तो इसलिए हम उसे पितर बुलाते हैं। कोई बाहर का आदमी होगा और अगर उसको ये हमारे घर का आदमी कोई जो मर चुका है, दिखाई देगा तो वो उसको भूत (प्रेत) बुलाएगा क्योंकि हमारा अपना आदमी है इसलिए हमारे लिए उनके मन में रिस्पेक्ट है और क्योंकि हम उनके अपने हैं इसलिए वो आत्मा हमारा बुरा नहीं करती, हमारा अच्छा ही करती हैं। हमारी मदद करती हैं।

किसी के भी पितर हैं, वो भले ही दिखाई न देते हों आज। आज कोई भी किसी के घर का मरा है आज वो दिखाई नहीं देता पर वो मरने के बाद भी हमारी चिंता करते हैं, हमारा ख्याल करते हैं, हमारा ध्यान रखते हैं। हमें आने वाली मुसीबतों से बचाते हैं। हमें हर किस्म के कष्ट से या किसी भी तरीके का अगर कोई तांत्रिक काम है, जो हम पर कोई क्रिया कर रहा है या कोई आत्मा है या कोई बुरी चीज है या कोई निगेटिविटी है, अगर वो हमारे घर में प्रवेश करने की कोशिश कर रही है या हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है तो उनको भी रोकते हैं क्योंकि आत्मा तो आत्मा को रोक सकती है। आत्मा, आत्मा को देख सकती है।

तो हमें ऐसा क्या करना चाहिए जिससे हमारे जो पितर हैं उनके प्रति हमारा फर्ज भी पूरा हो जाए और वो हमारी रक्षा भी कर सकें।

जिस तरह इंसान अपने जीवन में, जब जीता है तो उसको पैसे की जरूरत होती है, सपोर्ट की जरूरत होती है, ताकत हासिल करने के लिए और बलशाली बने रहने के लिए। मरने के बाद आत्मा को भी ताकत की जरूरत होती है, एक सपोर्ट की जरूरत होती है। आज तो जो हमारे घर वाले हैं, रिलेटिव्स हैं हमें दिखाई दे रहे हैं। हम उनका सपोर्ट ले लेते हैं पर जब कोई भी इंसान अपना शरीर छोड़ कर आत्मा बनता है और वो इस धरती पर भटक रहा है तो उसके पास सपोर्ट के लिए कोई नहीं है, सिवाय इसके कि घर के अगर एक-आध जन मर चुके हों, पहले कोई मरे हों और उनकी गति न हुई हो और वो भी घर में बैठे हुए हों, पितर बने हुए तो कोई नया सदस्य जो मर के आएगा तो उसको उनका सपोर्ट मिल जाएगा पर फिर भी जो बाहरी ताकतें हैं, बाहरी ऊपरी हवाएं हैं, बाहरी टोटके हैं, तांत्रिक क्रियाएँ हैं जो आपके दुश्मन आप पर करते हैं, उनसे अकेले ही आपके पितर लड़ते हैं। ऐसे में आपको पितरों को ताकत देना बहुत जरूरी है। वो ताकत इसलिए जरूरी है ताकि वो खाली एक क्षण भर के लिए नहीं, हमेशा के लिए आपकी रक्षा कर सकें जब तक वो दूसरे पड़ाव तक नहीं पहुंच जाते। जब तक वो इस पृथ्वी लोक में हैं। जब तक आपके साथ हैं।

आप अपने पितरों को मजबूत करने के लिए आपको बहुत ही छोटी-छोटी चीजें करनी हैं। आप डेली भी कर सकते हो और बस वो ये है कि उनके नाम का आप दिया जला दो। रोज शाम को आप उनके नाम का घी का एक दिया जला दो अपने घर में।

दूसरा, उनका नाम लेकर, उनके निमित्त किसी न किसी अमावस्या पर, पूर्णिमा पर, किसी न किसी त्योहार पर और त्योहार भी आप छोड़ो अगर आपको अच्छा कर्म करना है तो कोई भी दिन बुरा नहीं है। किसी भी दिन आप उनके नाम पर कोई भी चीज दान दे दो, गरीब बच्चों को दे दो। अगर आपकी कोई दादी मरी हैं तो आप किसी बूढ़ी औरत को कुछ उनके नाम पर दान दे दो। कोई आपके दादा जी मरे हैं तो किसी बूढ़े आदमी को दे दो।

जब आप जो मर चुके हैं, उनके निमित्त किसी को कुछ दान देते हो, किसी जीवित इंसान को देते हो और वो जीवित इंसान उस वस्तु का इस्तेमाल करता है। उसको चाहे वो खाता है, खाने की वस्तु है। चाहे पहनता है, ओढ़ता है, कोई कपड़ा है। तो जो भी आत्मा होती है उसको बहुत शांति मिलती है, बहुत बल मिलता है क्योंकि वो खुद तो अच्छा कर्म नहीं कर सकता, दान-पुण्य नहीं कर सकता पर उसके निमित्त जो दान-पुण्य हो गया, वो उसको पॉवर देता है, लगता है, उसको शक्ति देता है। अच्छे पितर आपके, अच्छे ही रहें इसके लिए ये बहुत जरूरी है।

आप अगर अपने पितरों के लिए कुछ करते हो तो ये आप उन पर कोई अहसान नहीं कर रहे हो। आप एक अपना फर्ज निभा रहे हो जो आप जीते-जी शायद नहीं निभा पाए या और कोई आपसे कमी रह गई हो, उसकी पूर्ति अब आप कर दोगे।

यहाँ तक कि अगर किसी पितर ने जन्म भी ले लिया हो कहीं पर और आप उनके निमित्त, उनके नाम से कोई दान कर रहे हो तो जिस जन्म में वो जिस भी योनि में होंगे, इंसान की योनि में होंगे, पशु की योनि में होंगे, जिस भी योनि में होंगे, भ्रमण कर रहे होंगे इस धरती पर उनको फायदा मिलेगा क्योंकि आपने शरीर के निमित्त नहीं दान किया है। आपने दान किया है उस आत्मा के लिए, उस आत्मा के नाम पर तो वो आत्मा नए जन्म में किसी भी शरीर में हो, कहीं भी हो, उसको वो फायदा मिलेगा।

ये एक ऐसा छोटा सा कॉन्ट्रिब्यूशन है जो उनको बहुत शक्ति देगा। बहुत शान्ति देगा और जितना वो मरने के बाद भी आपके लिए सोच रहे हैं, आपके लिए कर रहे हैं, उल्टा और खुशी से आपके लिए करेंगे। आधे से ज्यादा विपदाएं तो ऊपर की ऊपर चली जाती हैं जो हमें पता नहीं चलती।

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