सर्प मंत्र-अपने आप चला जाता है & सनातन धर्म में नाग देवता के पूजन का विधान- नाग पंचमी 21 अगस्त-23 सोमवार

श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 20 अगस्त की रात 12 बजकर 23 मिनट से हो रही है, जोकि अगले दिन यानि 21 अगस्त दिन सोमवार की रात 02 बजकर 12 मिनट तक रहने वाली है. उदयातिथि को मानते हुए नाग पंचमी 21 अगस्त को मनायी जाएगी. वहीं पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजे से 09 बजकर 30 मिनट तक है. पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ।  सनातन धर्म में नाग देवता के पूजन का विधान है। देवों के देव महादेव अभूषण रूप में अपने गले में उन्हें धारण करते हैं। 

DT 18 AUGUST 2023 # ब्रह्मा जी ने सर्पों को नाग पंचमी के दिन पूजे जाने का वरदान #; ब्रह्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सर्पों को नाग पंचमी के दिन पूजे जाने का वरदान  21 अगस्त को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। नागपंचमी के अवसर पर भी घर में रोटी नहीं बनती है, नाग पंचमी पर तवे में खाना नहीं पकाना चाहिए। मान्यता के अनुसार रोटी बनाने के लिए जिस लोहे के जिस तवे का इस्तेमाल किया जाता है उसे नाग का फन माना जाता है। तवे को नाग के फन का प्रतिरूप माना गया है। इसलिए नागपंचमी के दिन आग पर तवा नहीं रखा जाता है। # इस दिन नाग की पूजा का विधान है। इनकी पूजा से राहु-केतु जनित दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन कुछ और काम वर्जित हैं। जैसे- किसी भी काम के लिए जमीन की खुदाई न करें। इस दिन सिलाई, कढ़ाई नहीं करनी चहिए, क्योंकि नाग पंचमी पर नुकीली और धारदार चीजों जैसे चाकू, सूई का इस्तेमाल अशुभ माना जाता है।

देवभूमि उत्तराखण्ड में नाग के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नाग देवता कहा जाता है और नागराज शब्द का प्रयोग यहां के लोगों द्वारा नहीं किया जाता है। उत्तराखण्ड में सिर्फ नागराजा शब्द का प्रयोग होता है और सेम मुखेम नागराजा उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है जहां कृष्ण भगवान नागराजा के रूप में पूजे जाते हैं और यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर डाण्डा नागराज पौड़ी जिले में है। उत्तरकाशी में दो नाग कालिया और वासुकि नाग को नागराज के स्वरूप में पूजा जाता है। कालिया नाग को डोडीताल क्षेत्र में पूजा जाता है और वासुकी नाग को बदगद्दी में तथा टेक्नॉर में पूजा जाता है। मान्यता है कि वासुकी नाग का मुँह गनेशपुर में और पूँछ मानपुर में स्तिथ है ।

भूलकर भी ना करें ये 4 काम, वरना 7 पीढ़ियों तक लगेगा दोष!- ज्योतिषी ने लोगों को नाग पंचमी के दिनकुछ गलतियों से बचने की सलाह दी है. सोमवार को नाग पंचमी पड़ना बेहद दुर्लभ संयोग है. इस दिन भोले नाथ पर दूध चढ़ाने के साथ-साथ नाग मंदिर में नाग देवता पर दूध और लावा का भोग अवश्य लगाएं. साथ ही गरीबों के बीच अन्न का दान करें. इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. इस दिन सांप को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.  सर्प को मारने से भी कालसर्प का दोष लगता है ।

सैम मुखेम मंदिर के समीप के जल स्त्रोत में स्नान से कोढ़ व त्वचा विकार दूर होते हैं.

उत्‍तराखंड में नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। जिनमें से टिहरी जिले के सेम मुखेम, पिंगली नाग मंदिर पिथौरागढ़, धौलीनाग मंदिर बागेश्‍वर और देहरादून जिले में स्थित नागथात मंदिर के प्रति लोगों में खूब आस्‍था देखने को मिलती है। वहीं इन मंदिरों के अपने रहस्‍य, इतिहास और मान्‍यताएं हैं। कई पीढ़ियों को दोष लगता है.-  सांप को नुकसान पहुंचाते हैं तो इसका पाप आप पर नहीं, बल्कि आपके पूरे वंश पर पड़ेगा. नाग पंचमी के दिन जमीन की खुदाई नहीं करनी चाहिए.   नाग पंचमी के दिन जिन्दा नाग को दूध पिलाते हैं. जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. क्योंकि सांपों के लिए दूध जहर के सामान होती है. इसलिए नाग पंचमी के दिन आप मंदिर में जाकर दूध चढ़ाएं. नाग पंचमी के दिन धारदार वस्तु का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. जैसे सिलाई, कढ़ाई, इत्यादि अशुभ माना जाता है.

By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे

नागराज एक संस्कृत शब्द है जो कि नाग तथा राज (राजा) से मिलकर बना है अर्थात नागों का राजा। यह मुख्य रूप से तीन देवताओं हेतु प्रयुक्त होता है – शेषनाग, तक्षक तथा वासुकी। अनन्त, तक्षक तथा वासुकी तीनों भाई महर्षि कश्यप, तथा उनकी पत्नी कद्रू के पुत्र थे जो कि सभी नागों के जनक माने जाते हैं। उत्तराखंड   में ऐसा कोई जनपद नहीं जहां श्री कृष्ण के रूप में पूजे जाने वाले नागों के मंदिर न हों.अनेक वैष्णव मंदिर नागराजा मंदिर और नागराजा मंदिर वैष्णव मंदिर कहे गए जिसका कारण यह कि गढ़वाल में नागराजा एवं विष्णु या भगवान श्री कृष्ण को एक ही माना जाता है.नागों का प्रभाव शिव जी की पूजा के साथ भी रहा.

गढ़वाल में नागों का सबसे बड़ा तीर्थ सेम -मुखेम है. साथ ही नागराजा के 65 से अधिक अन्य प्रधान मंदिर हैं. नागथात और नागटिब्बा में नाग पूजा संपन्न की जाती है. विरणेश्वर को समर्पित मंदिर दूधातोली की चौथानपट्टी में है. पांडुकेश्वर में शेषनाग पूजनीय हैं तो रथ गाँव में भीखलनाग. कुमोट में वनपुरनाग की मान्यता है तो तलवर में मंगलनाग. नीति घाटी में लोहियानाग, पौड़ी में नागदेव, दशौली में तक्षकनाग, नागपुर में वासुकीनाग तो जौनसार में बिमहणनाग के साथ ही वसीनाग, बढ़वानाग व उलहणनाग पूजनीय हैं. नागनाथ में पुष्करनाग पूजे जाते हैं.

नागों के प्रतीक नाम अनगिनत हैं जिनकी अलग अलग स्थानों में, गावों में पूजा -अर्चना की जाती है. विशेष पर्व -उत्सवों में षोडशोचार पूजन व कहीं बलि भी चढ़ती है. नागों में मुख्य शेषनाग, नागदेव, वोखनाग,, पुष्कर नाग, बेरिंगनाग, चन्दनगिरिनाग, कम्बलनाग, लोहनदोनाग, कालिकनाग, वाम्पानाग, पूंडरिकनाग, संगलनाग, लुद्देश्वरनाग, हूणनाग, छद्देश्वर नाग, करमजीतनाग, शिकारूनाग, बगासूनाग, नागदेव टटोर डांडा इत्यादि माने गए हैं.जौनपुर में बैट गाँव, औतड़, श्रीकोट, गौगी, दीवान, भटोगाक्यारकुली, मौलधार, बिच्छू, वाडासारी व मयाणी इत्यादि गावों में प्रतिष्ठित नागमंदिर हैं.

कुमाऊं मण्डल में प्रमुख नाग मंदिरों में चम्पावत में नागनाथ, ग्वालदम के नागदेवता, दानपुर के वासुकी नाग, सालम के नागदेव पदमगीर, भगोटी में सितेश्वर नाग, पुंगराऊ पट्टी के काली नाग, अठीगाँव के वासुकी नाग, छकाता नैनीताल में करकोटक नाग, विर्नेश्वर के अनंत नाग, विलानाग, फुंकार नाग, हुंकार नाग, तक्षक नाग, पुष्कर नाग, विसुनाग, शिशुनाग, शेषनाग, शिशु नाग, फिशनाग, धुमरी नाग,धौली नाग, खरही नाग, फेणी नाग व बेणीनाग उल्लेखनीय हैं जहां स्थानीय परिपाटी के अनुसार धूप- दीप -नैवेद्य से रोज इनकी नैमितिक अर्चना तो होती ही है विशेष अवसरों पर षोडशोपचार पूजा भी की जाती है. रोट भेट चढ़ता है

उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पांखु गांव में स्थित पिंगली नाग मंदिर है। द्वापर युग में कालिया नाग यमुना नदी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पराजित किया तो वह धौलीनाग, बेरीनाग, फेनीनाग, वासुकिनाग, मूलनाग और आचार्य पिंगलाचार्य के साथ दशोली, गंगावली के निकट के पर्वत शिखरों में बस गए। तभी से स्थानीय निवासी पिंगलाचार्य को पिंगल नाग देवता के रूप में पूजने लगे। स्कंद पुराण के मानसखंड में नागों का विस्तार से वर्णन है। बताया जाता है कि एक ब्राह्मण को पिंगल नाग देवता ने सपने में अपने आने की सूचना दी थी। उसी ब्राह्मण ने पर्वत शिखर पर मंदिर निर्माण करवाया और विधिवत पूजा अर्चना संपन्न करवाई।

टिहरी जिले में स्थित सेम मुखेम नागराजा मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। पुराणों में कहा गया है कि अगर किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो इस मंदिर में आने से दोष का निवारण हो जाता है। इस मंदिर से अनेक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण गेंद लेने के लिए कालिंदी नदी में उतरे थे तो उन्होंने कालिया नाग को भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था। तब कालिया नाग की विनती पर भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूर्ति रूप में स्थापित हो गए। इस मंदिर में श्रद्धालु काल सर्प दोष के निवारण और भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए आते हैं।

धौलीनाग मंदिर बागेश्वर में है और कालिया नाग के सबसे बड़े पुत्र धौलीनाग देवता को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने पराजित होने के बाद कालिया नाग उत्‍तराखंड के क्षेत्र में आया और भगवान शिव की तपस्या की। धौली नाग देवता ने स्थानीय लोगों की कई प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा की और उन्‍हें भगवान का दर्जा दिया गया।

सनातन धर्म में नाग देवता के पूजन का विधान है। देवों के देव महादेव अभूषण रूप में अपने गले में उन्हें धारण करते हैं। रावण संहिता शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के वो पितृ जो देव योनी में आ जाते हैं वो सर्प बनकर अपने वंशजो के धन की रक्षा करते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में राहु व केतु को सर्प माना जाता है। राहु को सर्प का सिर तथा केतु को पूंछ माना जाता है। धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि सांप को मारना नहीं चाहिए। इससे बड़ा पाप लगता है और बहुत से जन्मों तक इसकी सजा भुगतनी पड़ती है। ज्योतिषशास्त्र में माना जाता है कि जो व्यक्ति सांप को मारता है या उसे किसी प्रकार से कष्ट देता है अगले जन्म में उनकी कुण्डली में कालसर्प नामक योग बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति को जीवन में बार-बार कठिनाईयों और असफलताओं का सामना करना पड़ता है। 

  सर्प अपने आप स्थान छोड़कर चला जाता है : 

ॐ नमो आदेश गुरु को जैसे के लेहु रामचंद्र।
कबूत ओसई करहु राध विनि कबूत पवनपूत हनुमंत।
धाव हन हन रावन कूट मिरावन श्रवई 
अंड खेतही श्रवई अंड विहंड 
खेतहि श्रवई वॉज  गर्भ हो श्रवई 
स्त्री चीलही श्रवई शाप 
हर हर जंबीर हर जंबीर हर हर हर।

इस गुरु से नागराज करते हैं बात, मंत्रों की शक्ति से प्रकट हुए हजारों वर्ष प्राचीन नागराज

वाराणसी.   अस्सी स्थित रामजानकी मठ में गुरु राजकुमार ने मंत्रों की शक्ति के जरिए हजारों साल पुराने दो नागराजों को बुलाया। रामकुमार दास जी का दावा है कि किष्किंधा से आए दोनों मणिधारी नागराज सगे भाई हैं। उनका ये भी कहना है कि दोनों नागराज उनसे बात करते हैं और उनकी बातों को मानते भी हैं। उन्होंने बताया कि ये मणिधारी नागराज हैं, जो मंत्रों के आह्वान और सिद्धि के दम पर पृथ्वी लोक पर आए हैं। गुरु राजकुमार दास का दावा है कि ये नागदेवता कहीं से पकड़े नहीं गए है। इन्हें तप और मंत्रों की शक्ति से दुनिया में दूसरी बार बुलाया गया है। इस चमत्कार को देख भक्त इसे महादेव की कृपा मान रहे हैं। उन्होंने बताया कि नागराजों को बुलाने की इस पूरी प्रक्रिया को मंडल कहा जाता है। पंजाबी भगवान के शिष्य महंत राजकुमार दास ने बताया कि दो नागदेवों को कई वर्षों तक तप और मंत्र की शक्ति से नागराजों के मंडल का आह्वान किया गया है। इन नागों कि आयु पांच हजार साल से भी ज्यादा है। मंडल वो प्रक्रिया है, जिसमें प्रभु से आज्ञा लेने के बाद घोर तपस्या करना पड़ता है। मंडल में दो नाग ही आह्वान के दौरान इस बुलाए जाते हैं। पृथ्वी पर पंजाबी भगवान ने सैकड़ों साल पहले ऐसा किया था। ये तीसरी बार है, जब इतनी आयु के नागराज धरती पर अवतरित हुए हैं। राजकुमार दास ने बताया कि नागों के प्रकट होने और अदृश्य होने को कोई नहीं देख सकता। बर्तन में गुलाब की पंखुड़ियों से भरे एक बड़े से भगोने में एक के बाद एक, दो नाग देवता प्रकट हुए। जहरीले दुर्लभ नाग मानों गुरु राजकुमार दास की एक-एक बात समझ रहे थे। कुछ नागों को अपने सामने रख कर राजकुमार दास जी महाराज जो भी कहते वो नाग वही करते। महाराज का आदेश हुआ कुंडली लगाओ, नाग गोल होकर कुंडली लगा लेते। महाराज का आदेश होता मुंह के पास आकर बात करो तो नागदेव फुंकार मारकर मानो बात क रहे हो। दो सालों तक बिना जल के भ्रमण करने वाले ये नाग भोजन भी ग्रहण नहीं करते बल्कि वायु पर रहते हैं।

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