रावण की आयु 14 वर्ष शेष रही तो विधाता ने श्रीराम को १४ वर्ष का वनवास भेजा- रामनवमी SPECIAL

रामनवमी का पर्व 2 अप्रैल 2020 को मनाया जाएगा #भगवान राम को सिर्फ चौदह वर्ष का ही वनवास क्यों दिया था।रावण की आयु केवल चौदह वर्ष की ही शेष रह गई थी: ऊँ ऐं हृीं क्लीं महागौर्ये नमः : विशेष आलेेेेख- केवल हिमालयायूके- रामनवमी SPECIAL

गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Bureau Report..

रामनवमी का पर्व 2 अप्रैल 2020 को मनाया जाएगा। इस दिन रामायण, रामचरित मानस और अन्य ग्रंथों के द्वारा भगवान श्री राम (Lord Rama) के नाम के नाम का गुणगान किया जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार राम (Ram) नाम में ही पूरा ब्राह्मांड समाया है और सभी देवता भी इसी में समाए हैं। जिसने राम नाम का जाप कर लिया वह अपने जीवन में तर जाता है।

रामायण (Ramayan) के अनुसार भगवान राम (Lord Rama) ने चौदह वर्ष का वनवास काटा था और रावण का वध किया था। लेकिन माता कैकयी ने भगवान राम को सिर्फ चौदह वर्ष का ही वनवास क्यों दिया था।भगवान राम ने त्रेतायुग में जन्म लिया था।त्रेतायुग में एक नियम हुआ करता था कि यदि कोई राजा अपनी स्वंय की इच्छा से यदि चौदह वर्ष के लिए अपना राज सिंहासन त्याग देता है तो वह राज्य का राजा होने का उतराधिकार खो देता है।यह बात माता कैकयी बहुत अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए माता कैकयी ने राजा दशरथ से भगवान राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा। जिससे भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के लिए चले जाएंगे और जिसके कारण भगवान राम अपने राज्य का उत्तराधिकारी होने का अधिकार खो देंगे। लेकिन माता कैकयी यदि चाहती तो भगवान राम के लिए चौदह वर्ष की जगह और अधिक वनवास मांग सकती थी। माना जाता है कि जिस समय माता कैकयी ने भगवान राम के लिए चौदह वर्ष का मांगा था ठीक उसी समय से रावण की आयु केवल चौदह वर्ष की ही शेष रह गई थी।इसलिए भगवान राम ने माता सरस्वती को प्रेरणा दी कि मंथरा की बुद्धि को फेर दें और मंथरा के माध्यम से कैकयी को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वह राजा दथरथ से कहें कि वह भगवान राम को चौदह वर्ष का वनवास दे दें।

इसी कारण से माता कैकयी ने भगवान राम की इच्छा से ही उनके लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा था। क्योंकि भगवान राम का जन्म का रावण वध के लिए हुआ था। भगवान राम को रावण को मारने के बाद फिर से धरती पर धर्म की पुन: स्थापना करनी थी। जिसके लिए ही उन्होंने अपने लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा था और रावण का वध करने के बाद वह फिर से अयोध्या आ गए और फिर से अपने राज पाठ को संभाला। रावण वध के अलावा भगवान राम ने सभी कार्यों को इन्हीं चौदह वर्ष में पूरा किया था। उन्होंने बाली को अर्धमी होने की सजा दी थी और अपने प्रिय भक्त हनुमान जी से भी इसी समय में भेंट की थी। इसके अलावा अहल्या को भी उन्होंने श्राप मुक्त किया था और अपनी भक्त शबरी के झूठे बेर खाकर उनकी भक्ति को फल उन्हें अपने दर्शन के रूप में दिया था। इसी कारण से भगवान राम ने चौदह वर्ष का वनवास ही अपने लिए मांगा था।

मनुष्य का जीवन सौभाग्य और दुर्भाग्य की अनुभूतियों से भरा हुआ है। कभी मनुष्य को सौभाग्य की प्राप्ति होती है तो कभी दुर्भाग्य की। सौभाग्य मनुष्य को निश्चित रूप से अच्छा लगता है। लेकिन दुर्भाग्य किसी को भी अच्छा नहीं लगता। यह मूलत: इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे अनुभव करते हैं कि नहीं दुर्भाग्य किसी के लिए पहाड़ के समान होता है तो किसी के लिए साधारण सी बात यह जीवन के दो चपूओं के समान है। यदि एक का भी संतुलन बिगड़ जाए तो जीवन को संतुलन में रखने का सिर्फ एक ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है सिर्फ भगवान श्री राम का नाम। इस साधारण से नाम में असीम शक्ति छिपी हुई है। इस नाम का सिर्फ स्वाद चखकर ही इसका बखान किया जा सकता है। एक सार्थक नाम के रूप में हमारे ऋषि मुनियों ने राम नाम के महत्व को पहचाना उन्होंने इस पूजनीय नाम की परख की और नामों के आगे लगाने का चलन प्रारंभ किया। प्रत्येक हिंदू परिवार में देखा जा सकता है कि बच्चे के जन्म राम के नाम का स्वर होता है। राम में शिव और शिव में राम विद्यमान है।राम जी को शिव जी का महामंत्र माना गया है। राम सर्वमुक्त है राम सभी की चेतना का सजीव नाम है।

कुख्यात डाकू रत्नाकर राम नाम से प्रभावित हुए और अंतत: महार्षि वाल्मिकी नाम से विख्यात हुए। राम नाम की चैतन्य धारा से मनुष्य की प्रत्येक आवश्यकता स्वत: ही पूरी हो जाती है। यह नाम स्वर सामर्थ है। राम अपने भक्त को उसके हृदय में वास कर सौभाग्य प्रदान करते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है। प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं। उनमें सर्वाधिक श्री फल देने वाला नाम राम का ही है। इससे बधिक, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि तक तर जाते हैं। सारी जिंदगी भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई ने अंतत: यही गाया। पायो जी मैने राम रत्न धन पायो। उन्होंने कृष्ण रत्न धन क्यों नहीं कहा। क्योंकि राम नाम की महिमा अपरमपार है अन्य देवी देवताओं की तुलना में राम सबको आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। यह नाम सबसे ज्यादा सरल और सुरक्षित है। इसके जप से लक्ष्य की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है। इस राम के जप के लिए आयु, स्थान, स्थिति, जाति जैसे बाहरी आवरण की कोई जरूरत नहीं है।किसी भी समय और किसी भी स्थान पर राम नाम का जाप किया जा सकता है। स्त्री या पुरुष जब भी चाहें इस नाम का जाप कर सकते हैं। प्रभु के लिए सब समान है। प्रभु का तारक मंत्र श्री से प्रारंभ होता है। श्री को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है। राम नाम में रा अग्नि स्वरूप है जो हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। वहीं म जल तत्व का घोतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर जीत का कारक है। इस तरह श्री राम का अर्थ है। शक्ति से परमात्मा पर विजय।

अगर चैत्र नवरात्रि में आप भी माता की कृपा पाना चाहते हैं तो 9 दिनों तक माता दुर्गा की विशेष स्तुति श्री दुर्गा सप्तशती (sri durga saptami pathsri durga saptami path) का पाठ करें। इससे माता प्रसन्न होती है। इसके साथ ही श्री दुर्गा सप्तशति ग्रंथ भी चारों वेदों की तरह ही एक अनादि ग्रंथ है। इसमें 700 श्लोक शामिल हैं। श्री दुर्गा सप्तशती के तीन भाग में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की महिमा का बखान किया गया है, साथ ही संपूर्ण ग्रंथ में माता की उत्तम महिमा का गान किया गया है। अगर नवरात्रि काल में जो भी भक्त पूरे 9 दिन श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, माता उनकी सभी कामनाएं पूरी कर देती है। घर पर ऐसे करें मां दुर्गा की पूजा और व्रत 9 दिन सबसे पहले, गणेश पूजन, कलश पूजन,,नवग्रह पूजन और ज्योति पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक लाल कपड़ा का आसन बिछाकर करें। माथे पर भस्म, चंदन या रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिये 4 बार आचमन करें। एक दिन में पूरा पाठ न करने की स्थिती में केवल मध्यम चरित्र का और दूसरे दिन शेष 2 चरित्र का पाठ कर सकते हैं। वहीं एक दिन में पाठ न कर पाने पर इसे दो दो एक और दो अध्यायों को क्रम से सात दिन में पूरा करें। श्रीदुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का हर दिन पाठ करने से वाक सिद्धि और मृत्यु पर विजय। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नवारण मंत्र ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे का पाठ करना जरूरी है। दुर्गा सप्तशति का हर मंत्र, ब्रह्मा,वशिष्ठ,विश्वामित्र ने शापित किया है। शापोद्धार के बिना, पाठ का फल नहीं मिलता। संस्कृत में श्रीदुर्गा सप्तशती न पढ़ पायें तो हिंदी में करें पाठ। श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ स्पष्ट उच्चारण में करें लेकिन जो़र से न पढ़ें। पाठ नित्य के बाद कन्या पूजन करना अनिवार्य है। श्रीदुर्गा सप्तशति का पाठ में कवच, अर्गला, कीलक और तीन रहस्यों को भी सम्मिलत करना चाहिये। दुर्गा सप्तशति के पाठ के बाद क्षमा प्रार्थना ज़रुर करना चाहिये।

वर्ष 2020 में चैत्र नवरात्रि की दुर्गा अष्टमी 1 अप्रैल दिन बुधवार को है। नवरात्रि पर्व में (Durga Ashtmi) दुर्गा अष्टमी का बहुत बड़ा महत्व होता है। इस दिन पूरे देश में माँ दुर्गा के (Mahagauri) महागौरी रूप की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtmi) की रात को विशेष पूजन की जाती है। इससे मां दुर्गा प्रसन्न होती है और सभी मनोकामना को पूरी करती है। इतना ही नहीं इस पूजा से आपके जीवन में चल रही कठिन समस्याएं और दुर्भाग्य खत्म हो जाता है। इतना ही मां की नजर पडने से घर में धन धान्य के भडार भर जाते हैं। दुर्गा अष्टमी की रात करें यह अचूक उपाय दुर्गाष्टमी की रात में किसी प्राचीन दुर्गा मंदिर में जाकर देवी मां के चरणों में 8 कमल के पुष्प चढ़ाने से माता रानी शीघ्र प्रसन्न हो जाती है। दुर्गा अष्टमी की रात में अपने घर के मुख्य दरवाजे पर रात 12 बजे गाय के घी का एक दीपक जलाने से सारे दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं। अष्टमी की रात को अपने घर में या दुर्गा मंदिर में दुर्गाष्टमी का पाठ करने से घर परिवार में सदैव सुख-शांति बनी रहती है। अष्टमी की रात महागौरी के स्वरूप को दूध से भरी कटोरी में विराजित कर चांदी का सिक्का चढ़ाएं, और दूसरे दिन से उस सिक्के को हमेशा अपनी जेब में रखें। इससे धन आने के स्त्रोत बढ़ने लगेंगे। दुर्गा अष्टमी को सूर्यास्त के ठीक बाद किसी वेदपाठी ब्राह्मण की कुंवारी कन्या को उसकी पसंद के कपडे दान करें। रात को एक पान में गुलाब के फूल की 7 पंखुरियां रखकर मां दुर्गा को अर्पित करने से मां लक्ष्मी हमेशा आपके घर में निवास करने लगेगी। दुर्गा अष्टमी को सूर्यास्त के बाद 11 सुहागिनों महिलाओं को लाल चूड़ियां एवं सिंदूर भेंट करने से पति की आयु लंबी होगी। उन पर आने वाले सभी संकट नष्ट हो जाएंगे। दुर्गा अष्टमी की रात देवी मंदिर गुपचुप तरीके से माता रानी के सोलह श्रृंगार भेंट करने से जीवन में आने वाली समस्त बाधाएं दूर हो जाएगी। वहीं दुर्गा अष्टमी की रात में लाल कम्बल के आसन पर बैठकर एक हजार बार ऊँ ऐं हृीं क्लीं महागौर्ये नमः का जप करें।

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