बड़े नेताओं के बीच व्यक्तिगत द्वेष नहीं था

बड़े नेताओं के बीच व्यक्तिगत द्वेष नहीं था : नेहरू और लोहिया विरोध का भाव रखते थे, पर उनमें व्यक्तिगत द्वेष नहीं था
वर्ष 1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली जेल में डॉ. राममनोहर लोहिया के लिए पके हुए आम की एक टोकरी भिजवाई थी. इस पर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने एतराज किया तो नेहरू का जवाब था कि ‘राजनीति और व्यक्तिगत संबंध को अलग रख कर देखा जाना चाहिए.’

सरदार साहब का तर्क था कि जो व्यक्ति कानून का मुजरिम है, उसके लिए कम से कम प्रधानमंत्री तो आम न भिजवाएं. याद रहे कि नेपाल में राणाशाही के खिलाफ मई, 1949 में समाजवादी चिंतक और नेता डॉ. लोहिया ने अपने समाजवादी साथियों के साथ दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास के पास प्रदर्शन किया था. वो गिरफ्तार कर लिए गए थे. उन्हें दिल्ली जेल भेज दिया गया था. गिरफ्तार नेताओं में राजेंद्र सच्चर भी थे. उन लोगों पर धारा 144 भंग करने का आरोप लगा था.

प्रधानमंत्री नहीं चाहते थे कि उन्हें जेल भेजा जाए, पर सरदार पटेल अड़े हुए थे. इस संबंध में नेहरू और पटेल के बीच पत्र व्यवहार भी हुआ. डेढ़ महीने के बाद अंततः डॉ. लोहिया और उनके साथियों को रिहा कर दिया गया.

यह वही सच्चर थे जिनके नेतृत्व में सच्चर आयोग बना था. पंजाब के मुख्यमंत्री रहे भीम सेन सच्चर के बेटे राजेंद्र सच्चर का बीते अप्रैल में निधन हो गया. दिवंगत सच्चर ने आम भिजवाने वाला प्रकरण लिखा है. भिजवाने का आदेश नेहरू ने दिया,पहुंचाने का प्रबंध इंदिरा गांधी ने किया था. याद रहे कि वर्ष 1949 में जवाहरलाल नेहरू और डॉ. लोहिया दोनों अलग-अलग दलों में थे. पर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था. उन दिनों जवाहरलाल डॉ. लोहिया के भी हीरो थे. डॉ. लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 में हुआ था. उनका निधन 12 अक्टूबर, 1967 को हुआ. जवाहरलाल नेहरू और डॉ. लोहिया के प्रशंसकगण बाद के वर्षों में एक दूसरे के खिलाफ भले विरोध का भाव रखते थे, पर खुद इन बड़े नेताओं के बीच व्यक्तिगत द्वेष नहीं था.

वर्ष 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद डॉ. लोहिया ने कहा था कि ‘1947 से पहले के नेहरू को मेरा सलाम.’ उससे पहले वर्ष 1936 में कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रपति यानी अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. लोहिया को पार्टी का सचिव बनाया था. उन्हें विदेश प्रभाग मिला था क्योंकि डॉ. लोहिया कई भाषाएं भी जानते थे. नेहरू लोहिया की प्रतिभा के कायल थे.

आजादी के बाद अन्य समाजवादी नेताओं के साथ डॉ. लोहिया ने भी कांग्रेस छोड़ दी. उससे पहले उन लोगों ने कांग्रेस के भीतर ही कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बना रखी थी. आजादी के बाद कांग्रेस के नेतृत्व ने कहा कि या तो आप लोग पूरी तरह कांग्रेस में शामिल हो जाएं या पार्टी छोड़ दें.

उस पर आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण और डॉ. लोहिया ने अन्य अनेक मशहूर समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर सोशलिस्ट पार्टी बना ली. पर नेहरू का जेपी और लोहिया के प्रति स्नेहवत संबंध बना रहा. लोहिया ने जब पहली बार 1963 में एक उपचुनाव के जरिए लोकसभा में प्रवेश किया तो जरूर पहले जैसे रिश्ते नहीं रहे. डॉ. लोहिया ने कहा था कि प्रधानमंत्री पर रोजाना 25 हजार रुपए खर्च होते हैं जबकि एक आम भारतीय की औसत आय सिर्फ 3 आने हैं.
पहले के स्नेहिल रिश्ते का सबूत 19 अप्रैल, 1946 का वह एक पत्र है जो जवाहरलाल नेहरू ने लोहिया को लिखा था.

नेहरू ने लिखा, ‘मेरे प्यारे राममनोहर,

बहुत अरसा गुजर गया मुझे तुम्हें खत लिखे हुए और मिले हुए, मैं नहीं जानता कि तुम अब कैसे दिखते होगे और क्या और कैसे सोचते होगे. आदमी की अंदरूनी तब्दीलियां, बाहर की तब्दीलियों से ज्यादा अहमियत तो रखती ही हैं, मैं खुद भी सदैव बदलते हुए महसूस करता हूं. पर इसका निर्णय कि यह परिवर्तन अच्छा है या बुरा केवल दूसरे ही लोग कर सकते हैं.

मैं आशा करता था कि शायद तुम रिहाई के बाद दिल्ली आओ, मगर तुम्हें कलकत्ता (अब कोलकाता) जाना पड़ा. मैं असम में था जब तुम्हारे पिता के देहांत की खबर मिली थी और उनकी शराफत की मुझे बहुत याद आई. मैंने सोचा कि तुम्हें उनके चले जाने के बाद बहुत सदमा हुआ होगा.

तुम्हें शायद मालूम हो कि मैंने एक और दूसरी पुस्तक लिखी है जो हमेशा की तरह सब्जेक्टिव है, मैं तुम्हें उसकी एक प्रति भेजना चाहता हूं. मगर मेरे पास यहां एक भी कापी नहीं है. मैं सोचता हूं कि प्रकाशक के लिए एक नोट भेज दूं और शायद इससे काम बन जाए. मेरा विचार है कि शायद उनके पास भी कोई कॉपी नहीं बची है, फिर भी यदि है तो तुम्हें दे दी जाए.

दीप्तिमान बने रहो. खुश रहो और तनाव का बोझ अपने ऊपर बहुत ज्यादा न लादो.

सप्रेम, तुम्हारा प्यारा

जवाहरलाल नेहरू

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