बीजेपी की बदलती चुनावी रणनीति ; मोदी और शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी चौंकाने वाले फैसले लेती है

 बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव करने के लिए मजबूर क्यों हुई? बीजेपी की इस रणनीति की वजह ये है कि इस चुनाव में बीजेपी को ये अहसास हुआ है कि अकेले योगी चुनाव नहीं जीत सकते. खाली उनको आगे करके अखिलेश यादव से चुनाव नहीं लड़ा जा सकता. इसलिए मोदी जी की ज़रूरत है. यूपी में 2007 के बाद कोई भी सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई है. और बीजेपी के लिए 2024 के लिहाज़ से यूपी जीतना बहुत ज़रूरी है. ऐसे में एक तरह की डेस्परेशन है

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उत्तर प्रदेश में फुसफुसाहट सुन रहे हों कि उत्तर प्रदेश में जीत के बाद क्या योगी आदित्यनाथ का दोबारा सीएम बनना तय है या शक है तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। वही बेहद सफाई से योगी आदित्यनाथ को पीएम मोदी की ख़ातिर सीएम बनाने का आग्रह किया गया था.

कांग्रेस नेता राज बब्बर ने शनिवार को एक ट्वीट किया और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से एक ऐसा सवाल पूछा जो उनके लिए मुश्किल भरा माना गया. उन्होंने अपने ट्वीट से जिस ओर इशारा किया है, वह बात उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बदलती चुनावी रणनीति के बारे में बताती है.

गृहमंत्री लखनऊ की सभा में डिप्टी सीएम की तारीफ़ ऐसे करते हैं जैसे वही इस बार बीजेपी का चेहरा हैं। अगले ही दिन प्रधानमंत्री शाहजहांपुर में मुख्यमंत्री को प्रोजेक्ट करते हैं। हर जगह चेहरे की राजनीति करने वाली बीजेपी – यूपी में कन्फ्यूज़ क्यों है। योगी जी सीएम पद का चेहरा हैं न ??

बीजेपी की चुनाव रणनीति पर सवाल उठाते हुए उन्होंने लिखा “गृहमंत्री लखनऊ की सभा में डिप्टी सीएम की तारीफ़ ऐसे करते हैं जैसे वही इस बार बीजेपी का चेहरा हैं. अगले ही दिन प्रधानमंत्री शाहजहांपुर में मुख्यमंत्री को प्रोजेक्ट करते हैं.”

पिछले सात-आठ सालों में हुए विधानसभा चुनावों से जुड़ी बीजेपी की रणनीति पर नज़र डालें तो एक तरह का पिरामिड नज़र आता है. इस पिरामिड में सबसे ऊपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होते हैं और उसके बाद क्रमबद्ध ढंग से तमाम राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं सम-सामायिक मुद्दों का नंबर आता है. बीजेपी की कोशिश ये रहती है कि चुनावों में, विशेषत: विधानसभा चुनावों में आमने-सामने की टक्कर न हो ताकि बीजेपी को मिलने वाला वोट बिखरे नहीं और जो वोट उसके खाते में न आए वो पूरा वोट किसी एक दल के ख़ाते में न चला जाए. यही नहीं, मोदी और शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी पहले-पहल तो मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम उजागर नहीं करती है.

मोदी और शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी पहले-पहल तो मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम उजागर नहीं करती है. अगर एक बार कर भी दिया जाए तो बीजेपी उसके नाम पर चुनाव नहीं लड़ती है. लेकिन उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस रणनीति से हटकर काम करती दिख रही है.

इस दिशा में सबसे पहला बयान अमित शाह की ओर से आया कि अगर “मोदी जी को 2024 में प्रधानमंत्री बनाना है तो 2022 में योगी जी को फिर एक बार मुख्यमंत्री बनाना होगा.”

बीजेपी की रणनीति में इस एक बयान से भी परिवर्तन दिखना शुरू हो गया. क्योंकि इस बयान में बेहद सफाई से योगी आदित्यनाथ को पीएम मोदी की ख़ातिर सीएम बनाने का आग्रह किया गया था.

उत्तर प्रदेश की राजनीति को गहराई से समझने वालीं वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन मानती हैं कि बीजेपी ज़रूरत के हिसाब से अपनी रणनीति को शक्ल दे रही है. वह कहती हैं, “बीजेपी इस चुनाव में जगह और कार्यक्रम को ध्यान में रखकर रणनीति बना रही है. जैसे कि एक जुमला अभी सामने आया है कि योगी जी उपयोगी हैं. वैसे ही उनके लिए जिस जगह जो उपयोगी होगा, वह उसका इस्तेमाल करेंगे. उदाहरण के लिए निषाद रैली में उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य का ज़िक्र किया. क्योंकि पिछड़ा वर्ग इस बात से नाराज़ है कि अगड़ी जातियों का प्रभुत्व है. और संजय निषाद गोरखपुर से ही आते हैं. बार बार कहा जाता है कि योगी जी ने राजपूतों की राजनीति की. ऐसे में इस रैली में वह एक पिछड़े वर्ग के नेता को तरजीह देंगे. क्योंकि योगी जी की तारीफ़ करने से निषाद ख़ुश नहीं हो जाएंगे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में योगी जी का काफ़ी नाम लिया जाएगा. क्योंकि वहां पर लोगों की नाराज़गी मोदी से ज़्यादा है, योगी से कम है. क्योंकि मोदी जी किसान क़ानून लेकर आए थे. इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान योगी को लव जिहाद जैसे मसलों पर कार्रवाई करने का श्रेय देते हैं.”

हाल ही में एक जनसभा के दौरान अमित शाह केशव प्रसाद मौर्य की तारीफ़ करते दिखे. यही नहीं, एक कार्यक्रम में केशव प्रसाद मौर्य नरेंद्र मोदी को कुछ जानकारी देते नज़र आए. इसके बाद यूपी के राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए गए कि क्या चुनाव के बाद सीटें कम आने पर केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर विचार किया जा सकता है.

ओबीसी तबके में रुझान है कि योगी जी ने केशव मौर्य को काम नहीं करने दिया. ऐसे में एक सहानुभूति भी है. और बीजेपी उसका फायदा उठाना चाहती है.” राजनीतिक विश्लेषकों का ये भी मानना है कि बीजेपी कोई दरवाज़ा बंद नहीं करना चाहती है. बीजेपी ये नहीं चाहती कि उसके पास कम सीटें आने की स्थिति में योगी का विकल्प ही न हो. क्योंकि अगर उसे सरकार बनाने के लिए किसी का समर्थन लेना होता है तो हो सकता है कि बसपा या अन्य दल योगी को लेकर राज़ी नहीं हों. ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य काम आ सकते हैं

सवाल उठता है कि अगर काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद शुरू हुई तो पोस्टरों से योगी आदित्यनाथ गायब क्यों हैं? सवाल उठता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के विज्ञापन से योगी आदित्यनाथ की तस्वीर गायब क्यों हुई.

योगी आदित्यनाथ की छवि विकसित हो रही है. और आने वाले दिनों में साल 2024 के बाद उनके (पीएम मोदी) लिए दिक्कत हो सकती है. योगी आदित्यनाथ  भगवा पहनते हैं और मोदी जी के पदचिह्नों पर चल रहे हैं. ऐसे में अभी तो नहीं लेकिन आगे चलकर चुनौती बन सकते हैं. इसलिए मोदी अभी से उन्हें प्रतिस्पर्धा से दूर रखना चाहते हैं.”

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