ब्राह्मणों, योगियों, संन्यासियों, महापुरुषों के शुभ चिंतन और तपस्या से ही बादशाहों, शासको का कल्याण होता है — बादशाह अकबर ने कृष्णभक्त सूरदास को संदेश भेजा था

कृष्णभक्त कवि सूरदास और मुग़ल सम्राट अकबर के बीच चिट्ठीपत्री

इतिहासकार और राजनीतिज्ञ बी एन पांडे ने मुग़ल विरासत पर लिखी अपनी किताब ‘भारतीय संस्कृति मुग़ल विरासत: औरंगज़ेब के फ़रमान’ में भारतीय इतिहास में भक्तिकाल का एक दिलचस्प क़िस्सा बयान किया है जो कृष्णभक्त कवि सूरदास और मुग़ल सम्राट अकबर के बीच चिट्ठीपत्री से जुड़ा है।

भक्त सूरदास के नाम अकबर का संदेश’ अध्याय में अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फ़ज़ल के मार्फ़त सूरदास को भेजे गये एक संदेश का मजमून दिया गया है।

पांडे जी लिखते हैं, “संवत् 1645 में काशी के हाकिम ने हिंदू प्रजा के प्रति भेदभाव बरतना शुरू किया। फरियादी हिंदुओं के संबंध में भक्त सूरदास ने, जो उस समय काशी में निवास कर रहे थे, सम्राट अकबर को एक पत्र लिखा। भक्त सूरदास के पत्र को पढ़ कर काशी के हाकिम के ऊपर अकबर को अत्यंत क्रोध आया।

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अकबर ने अबुल फ़ज़ल से कहकर भक्त शिरोमणि को नीचे लिखा संदेश भेजा-

‘परमात्मा को पहचानने वाले ब्राह्मणों, योगियों, संन्यासियों, महापुरुषों के शुभ चिंतन और तपस्या से ही बादशाहों का कल्याण होता है। साधारण-से-साधारण बादशाह भी अपनी मति के विपरीत भगवद-भक्तों की आज्ञा का पालन करते हैं। तब जो बादशाह धर्म, नीति और न्यायपरायण है, वह तो भक्तों की इच्छा के विपरीत चल ही नहीं सकता। मैंने आपकी विद्या और सद्बुद्धि की प्रशंसा निष्कपट आदमियों से सुनी है। आपको मैंने अपना मित्र माना है। कितने ही विद्वानों और सत्यनिष्ठ ब्राह्मणों की परीक्षा हुई है और आप उसमें खरे उतरे हैं। आपको परम धर्मज्ञ जानकर हम आपको अपना परम मित्र समझते हैं। आपके पत्र से पता चला कि काशी के करोड़ी (जिस सूबे का कर ढाई लाख रुपये होता था, वहाँ का हाकिम करोड़ी कहलाता था) का बर्ताव अच्छा नहीं है’।”

अबुल फ़ज़ल लिखते हैं कि

बादशाह को यह सुनकर बहुत बुरा लगा। बादशाह ने उसकी बर्खास्तगी का फ़रमान लिख दिया है। अब नये करोड़ी की नियुक्ति का भार सम्राट ने आपके ऊपर छोड़ा है। इस तुच्छ अबुल फ़ज़ल को हुक्म हुआ है कि आपको इसकी सूचना दे। आशा है आप ऐसा करोड़ी चुनेंगे कि जो ग़रीब और दुखी प्रजा का समस्त भार सम्हाल सके। आपकी सिफ़ारिश आने पर बादशाह उसकी नियुक्ति करेंगे। बादशाह आप में ख़ुदा की रहमत देखते हैं इसलिए आपको यह तकलीफ़ दी है। काशी में ऐसा हाकिम होना चाहिए, जो आपकी सलाह के मुताबिक़ काम करे। कोई खत्री जिसे आप क़ाबिल समझें, ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर को पहचान कर न्याय और प्रेम से प्रजा का लालन-पालन करे, उसका नाम आपकी तरफ़ से आने पर उसे करोड़ी बना दिया जाएगा। परमेश्वर आपको सत्कर्म करने की श्रद्धा दे और आपको सत्कर्म के ऊपर स्थिर रखे।’

विशेष सलाम

आपका दास

अबुल फ़ज़ल

सूरदास के नाम अकबर का यह संदेश इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण है कि मुग़ल बादशाह ने उनकी शिकायत पर तत्परता से ग़ौर किया और कार्रवाई की। यहाँ तक कि उन्हें नया हाकिम तय करने का अधिकार भी दिया।

गाय और सूर्य की पूजा करता था अकबर

अकबर की उम्र महज 13 साल थी जब उन्होंने राजगद्दी संभाली थी. अकबर का राज्याभिषेक 14 फरवरी 1556 ई को पंजाब के कलनौर में हुआ था. अब्राहम इराली ने अपनी किताब ‘एम्परर्स ऑफ द पिकॉक थ्रोन: द सागा ऑफ द ग्रेट मुगल्स’ में अकबर के समकालीन इतिहासकार मुल्ला अब्द-उल-कादिर बदायूंनी (1540 – 1615) का हवाला देते हुए लिखा है कि अकबर पर उसके हिंदू राजा बीरबल का बड़ा प्रभाव था. ‘बीरबल ने सम्राट अकबर को सूर्य और अग्नि की पूजा के लिए तैयार कर लिया था.’ बदायूंनी के मुताबिक, बीरबल के प्रभाव में आकर अकबर जल, पत्थर, पेड़ और सभी प्राकृतिक तत्वों की पूजा करने लगा था.

वह गाय के सामने झुककर नमन करता था और गाय के गोबर को भी खास दर्जा देता था. बीरबल ने अकबर को सूर्य की पूजा करने के लिए प्रोत्साहित किया. बीरबल ने अकबर को तर्क दिया कि सूर्य सभी को प्रकाश देता है और सभी फलों, फूलों और पृथ्वी के उत्पादों को पकाने में मदद करता है. सूर्य मानव को जीवित रखने में मदद करता है इसलिए उसकी पूजा की जानी चाहिए.

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