नई करेंसी छपाई का कोई लेखा-जोखा नही सरकार के पास ; जनसंघर्ष मोर्चा

हिमालयायूके न्यूज पोर्टल ब्यूरो

विकासनगर, देहरादून-  – स्थानीय होटल में पत्रकारों से वार्ता करते हुए जनसंघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जी०एम०वी०एन० ने पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा नोटबंदी लागू किये जाने से लेकर लगभग ६-७ माह तक भी नई करेंसी छपाई के खर्च का ब्यौरा उपलब्ध न होना बडा दुर्भाग्यपूर्ण है।

नई करेंसी (५०० व २००० रू० के नोट) की छपाई में आने वाले खर्च का ब्यौरा भारतीय रिजर्व बैंक के पास न होना, बैंक नोट मुद्रणालय, देवाष, मध्य प्रदेश के अनुसार नोटों की छपाई के खर्च का आंकलन अभी तक नहीं किया जाना तथा वहीं चालार्थ पत्र मुद्रणालय के अनुसार नई करेंसी के खर्च का ब्यौरा दिये जाने से देश की एकता, अखण्डता, सुरक्षा इत्यादि का खतरा बताकर देशकी जनता को गुमराह किया जाना

नेगी ने कहा कि नई करेंसी (५०० व २००० रू० के नोट) की छपाई में आने वाले खर्च का ब्यौरा भारतीय रिजर्व बैंक के पास न होना, बैंक नोट मुद्रणालय, देवाष, मध्य प्रदेश के अनुसार नोटों की छपाई के खर्च का आंकलन अभी तक नहीं किया जाना तथा वहीं चालार्थ पत्र मुद्रणालय के अनुसार नई करेंसी के खर्च का ब्यौरा दिये जाने से देश की एकता, अखण्डता, सुरक्षा इत्यादि का खतरा बताकर देशकी जनता को गुमराह किया जाना जैसा है।
बडी हैरानी की बात है कि कितनी संख्या में ५०० व २००० रू० के नोट छापे गये तथा उनकी छपाई में कितना खर्च आया, नोटबंदी लागू किये जाने सम्बन्धी PMO के पत्र का रिजर्व बैंक के पास न होना सभी बहुत ही गम्भीर स्थितियाँ हैं। आलम है कि आज रिजर्व बैंक सरकारी बैंक न होकर प्राईवेट बैंक बन चुका है।
आज केन्द्र की भाजपा सरकार देश की जनता को गुमराह कर रही है तथा अपने गुनाह/कुकृत्य छिपाने के लिए इन संस्थाओं के हाथ बाँध दिये हैं, जो कि बडा दुर्भाग्यपूर्ण है।

पत्रकार वार्ता में -मोर्चा महासचिव आकाष पंवार, दिलबाग सिंह, ओ०पी० राणा, यमन चौधरी, वीरेन्द्र सिंह आदि थे।

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हिमालयायूके न्यूज पोर्टल ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार – सरकार ने  500 और 1000 रूपये के नोटों को बन्द करके 2000 के नये नोटों को पेश करने का निर्णय लिया है| बताया जा रहा है कि ऐसा करने से नकली नोटों (FICN) की सहायता से होने वाले आतंकवाद की फंडिंग को रोकने और विध्वंसक गतिविधियां जैसे जासूसी, हथियारों की तस्करी, ड्रग्स और प्रतिबंधित वस्तुओं की कालाबाजारी को रोकने में मदद मिलेगी| साथ ही ऐसे दावे भी हैं कि इससे हमारी अर्थव्यवस्था के सामानांतर कालेधन की काली छाया को नष्ट करने में कामयाबी मिलेगी| उद्देश्य तो सार्थक हैं, लेकिन क्या हमारी नई मुद्रा की छपाई में वही कम्पनियाँ हैं जो कालीसूची में डाली गयीं थीं और जिन कंपनियों की मिलीभगत से पाकिस्तान में नकली मुद्रा छपने के कारखाने चलते थे?

वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत – नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओ पर छापेमारी की| उन शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा था कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वो बैंकों को रिजर्व बैंक से मिले हैं| उसके बाद सीबीआईने भारतीय रिज़र्व बैंक के तहखानो में छापेमारी में जाली 500 और 1000 मूल्यवर्ग का भारी गुप्त कैश पाया था, लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुँचाया जाता था| अब सवाल है कि यह नकली मुद्रा भारतीय रिज़र्व बैंक के तहखानो में कैसे पहुंची? 

 2010 में सरकारी उपक्रमों संबंधी (COPU) संसदीय समिति चौक गयी कि सरकार द्वारा पूरे देश की आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ की छपाई का ठेका दिया गया|

 सारे हाई सिक्योरिटी पेपर्स की छपाई और टेक्नोलॉजी मार्किट में चंद पश्चिमी-यूरोपीय कंपनियों का प्रभुत्व है| अपनी किताब “मनी मेकर्स – सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ़ करेंसी प्रिंटर्स” में लेख़क क्लाउस बेंडर ने नोट उद्योग और उसके काम करने के ढंग और उस इंडस्ट्री की गोपनीयता से पर्दा हटाकर सबके सामने रखा है| इस कहानी को प्रकट करने के लिए एक प्रयास में 1983 में एक अमेरिकी लेख़क टेरी ब्लूम द्वारा अपनी पुस्तक “द ब्रदरहुड ऑफ़ मनी द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ़ बैंक नोट प्रिंटर्स” में सारी काली करतूतों का लेखा जोखा लिखा| लेकिन इस व्यापार के अंदर की कहानी जनता तक पहुँचने से रोकने के लिए उसी उद्योग के दो प्रमुख प्रतिनिधियों द्वारा सीधे प्रिटिंग प्रेस से उस किताब के सारे संस्करण खरीद लिए गए|

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